भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति हावी हो रही है इससे बचाना होगा। यह हमारे देश की संस्कृति के अनुकूल नहीं है। भारतीय संस्कृति की विश्व में सबसे अलग पहचान है। सबसे पहले हमें अपनी मातृभाषा को प्राथमिकता देनी होगी। भाषा ही किसी देश की संस्कृति की मूल पहचान होती है। जन जागरूकता अभियान चलाया जाए।
शिक्षा के माध्यम से भी बच्चों व युवाओं को अपनी सांस्कृतिक विरासत के बारे में जागरूक किया जा सकता है। सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा दे। पुरानी कलाकृतियों व वस्तुओं को सुरक्षित रखे संग्रहालय बनाए जाए और वहां प्रदर्शित की जाए। सांस्कृतिक कार्यक्रमों, देश के पारंपरिक त्यौहारों का आयोजन किया जाए। पाश्चात्य संस्कृति का सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव हमारे खान-पीन और पहनावे पर पड़ा है। भारतीय खानपान यहां की जलवायु के अनुकूल है लेकिन फास्ट फूड का प्रचलन बढ़ गया है इस पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए। पूरे विश्व में भारतीय नारी के पहनावे साड़ी को विदेशी महिलाएं भी बहुत पसंद करती है। वर्तमान समय में जो पहनावा चल रहा है उसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर जन जागरूकता अभियान चला कर, नुक्कड़ नाटक आयोजित कर हमारी संस्कृति को बचाया जा सकता है और हर नागरिक अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी समझ कर अपनी संस्कृति को बढ़ावा दे।
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)।