सीज फायर की कहानी : टाम कूपर की जुबानी : ज्ञानेन्द्र रावत

पहलगाम आतंकी हमला :

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।

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पहलगाम में बीती 22 अप्रैल को हुए पाक समर्थित-प्रशिक्षित आतंकवादियों के हमले में 27 निर्दोषों की हत्या के बाद 6-7 मई की आधी रात से शुरू 10 मई की शाम लगभग पांच बजे तक घोषित सीजफायर के बीच भारतीय सेनाओं के आपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेनाओं के शौर्य,साहस और रणनीतिक कुशलता-सफलता की कहानी आज देश में घर-घर में गर्व और शौर्य का विषय बन चुकी है। यह राष्ट्र की एकता का प्रतीक भी है और यह भी कि आपरेशन सिंदूर ने दुनिया में भारतीय सेनाओं की प्रतिष्ठा को पूर्व की भांति पुनः स्थापित कर यह साबित कर दिया है कि भारतीय बलिदानी सेना समूची दुनिया में सर्वोत्तम है और यह भी कटु सत्य है कि भारतीय सेना का दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है। फिर आपरेशन सिंदूर स्वदेश निर्मित भारतीय हथियारों की सार्वभौमिक स्वीकार्यता का भी परिचायक है। 

भारतीय सेना द्वारा आपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तानी दहशतगर्दों के ठिकानों जहां उन्हें न केवल अति आधुनिक हथियारों से प्रशिक्षित किया जाता था, आतंकी गतिविधियों हेतु भारत भेजा जाता था, हथियारों का भंडारण किया जाता था, प्रमुख आतंकी सरगनाओं सहित वायु रक्षा प्रणाली,रडार प्रणाली,अवाक्स सिस्टम, वायु सैनिक अड्डे, लडा़कू वायु सैनिक हवाई जहाजों के हैंगर और सैनिक प्रतिष्ठानों को नेस्तनाबूद कर पाकिस्तान को पूरी तरह पंगु बना दिया था। इससे यह साबित हो गया था कि पाकिस्तान भारत विरोध में स्वयं को असमर्थ है। या पाकिस्तानी सेनाओं में भारत विरोध की ताकत शेष रह ही नहीं गयी है। सबसे बडी़ बात यह कि इस आपरेशन में भारत ने पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों के समीप स्थित सरगोधा व नूरखान वायु सेना के अड्डे पर हमला कर यह संकेत दे दिया था कि अब पाकिस्तान का कोई भी हिस्सा उसकी पहुंच से दूर नहीं है। 

यही वह अहम कारण रहा जिसके चलते पाकिस्तान अपनी हेकडी़ भूलकर भारत के मिलिटरी आपरेशन के महानिदेशक से सीजफायर करने का अनुरोध करने पर मजबूर हुआ। गौरतलब यह है कि यह सीजफायर भारत की शर्तों पर हुआ है, किसी तीसरे पक्ष के दबाव में नहीं। वह बात दीगर है कि इस सीजफायर के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पीठ थपथपाएं और दोनों देशों के बीच शांति और कश्मीर मसला सुलझाने में मध्यस्थता करने का ढोल पीटें जबकि भारतीय पक्ष, भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि अब जो भी वार्ता होगी,वह आतंक पर केन्द्रित होगी,किसी अन्य मसले पर नहीं और जो होगी वह दोनों पक्षों के बीच होगी। वह भी पाक अधिकृत कश्मीर पर ही होगी।उसमें किसी तीसरे पक्ष की मौजूदगी का सवाल ही पैदा नहीं होता।

अब बात आती है सीजफायर की,तो इसका खुलासा तो अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ टाम कूपर की जुबानी हो जाता है।टाम कूपर की मानें तो जब पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों के समीप तक स्थित हवाई अड्डों जो सामरिक दृष्टि से पाकिस्तान के लिए अति महत्वपूर्ण थे,पर भारतीय सेनाओं द्वारा वहां तैनात अवाक्स प्रणाली ध्वस्त कर मिसाइल हमला कर उनको तबाह कर दिया जाना पाकिस्तान के लिए चिंता का सबसे बडा़ सबब बना। वह तबतक समझ चुका था कि अब खैर नहीं है क्योंकि पाकिस्तान का कोई शहर-कस्बा और सामरिक दृष्टि से अहम कोई भी प्रतिष्ठान-केन्द्र सुरक्षित नहीं है।भलाई इसी में है कि भारत से तत्काल सुलह की  गुहार लगाई जाये। अन्यथा तबाही सुनिश्चित है। हां इससे विश्व समुदाय भी जरूर चिंतित हुआ। कारण यहां न केवल परमाणु केन्द्र स्थित हैं,वहां यूरेनियम सहित आणविक अस्त्रों के भंडार भी हैं। अमरीका को भी यही खतरा सता रहा था।यही नहीं 10 मई को भारतीय मिसाइल हमले के दिन रावलपिंडी के वायु सैनिक हवाई अड्डे पर पाक के प्रधानमंत्री व सेना प्रमुख के विशेष हवाई जहाज भी खडे़ थे। 

