लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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यह एक कड़वी सच्चाई है कि दक्षिण के इस राज्य में कांग्रेस पार्टी में हर समय गुटबन्दी का बोलबाला रहा है। लेकिन नए साल आगाज़ के साथ ही सत्तारूढ़ पार्टी में जो घमासान छिड़ा हुआ है वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा। इस घमासान में एक तरफ राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारामिया है तथा दूसरी ओर उप मुख्यमत्री डी.के. शिवकुमार है। शिवकुमार के पास न केवल दो महत्वपूर्ण विभाग है बल्कि वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी है। सारी लड़ाई मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर है। शिवकुमार जल्दी से जल्दी राज्य के मुख्यमंत्री बनना चाहते है जबकि राजनीति के पुराने खिलाडी सिद्धारामिया किसी भी हालात में मुख्यमंत्री का पद छोड़ने को तैयार नहीं। वे बार-बार दावा कर रहे है कि वे अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। 2023 के मध्य में जब राज्य में विधानसभा चुनाव हुए थे तो कांग्रेस राज्य में फिर सत्ता में आई थी। उस समय शिवकुमार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वे एक कुशल संगठक माने जाते है। पार्टी को 225 में से 135 सीटें मिली।
शिवकुमार और उनके समर्थक इस दावे के साथ सामने आये कि इस जीत का श्रेय उनको को ही जाता है इसलिए मुख्यमंत्री का पद उनको मिलना चाहिए . दूसरी और सिद्धारामिया न केवल पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके है बल्कि वे एक कुशल प्रशासक भी माने जाते हैं .वित्तीय मामलों पर उनकी पकड़ का हर कोई कायल है.मुख्यमंत्री कौन बने इसका विवाद लम्बा चला। आखिर में यह तय हुआ कि शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री बनाया जाये। उनको न केवल बंगलुरु शहरी विकास तथा जल संसाधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग दिए जायें बल्कि मुख्यमंत्री सिद्धारामिया सभी महत्वपूर्ण निर्णय उनकी सलाह और सहमति से ही करेंगे। शिवकुमार और उनके समर्थक यह दावा करते है कि यह भी तय हुआ था कि सिद्धारामिया ढाई साल बाद मुख्यमंत्री का पद शिवकुमार को सौप देंगे। जबकि सिद्धारामिया और उनके समर्थन यह बात बार दोहरा रहे है कि ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ था।अलबत्ता यह सहमति बनी थी कि उप मुख्यमंत्री बनने के साथ साथ वे लोकसभा चुनावों तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने रहेंगे। दिसम्बर के महीने में शिवकुमार के समर्थकों की गोलबंदी तेज हो गई तथा सिद्धारामिया को हटाने की मांग की जाने लगी।
बदले में इस साल के शुरू में सिद्धारामिया के समर्थकों ने एक के बाद एक कई रात्रिभोज आयोजित कर यह साबित करने की कोशिश की कि विधायक दल का बहुमत सिद्धारामिया के साथ है . इसी बीच विधायक दल की एक बैठक में दोनों गुट खुलकर एक दूसरे के सामने आ गए। सिद्धारामिया के बड़े समर्थक और केबिनेट मंत्री सतीश जराकिहोली ने मांग की कि शिवकुमार को बिना किसी विलम्ब के प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद छोड़ देना चाहिए। एक अन्य मंत्री जी परमेश्वर ने भी यही मांग की। पिछली बार जब सिद्धारामिया मुख्यमंत्री थे तो परमेश्वर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। फिर जब उनको मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया तो उन्होंने जल्दी ही पार्टी के अध्यक्ष का पद छोड़ दिया। उनका कहना था कि एक नेता को एक साथ दो पदों पर नहीं रहना चाहिए। राज्य में पिछला लोकसभा चुनाव शिवकुमार के नेतृत्व में ही लड़ा गया था। लेकिन इस चुनाव में पार्टी को कोई बड़ी सफलता नहीं मिली. पार्टी कुल 28 सीटों में से केवल 9 सीटें ही जीती पाई। यह कहा गया कि इस चुनाव में हार का सारा जिम्मा शिवकुमार पर ही जाता है। वे प्रभावशाली वोक्कालिंगा समुदाय के बड़े नेता है लेकिन इन चुनावों में इस समुदाय ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया। शिवकुमार राज्य के दक्षिण भाग से आते है। यहाँ भी पार्टी लोकसभा का चुनाव अपनी शक्ति के अनुरूप जीत दर्ज नहीं कर सकी।
बताया जाता है कि दिसम्बर के महीने पार्टी आला कमान की बैठक के बाद दोनों गुटों के नेताओं को चेतावनी दी गई थी कि वे गुटबन्दी खत्म करें तथा मिल बैठकर पार्टी और सरकार चलायें। इस चेतावनी के बावजूद दोनों गुट नर्म होने की बजाये गुटबन्दी तेज करने में लगे है। सिद्धारामिया गुट पार्टी आला कमान पर यह दवाब बना रहा है कि शिवकुमार को तुरंत अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए कहा जाये। उनका कहना है कि पार्टी का सारा संगठन बिखरा पड़ा है तथा अगर आज चुनाव हो जाये तो पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ेगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)