प्रकृति और मनुष्य के परिवर्तन का गीत
लेखक : वेदव्यास
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार हैं
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सूरज ने करवट बदली है
तुम भी करवट बदलो।
बहुत समय बीता है घर में
अब तो बाहर निकलो।
सोते-जगते दिन बीते हैं
खाते-पीते भी रोते हैं
सुख-दुख में खोई हैं घड़ियां
जीवन धारावाहिक कड़ियां।
सूरज ने अंगड़ाई ली है
तुम भी खिड़की खोलो।
बहुत अंधेरा देख चुके हो
तुम भी तो कुछ बोलो।
देखा समझा काम न आया
भय से पूरा जगत गंवाया
सभी तरह भगवान सजाये
भाग्य भरोसे अलख जगाये।
सूरज ने किरणें बांटी हैं
तुम भी झोली भरलो।
कुदरत के ऐसे मेले में
तुम भी मन की कर लो।