केरल में मंदिरों में प्रवेश को ले वेशभूषा पर विवाद
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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उत्तर भारत और दक्षिण के राज्यों में हिंदू  मंदिरों में पूजा पद्धति तथा अन्य कर्मकांडों में बहुत भेद है। उत्तर भारत के मंदिरों में श्रद्धालु जहाँ भगवान अथवा देवी की छू तक सकते हैं। शिव मंदिर में  शिवलिंग का स्वयं जलाभिषेक कर सकते  है। लेकिन  दक्षिण भारत के मंदिरों में इस तरह का पूजा पाठ तथा अन्य अनुष्ठान करने का अधिकार केवल पुजारी के पास है। उत्तर भारत के मंदिरों में भगत कोई भी वेशभूषा  पहने प्रवेश कर सकते है  जबकि दक्षिण के अधिकांश हिन्दू मंदिरों में केवल धोती, जिसे वसति कहा जाता हैं, पहन कर ही जा सकते है। उत्तर भारत में  मंदिर का पुजारी केवल ब्राह्मण ही हो सकता है लेकिन दक्षिण के दो राज्य में, जहाँ बड़ी संख्या में मंदिर सरकार के देवस्थान विभाग के नियंत्रण में है, गैर ब्राहमण भी पुजारी हो सकता है। यहाँ पुजारी को तंत्री कहा जाता है। 

केरल में इन दिनों यह विवाद चल रहा  है कि क्या भगत कमीज पहना कर  प्रवेश  सकते है राज्य में इज्वास समुदाय, जो अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में आता है, के धर्म गुरु स्वामी सचिदानंद, ने अभियान छेड़ रखा है कि राज्य के सभी हिंदू मंदिरों में भगतों के लिए कोई निर्धारित वेशभूषा नहीं होनी चाहिए। यह जरूरी नहीं हो  कि वे  केवल धोती पहन कर ही मंदिर में जा सकते है। वे चाहे तो कमीज़ भी पहन सकते है। राज्य के एक अति, मान्यता वाले सबरीमाला मंदिर में तीर्थ यात्री बदन पर कमीज़ पहन कर प्रवेश करते है। यह अलग बात कि वे काले वस्त्र पहन कर इस मंदिर की यात्रा पर जाते है। राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री  पिनराय ने भी इस मांग का समर्थन किया है। यहाँ इस बात का उल्लेख करना समीचीन होगा कि वाम मोर्चा सरकार ने 2017 में गैर ब्राह्मण पुजारी होने का रास्ता खोला था। इस गैर ब्राह्मण पुजारियों को पूजा पाठ का बकायदा प्रशिक्षण  दिया गया था।     

राज्य के सवर्ण हिन्दू संगठनों, जिसमें नायर सर्विस सोसाइटी प्रमुख है, का कहना हैमंदिरों में सदियों से केवल धोती पहन कर ही भगत मंदिर में प्रवेश करते आये हैं। इस परम्परा को  बिना किसी  कारण के  तोडा नहीं जा सकता। राज्य में पिछले सदी में एक समाज सुधारक नारायण गुरु ने अपने काल में एक सुधारवादी   आन्दोलन चलाया था। जिसके  चलते मदिरों के पूजा वे तथा अन्य व्यवस्थाओं में अनेक परिवर्तन हुए थे। उनके द्वारा चलाया गया यह सुधारवादी आन्दोलन अभी भी किसी न किसी रूप में चल रहा है। 

राज्य के थाल्लासेरी इलाके में भगवान्  जगन्नाथ का एक प्राचीन मंदिर है। यहाँ केवल धोती पहना कर ही प्रवेश के अनुमति थी। कोई पांच वर्ष पूर्व मंदिर की   प्रबंध समिति ने इस बंधन को खत्म कर दिया। लेकिन समिति अपने इस निर्णय को आज तक लागू नहीं कर सकी। परम्परागत ब्राहमण पुजारियों की संस्था शुरू से मदिरों पूजा पाठ पद्धति  में किसी प्रकार के बदलाव का विरोध करती आ रही है। लेकिन इसके बावजूद कईं मंदिरों में पूजा का नियम आदि बदल रहे है। राज्य बहुत अधिक जाने जाने वाले पदमनाभ मंदिर में भगतों  को वेशभूषा में कुछ विकल्प दिए है, यह मंदिर त्रावणकोर राज घराने ने बनवाया था। इसकी व्यवस्था पर आज भी इस पूर्व राज  परिवार का नियंत्रण है। यहाँ वेशभूषा की इतनी कडाई  थी कि यहाँ का राजा भी केवल धोती पहना  कर इस  मंदिर में प्रवेश कर सकता था। आज भी यह राज परिवार इस परम्परा को बनाये हुए है। इस मंदिर में उत्तर भारत के तीर्थ यात्री बड़ी संख्या में संख्या में आते हैं। पुरुष पेंट कमीज़ और महिलाएं सूट सलवार में होती है। इनको  कैसे मंदिर में प्रवेश  दिया इसका एक रास्ता निकाला गया। यहाँ धोती और साडी किराये पर मिलती है। पुरुषों के  कहाँ जाता है कि वे पेंट पर ही धोती लपेट लें। इसी प्रकार महिलाओं को कहा जाता है कि वे सलवार के ऊपर ही साडी बांध ले। प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर में  बहुत पहले से इससे मिलती जुलती व्यवस्था  की गई थी जो सामान्य रूप से काम कर रही  है। उत्तर भारत से आने वाले  तीर्थ यात्रियों को अधिक कठिनाई नहीं होती। 

जो लोग पुरानी परंपरा के हामी है उनका कहना कि भगत समर्पण की भावना से मंदिर में भगवान् के समक्ष जाता है इसलिए उसका  वहाँ प्रवेश  ऐसी  वेशभूषा  हो जिसमें आत्म समर्पण का भाव झलकता हो। इसलिए दक्षिण में मदिरों में केवल धोती पहना कर जाने की परम्परा शुरू हुई थी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)