देश में वृद्ध आश्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है यह चिंताजनक स्थिति है। इसका अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव हमारे परिवार पर पड़ रहा है। दादा-दादी से मिलने वाले प्यार व संस्कारों से बच्चे वंचित हो रहे हैं। जिस घर में बुजुर्ग होते हैं वहां युवाओं के भटकने व गलत राह पर जाने की संभावना न्यूनतम होती है, क्योंकि बुजुर्गों के मार्गदर्शन से भविष्य संवारने में मदद मिलती है। घर के बुजुर्ग वट वृक्ष की तरह होते हैं जिनकी छांव तले पूरा परिवार सुरक्षित रहता है। कामकाजी पति-पत्नी के लिए तो बुजुर्ग भगवान के आशीर्वाद के समान है उनके काम पर जाने के बाद बच्चों व घर की चिंता नहीं रहती है। घर में बुजुर्गों के नहीं होने से हमारे समाज का वातावरण दूषित हो रहा है। बच्चे संस्कार विहीन होते जा रहे हैं, युवा भटक रहे हैं, नैतिक पतन हो रहा है, लड़कियां भी इससे अछूती नहीं है। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)।