यहां गौरतलब है कि यदि भारतीय सेनाओं का सोच पाक के परमाणु संयंत्र, भंडार और प्रधानमंत्री व सेना प्रमुख के विशेष विमानों को ध्वस्त करना रहा होता तो वह उनको आसानी से ध्वस्त कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि भारत का मुख्य मकसद आतंकियों के ठिकाने, उनके समर्थकों, आतंकी गतिविधियों को संचालित-क्रियान्वयन में सहयोग - समर्थन देने वाले वह मुख्य केन्द्रों को तबाह करना था ना कि नागरिक व परमाणु ठिकानों पर हमला करना जिससे जनधन की भारी हानि होगी। भारतीय पक्ष की केवल आतंकी गतिविधियों और उनके आकाओं पर हमले, उनके खात्मे की नीति का जीता जागता प्रमाण है कि उसका मुख्य मकसद आतंक का खात्मा है। भारतीय पक्ष का यह स्पष्ट कर दिया जाना कि आपरेशन सिंदूर अभी जारी है,वह खत्म नहीं हुआ है। पाकिस्तान सहित वैश्विक समुदाय खासकर पाक समर्थक देशों की चिंता का सबब बना हुआ है।

यह सही है कि सीजफायर हो गया है लेकिन पाकिस्तान पर अभी भी विश्वास नहीं किया जा सकता। वर्तमान में सीजफायर के बाद उसकी गतिविधियां और उसका पूर्ववर्ती इतिहास जीता जागता सबूत है। पाक सरकार द्वारा भारतीय मिसाइल हमलों में मारे गये आतंकियों,ध्वस्त उनके आतंकी ठिकानों और बचे आतंकियों द्वारा पुनं आतंकी गतिविधियों के संचालन हेतु उनको 14 करोड़ सहित मृतकों को करोडो़ं की राशि मुआवजे के रूप में देने की योजना यह साबित करती है कि अभी भी उसे अक्ल नहीं आयी है। पाक सरकार आज भी कट्टरपंथियों के इशारे पर चल रही है। जबकि आतंक और कट्टरपंथ के रहते कोई देश विकास नहीं कर सकता। यह कटु सत्य है। यह समझ से परे है कि आखिर पाकिस्तान चाहता क्या है। उसके रहनुमाओं का सोच क्या है? क्या वह पाकिस्तान के समूल नाश पर तुले हैं। उस दौर में जबकि बलोच विद्रोह पर उतारू हैं,वह एक तिहाई हिस्सा पहले ही कब्जा कर चुके हैं। 

पख्तून अशांत है। वह बलूचों के साथ साथ पाकिस्तान के अत्याचारों से दशकों से न केवल पीडि़त हैं, बल्कि विरोध कर रहे हैं। पाक अधिकृत कश्मीर के लोग पाक के गठन के बाद से ही गुलाम की जिंदगी गुजार रहे हैं। वे आजादी चाहते हैं। सबसे बडी़ बात कर्ज से बदहाल पाकिस्तान के लोग भूखों मर रहे हैं। वे रोजी-रोटी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। पलायन कर रहे हैं। वे अब कहने लग गये हैं कि क्या कारण है कि एक साथ आजाद हुए दोनों देश आज कहां हैं।पाकिस्तान तबाही के कगार पर है जबकि भारत विकास के शीर्ष पर है और विश्व की ताकत बन चुका है। यह नेतृत्व की क्षमता, ईमानदारी और जनता के हितों के लिए कुछ कर गुजरने की भावना का प्रतीक है। दुख इस बात का है कि यह सिलसिला पाकिस्तान में बीते बरसों से लगातार जारी है। यह आखिर कबतक चलेगा। ऐसे हालात में एक न एक दिन पाकिस्तान खंड-खंड हो जायेगा। इसमें दो राय नहीं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)