बानू मुश्ताक : गृहिणी से बुकर पुरस्कार पाने का सफ़र

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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मेहरून तीन बच्चो की माँ है.वह बर्दाशत की सीमा पर चुकी है। उसका पति दूसरी शादी कर लेता है तो वह अपना जीवन अंत करने का फैसला करती है। क्योंकि  मेहरून के दिल का दीया पहले ही बुझ चुका था। वह अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल लेती है और दियासलाई जलने वाली होती है कि तभी उसकी बेटी सलीमा और अपनी छोटी बहन को लेकर उसके पास आती है  और आग्रह करती है वह उन्हें अनाथ न करें। 

यह अंश बानू मुश्ताक की एक कहानी हृदय दीपा का है, जो हार्ट लैंप नाम से  लघु कहानियों का संग्रह में है और जिसे हाल ही में प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार को मिला है। उनका मूल कहानी संग्रह कन्नड़ भाषा में है जिसका अनुवाद दीपा भाषी ने किया है। कई मायनों में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी कन्नड़ भाषी लेखक को यह पुरस्कार मिला है। यह भी पहली बार हुआ है कि पुस्तक की लेखिका और अनुवादक दोनों हीकन्नड़ भाषी है और दोनों ही ग्रामीण परिवेश से आती है .यह भी पहली बार हुआ  है किसी लघु कहानी संग्रह को यह पुरस्कार मिला है। मुश्ताक की लगभग सभी कहानियाँ ग्रामीण पृष्ठ भूमि वाली है जहाँ महिलायों, विशेषकर मुस्लिम समाज से आने वाली महिला यों, की हालत दयनीय है। उनकी एक और कहानी “ब्लैक कोबरा”  के कुछ अंश इस प्रकार है। 

अशरफ के गरीब महिला है .उसका पति उस और उसके बच्चों को छोड़ देता है। वह सहायता के लिए गाँव की मस्जिद के मुतवल्ली के पास जाती है लेकिन उसे  वहां कोई मदद नहीं मिलती. अशरफ बेसहारा हो जाती है. लेकिन गाँव की कुछ महिलाएं  कोबरा सांप की तरह मुतवल्ली  पर जहर थूकती है। जब वह घर लौट रहा होता है तो एक महिला उसे पत्थर मारकर चिल्लाती है “कुत्ते तूं  सिर्फ है कुत्ता ही रहेगा”। दूसरी महिला चिल्लाती है “तेरा कभी भला नहीं होने वाला, काले नाग तुझे ड्सेंगे. मुतवल्ली जब घर लौटता है तो उसकी पत्नी उसकी हत्या कर देती है। 

मुश्ताक कर्नाटक के एक छोटे से गाँव से आती है। बचपन में उसके पिता मोहल्ले की अन्य लड़कियों की तरह  उसे उर्दू के मदरसे में पढ़ने के लिए डाल दिया .वे खुद एक सरकारी कर्मचारी थे और चाहते थे कि उनके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ें.मुश्ताक को जल्दी ही पास के एक कान्वेंट स्कूल में डाल दिया, जहाँ कन्नड़ भी पढ़ाई जाती थी। उसको शुरू से  ही लिखने के शौक था तथा पढ़ाई के दौरान ही उसकी कहानियां और लेख एक स्थानीय कन्नड़ पत्रिका में छपती थी। उसके माता पिता उसकी कम आयु में ही शादी कर देना चाहते थे लेकिन वह इसकें लिए तैयार नहीं थी.आखिर उसने 26 वर्ष की आयु में अपनी पसंद के मुस्लिम युवक से शादी कर ली। शादी से पहले उसे यह  मालूम नहीं था कि उसे होने वाले पति के घर का माहौल कैसा है. शादी के बाद उनके घर में एक बेटी  का जन्म भी हो गया .लेकिन मुश्ताक लगातार इस माहौल में घुटन मह्सूस्र कर रही थी। आखिर एक दिन उसने आत्महत्या करने का फैसला किया। उसने अपने पहने हुए कपड़ों पर मिट्टी का तेल छिड़क लिया.बस जब वह माचिस जला कर अपने को खत्म करने ही वाली थी कि उसके पति ने  देख लिया। वह अपनी छोटी बच्ची को लेकर उसके पास गया तथा उससे दुहाई मांगते हुए  आत्महत्या नहीं करने को कहा. उसने यह भी  वायदा किया कि वह अपनी जिदंगी अपनी तरह से जीने के लिए आज़ाद है। इसके बाद उसने अपने लिखने का सिलसिला फिर  शुरू कर दिया . एक स्थानीय पत्रिका में  रिपोर्टर की  तरह से काम किया। उसने न केवल  कहानियां लिखी बल्कि  नियमित रूप से पुरुष प्रधान समाज में महिलायों, विशेषकर मुस्लिम समाज में, की  दयनीय  स्थिति पर लगातार लिखा। 70 और 80 में कर्नाटक में  साहित्य  में कुलीन वर्ग के नियंत्रण  के खिलाफ  एक आन्दोलन चला था इसका नाम बंदय आन्दोलन चला जिसमें वे बहुतसक्रिय रही। कुल मिला कर उनके  6 कविता संग्रह छप चुके है। लेखों  का एक संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है।  इसके अलावा उन्होंने एक उपन्यास भी लिखा है। 

इंग्लैंड में हुए पुरस्कार समारोह में उनके पति उनके साथ  नहीं जा सके।  उसके स्थान पर अपनी  बेटी को ले गई इस पुरस्कार के साथ 50 हज़ार डॉलर मिलते है। अगर यह अनुवादित पुस्तक है तो अनुवादक को इसमें से आधी राशि मिलती। कुछ वर्ष पूर्व  भारत की गीतांजली श्री को उनकी पुस्तक रेत समाधि को  भी  बुकर पुरस्कार मिला था। इसका अनुवाद एक गैर  भारतीय डेज़ी रोक्वेल ने किया था। लेकिन इस बार यह पुरस्कार पाने वाली दोनों महिलाएं न केवल भारतीय है बल्कि एक ही राज्य कर्नाटक की है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)