गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टेगौर की 164 वीं जयंती
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जयपुर। कला ,साहित्य ,संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग तथा रवीन्द्र मंच सोसायटी द्वारा आयोजित गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की 164वीं जयंती समारोह के अवसर पर रवीन्द्र मंच के मुख्य सभागार में गुरुवार 8मई को दोपहर 1 बजे नाटक "डाकघर" का मंचन हुआ।
नरेन्द्र सिंह बबल द्वारा निर्देशित एवं गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित नाटक "डाकघर" की शुरूआत गुरुदेव द्वारा रचित प्रेरक गीत "तोबी एकला चलो" से होती है। नाटक दर्शाता है कि मानवीय मनोभाव जब प्रत्येक अवस्थाओं में सौंदर्य अनुभूत करता है तब उसके मनोभाव को अन्य सहज ही स्वीकार नहीं करते अपितु उसे बीमार समझकर उसको घर में रखकर उन मनोभावों से रोग मुक्त करने का प्रयास करते हैं।
मुक्ति के लिये जो असीम व्याकुलता मानवात्मा अनुभव करती है उसी मुक्ति-व्याकुल मानवात्मा का प्रतीक है "डाकघर" नाटक का रूग्ण नायक अमल। मुक्ति के सम्बंध में लोगों की धारणा बड़ी विचित्र है। विषयासक्त व्यक्ति इसे बिडम्बना समझते हैं और बालक अमल को उसके मनोभाव को उत्कंठ व्याधि समझकर उसके इलाज द्वारा उसको रोग मुक्त करना चाहते हैं मुखिया व माधवदत्त। तो वहीं उसे प्रश्रय व उत्साह देते हैं दादा और राजवैद्य जो कहते हैं कि राजा अवश्य ही पत्र लिखेंगे। वहीं नाटक का मुख्य पात्र बालक अमल प्रत्येक अवस्थाओं में सौंदर्य को अनुभूत करता है। वह दही वाले की टेर, पहरेदार के घण्टे की ध्वनि ,ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों, झरनों ना दिखने वाले फूलों को वृक्षों की ऊँची-ऊँची डालियों पर जाकर उन फूलों के सौंदर्य को समेटने की कल्पना तो किस्सों-कहानियों में चिड़ियों के देश की पारलौकिक सौंदर्य को अनुभूत करने का अनुपम उत्साह दिखाई देता है अमल में यही विश्व सौंदर्य है और यही विश्व सौंदर्य है "डाकघर" जहां से निरन्तर मन के पास डाक चली आ रही है।
अब चाहे उनकी भाषा समझ में आये या ना आये पर एक अटूट विश्वास है बालक अमल का कि यह राजा (प्रकृति ) की लिखी हुई चिट्ठी है और राजा के डाकघर से आई है। जब इन मनोभावों को उत्साह मिलता है तो वह विश्व सौंदर्य के प्रति विश्वास और प्रगाढ़ हो जाता है | यही अटूट विश्वास और विश्व सौंदर्य है नाटक डाकघर। जो विश्वबन्धुत्व के लिये प्रेरित करता है। डाकघर मुख्यतः द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में चिकित्सक व चिकित्सा प्रणाली के अभाव को सांकेतिक रूप में दर्शाता है और उस समय के भारत की दशा पर सोचने को मजबूर करता है तो वहीं विषम से विषम परिस्थितियों में भी सभी को अपना और स्वयं को सभी का बनाने को मार्गदर्शित करता है। सारभौमिक कल्याण के पथ पर कोई साथ दे या ना दे, कोई तुम्हारी आवाज़ सुने या सुने "तुम अकेले ही चल पड़ो | नवोदित कलाकार दीक्षित साहू ने बच्चे अमल की भूमिका को बहुत ही सशक्त निभाया। वहीं अन्य कलाकारों में जॉर्ज ग्रोवर ,विकास सैनी, राहुल कुमावत, अंशुल सैनी, सचिन भट्ट, महिपाल, लवीना, लक्ष्य, असलम कुरैशी, पवन शर्मा, अर्चना गुप्ता, रमेश चन्द्र बुनकर, राहुल शर्मा, प्रिंसकुमार, युवराज इत्यादि ने अपने अभिनय एवं कौशल का प्रदर्शन किया। प्रकाश व्यवस्था शहजोर अली ने संभाली। यह नाटक बुधवार को होना था लेकिन मॉक ड्रिल एवं ब्लेक आउट की बजह से नहीं हो सका।