भारत राष्ट्र समिति में उत्तराधिकार की कलह

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

www.daylife.page 

दक्षिण के तेलंगाना राज्य में एक दशक से कुछ अधिक समय सत्ता में रही तेलंगाना राष्ट्र समिति, जो कुछ वर्ष पूर्व नाम बदल कर भारत राष्ट्र समिति बन गई है, में 2023 के विधानसभा चुनावों तथा 2024 के लोकसभा तक सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले ऐसा लग रहा था कि यह पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता में आयेगी.लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तथा पार्टी के अध्यक्ष के.चंद्रशेखर राव ने तब कहा कि पार्टी में कुछ गलतियाँ हुई हैं जिन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों में सुधार लिया जायेगा। लेकिन पार्टी की गाड़ी पटरी से उतर चुकी थी। विधानसभा चुनावों में तो पार्टी को कुछ सीटें मिल भी गईं थी लेकिन लोकसभा चुनावों में तो इसको एक भी सीट नहीं मिली। 2023 में राज्य में कांग्रेस सत्ता में आई। 2024 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस को दबदबा रहा। राज्य में दूसरे दर्जे वाली पार्टी बीजेपी में बन गई। 

आन्ध्र प्रदेश को विभाजित कर तेलंगाना  बनाये जाने की मांग तेलंगाना राष्ट्र समिति ने शुरू की थी। पार्टी ने इसके लिए लम्बा संघर्ष किया.चंद्रशेखर राव के लम्बे आमरण अनशन के बाद तब केंद्र में कांग्रेस नीत यू पी ए की सरकार ने अपने कार्यकाल के लगभग अंत में अलग तेलंगाना प्रदेश बनाने की मांग स्वीकार कर ली। जैसा की स्वाभाविक था, चंद्रशेखर राव नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री। उनके पहले कार्यकाल में अच्छे काम भी हुए। इसलिए पार्टी पांच साल बाद फिर सत्ता में आई। लेकिन इस दूसरे कार्यकाल में चीजें बदलने लगीं। इस काल में पार्टी लगभग परिवार की पार्टी बन गई। सभी निर्णय परिवार दवारा ही किये जाने लगे।   चन्द्रशेखर राव  बेटे के टी रामाराव, बेटी कविता तथा उनके पति ही सरकार में तथा पार्टी में सब निर्णय करते थे। पिछले  विधानसभा चुनावों से लगभग दो साल पूर्व इस परिवार को लगा कि अब समय आ गया जब पार्टी को तेलंगाना तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। पार्टी की सरकार ने राज्य में इतने अच्छे काम किये है कि इसकी लोकप्रियता अब राज्य से राज्य बाहर भी बढ़ती जा रही है। इसी समय यह निर्णय किया गया कि पार्टी को अब केवल क्षेत्रीय पार्टी तक ही नहीं रहना चाहिए बल्कि  एक राष्ट्रीय  पार्टी बनना चाहिए। इसका नाम बदल कर भारत राष्ट्र समिति कर दिया गया। इसका दिल्ली में दफ्तर भी खोल लिया गया। चंद्रशेखर राव ने देश भर का दौरा भी शुरू कर दिया। लेकिन विधानसभा के चुनावों में करारी हार के बाद उनका सपना टूट गया। एक राष्ट्रीय पार्टी बनाने के चक्कर में उन्होंने अपने बेटे के. टी रामाराव को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया ताकि उन्हें खुद के पास इतना समय हो कि वे देश का दौरा कर सकें। 

2024 के लोकसभा चुनावों में हार के बाद चंद्रशेखर राव  घोर निराशा में चले गए। उन्होंने राज्य की राजधानी हैदराबाद में रहना छोड़ दिया तथा अधिकांश  समय  सिद्दीपेट में अपने फार्म हाउस में रहने लगे। लोगों से मिलना जुलना भी कम कर दिया। पार्टी का सारा काम अपने रामाराव को सौंप दिया। अब यह कहा जा रहा है कि उनको जल्दी ही पार्टी का अध्यक्ष भी बना दिया जायेगा तथा चंद्रशेखर राव केवल इसके संरक्षक मात्र रहेंगे। यह बात उनकी बेटी कविता को अच्छी नहीं लगी। पिछले दिनों उन्होंने अपने पिता को एक पत्र  लिख कर कहा कि पार्टी के लिए उनके दवारा किये गए कार्यों के अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। यह पत्र लीक भी कर दिया गया। इसके बाद कविता के समर्थकों ने उन्हें पार्टी की कमान सौपने का दवाब बनाना शुरू कर दिया। पिछले दिनों पार्टी के हुए रजत अधिवेशन में पार्टी के अगले अध्यक्ष के रूप में उनके नाम की सुगबुगाहट भी हुई। कविता के समर्थकों का कहना है कि पिछले कुछ समय से रामाराव बीजेपी के साथ नजदीकियां बना रहे है। वे चाहते है की अब भारत राष्ट्र समिति  बीजेपी के नेतृत्व वाले  एनडीए का हिस्सा बन जाये। कविता के समर्थकों का कहना है कि पार्टी का बड़ा वर्ग बीजेपी से दूरी बनाये रखने के पक्ष में हैं। 

पार्टी के रजत अधिवेशन में भाई और बहिन की यह कलह खुलकर सामने आ गई। कविता और उनके समर्थकों को यह बात अच्छी नहीं लगी कि पार्टी अध्यक्ष के रूप में चंद्रशेखर राव बीजेपी को लेकर कोई विशेष आलोचना नहीं की। सारे भाषण में उन्होंने केवल 2 मिनट ही बीजेपी की चर्चा की तथा नहीं के बराबर आलोचना की।  राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि पिता का उत्तराधिकारी बनने के लिए आने वाले दिनों में भाई और बहिन में टकराव न केवल खुलकर सामने आयेगा बल्कि और भी बढेगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)