कर्नाटक में परीक्षा हाल में जनेऊ पहनने पर विवाद

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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क्या कोई छात्र परीक्षा हाल में जनेऊ पहन कर जा सकता है ? क्या परीक्षा केंद्र अधिकारी जनेऊ पहनकर आये छात्रों को परीक्षा हाल में प्रवेश होने से रोक सकता है? कर्नाटक में यह विवाद हाई कोर्ट तक पहुँच गया है जब कम से कम कम दो परीक्षा केन्द्रों पर अधिकारियों ने छात्रों को कहा कि वे तभी परीक्षा हाल में प्रवेश पा सकते है जब वे जनेऊ उतार कर आएंगे। 

राज्य में पिछले दिनों सेन्ट्रल परीक्षा टेस्ट हुए। इनका आयोजन  कर्नाटक परीक्षण प्राधिकरण ने किया था। इस केन्द्रीय टेस्ट में पास होने वाले छात्रों को ही इंजीनियरिंग की पढाई के लिए  प्रवेश मिलता है। शिवमोगा  जिले के परीक्षा केंद्र पर परीक्षा  कर्मचारियों/अधिकारियों ने उन दो छात्रों को परीक्षा हाल में इसलिए जाने की अनुमति नहीं दी क्योंकि उन्होंने हिन्दुओं द्वारा पवित्र माने जाने वाले जनेऊ पहन रखे थे। उन्होंने साफ कह दिया कि अगर परीक्षा में बैठना है तो जनेऊ उतारकर आना होगा। दोनों छात्र ब्रहामिन समुदाय से थे। लेकिन उन दोनों ऐसा करने से इनकार कर दिया। 

यह अफवाह भी उड़ी कि  परीक्षा केंद्र पर नियुक्त कुछ कर्मचारियों ने उनको परीक्षा हाल में तब जाने दिया गया जब दोनों के जनेऊ काट कर निकाल दिए गए। लेकिन अधिकारिक  तौर पर बताया गया कि ऐसा नहीं हुआ। हुआ यह था मध्य क्रम के अधिकारियों ने यह कह कर उन दोनों छात्रों को अन्दर जाने से रोक दिया क्योंकि सरकार द्वारा बनाये गए नियमों के अनुसार अगर कोई छात्र धार्मिक चिन्ह लगा कर या पहन कर आता  है तो उसे परीक्षा हाल में प्रवेश करने नहीं दिया जाये। इसमें  हिजाब तथा लाल पीला गमछा प्रमुख रूप से  शामिल था। लेकिन इसमें जनेऊ का उल्लेख नहीं था। अन्य धार्मिक चिन्ह जहाँ पहने हुए कपड़ों के ऊपर होते है जब कि जनेऊ कपड़ों के नीचे धारण  किया जाता है। 

अगर उत्तर भारत को छोड़ दिया जाये तो दक्षिण भारत में आज भी सामूहिक यज्ञोपवीत समारोहों का आयोजन किया जाता है जहाँ नाबालिग बच्चों को जनेऊ या यज्ञोपवीत धारण करवाया जाता है। घटना के विवरण के अनुसार जब दोनों छात्रों ने जनेऊ उतारने से इंकार कर दिया तो मामला केंद्र के उच्च अधिकारियों के पास पहुंचा तब वहीं जाकर उन दोनों छात्रों को परीक्षा देने की अनुमति दी गई। यह कहा गया कि जिन अधिकारियों ने दोनों छात्रों को रोका था उन्हें नियमों  की पूरी जानकारी नहीं थी। जब घटना की सूचना राजधानी पहुंची तो इस केंद्र के तीन कर्मचारियों को तुरंत प्रभाव से निलंबित कर दिया। इनमें एक चौकीदार भी था। इस  चौकीदार ने ही सबसे पहले मुख्य द्वार पर इन छात्रों को रोका था। 

दूसरी  घटना बीदर की जहाँ केंद्र के अधिकारियों ने एक ब्रहामिन छात्र को  परीक्षा हाल में प्रवेश  करने से रोक दिया। कारण उसने जनेऊ पहन रख था। केंद्र के  कर्मचारियों और अधिकारियों ने प्रवेश करने के लिए साफ़ कह दिया कि अगर परीक्षा देनी है तो जनेऊ उतारना पड़ेगा। लेकिन छात्र ने इससे साफ इनकार कर दिया। यह छात्र बिना परीक्षा दिए  ही घर लौटा गया जब मामला समाचार पत्रों के जरिये सामने आया तो इस केंद्र के कई अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया। मुख्यमंत्री  सिद्धारामिया  ने साफ तौर पर कहा कि इस प्रकार की घटनायों को कतई  बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। उन्होंने अपने एक  ईश्वर खांडरे को बीदर में जा कर उस छात्र के परिवार जनों को मिलने लिए कहा। उक्त मंत्री के खुद के कई  निजी  इंजीनियरिंग कॉलेज है। उन्होंने  छात्र के परिवार को यह आश्वासन दिया कि वे अपने कॉलेज इस छात्र को दाखिला देंगे तथा उसकी सारी पढाई काखर्चा भी उठाएंगे। 

जानकारों का कहना है पूर्व में भी ऐसी घटनाएँ हो चुकी है। चूँकि ऐसे मामले बड़े रूप से सामने नहीं आये इसलिए किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया। इस बीच  राज्य की  ब्र्हामिन सभा ने कर्नाटक  हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है जिसमें  यह गया कि जिस छात्र को  परीक्षा नहीं देने दी गई उसके लिए फिर से परीक्षा का प्रबंध किया जाये। याचिका में कहा गया कि सरकार को हिदायत दी जाये वह ऐसे कदम उठाये जिससे इस प्रकार की घटनाएँ फिर से नहीं हों। इसको लेकर  राज्य की राजधानी और अन्य शहरों में प्रदर्शन भी हुए। इन प्रदर्शनों का आयोजन हिन्दू संगठनों ने किया था लेकिन बीजेपी के समर्थकों ने इनमें बढ़ चढ़ कर भाग लिया। यह पार्टी  इस इन दोनों घटनायों को एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने में लगी  है ताकि उनका हिन्दू वोट और अधिक मजबूत हो सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)