तू किसका बेटा है?

लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com सम्पर्क : 94601 55700 

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आज ठंड अच्छी है । हमारे इलाके की ऑबजरवेटरी फतेहपुर शेखावाटी में है। उसके अनुसार रात का पारा शून्य और एक डिग्री के बीच में रहा। लेकिन ठंड से डरकर राष्ट्रहित में चाय पर चर्चा को कैसे छोड़ा जा सकता है ।तोताराम यथासमय उपस्थित ।  मोदी जी की बात और है कि वे संसद में उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के पदेन अध्यक्ष जगदीप धनखड़ पर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा जैसे तुच्छ मुद्दे को छोड़कर प्रयागराज में अमृत कुम्भ का कुंभाभिषेक करने के लिए जा सकते हैं। तोताराम कोई तीन-पाँच लगाए उससे पहले हमने ही पूछ लिया- तोताराम, तू किसका बेटा है? 

तोताराम अचकचाया और बोला- बचपन में हर काम के लिए ताऊजी से अधिक ‘बिहारी काका, बिहारी काका’ करते करते तेरी जीभ सूखा करती थी आज उसीके बेटे, अपने बाल साख से पूछ रहा है- तू किसका बेटा है? शर्म नहीं आती। ऐसा कुटिल प्रश्न करते हुए जैसे संसद में जातीय गणना पर चर्चा के समय अनुराग ठाकुर ने राहुल गाँधी से किया था।   

हमने कानों से दोनों हाथ छुआते हुए कहा - तोताराम, ऐसे प्रश्न तो संस्कारी पार्टी के लोग किया करते हैं। हम तो ऐसा प्रश्न किसीसे भी नहीं कर सकते हैं। जब सबका परमपिता एक है और सभी जीवों के माँ-बाप होते ही हैं तो किसी से भी ऐसा प्रश्न पूछना नीचता है। कौरवों-पांडवों से कब कब कोई उनके पिता के बारे में पूछता है? और फिर कोई भी अपने कर्मों से कुछ बनता है और अपने कर्मों  के लिए खुद ही जिम्मेदार होता है। हम तो लोकतंत्र के रखवाले राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की बात कर रहे हैं  जो अपने को किसान का बेटा बताकर विपक्षी सदस्यों को हड़का रहे थे। देश के लिए जान दे दूँगा, झुकूँगा नहीं।  

वैसे तो सभी कोई न कोई काम करते ही हैं और समाज को उन कामों की जरूरत भी होती ही है ।अब काम जातियों के अनुसार नहीं रहे । ब्राह्मण जूतों की दुकान खोले बैठे हैं और दलित अध्यापक हैं। फिर भी जाति का ठप्पा लगा ही रहता है।  किसी काम पर किसी जाति विशेष का नहीं होता। क्या ब्राह्मणों का  देश के लिए कोई त्याग-बलिदान नहीं रहा? इनका तो पता नहीं, देश के लिए कब जाँ देंगे लेकिन पक्के ब्राह्मण चंद्रशेखर आजाद ने क्या वीरतापूर्वक  देश के लिए क्षण से जान  नहीं दी?  

बोला- लेकिन किसान कठिन श्रम तो करता ही है और उसकी कमाई मेहनत की कमाई होती है। इसीलिए वह स्वाभिमानी भी होता है।  

फोटो : साभार 

हमने कहा- हम खूब अच्छी तरह जानते हैं । ये हमारे गाँव के पास किठाना के हैं। वहाँ हमारे प्राइमरी में हमारे भाई साहब के स्टूडेंट थे। तब भी शायद किसानी तो करते ही होंगे। उसके बाद सैनिक स्कूल,  चितौड़गढ़  में खेती की, उसके बाद राजस्थान विश्वविद्यालय और उसके बाद हाई कोर्ट, संसद और फिर राजस्थान विधान सभा में हल चलाया। फिर मोदी जी की योजना के अनुसार बंगाल में तृणमूल के खेतों में धान की अवैध रुपाई करने गए थे लेकिन पार पड़ी नहीं । अब राज्य सभा में खुदाई कर रहे हैं। 

बोला- हाँ, और क्या। इनकी मेहनती देह यष्टि से ही इनके पक्के किसान होने का पता चलता है। किसान आंदोलन में 700 किसानों कि मौत में दुख से कितने दुबले भी हो गए हैं।  इन्होंने किसानों को आतंकवादी कहने पर कंगना राणावत को वैसे ही माफ नहीं किया है जैसे मोदी जी ने प्रज्ञा ठाकुर को गोडसे को गाँधी जी से बड़ा देशभक्त कहने पर दिल से माफ नहीं किया था ।दिल्ली में होते हुए भी मोदी जी किसानों से मिलने नहीं गए इसके लिए इन्होंने मोदी जी को दिल से माफ नहीं किया होगा।   

हमने कहा- हमें तो लगता है तोताराम, जिस तरह से आज भी हरियाणा में भाजपा सरकार किसानों पर आँसू गैस के गोले छोड़ रही है , उनके साथ दुर्व्यवहार कर रही है, फसलों का उचित समर्थन मूल्य नहीं दे रही है उससे खफा होकर इस्तीफा न दे दें। बड़े खुद्दार आदमी हैं धनखड़ जी।  

रहीम जी ने भी तो कहा है- 

रहिमन मोहि न सुहाय, अमी पियावत मान बिनु।  

बरु विष देय बुलाय, मान सहित मरिबो भलो ॥  

रहीम जी कहते हैं कि अनादर पूर्वक तो अमृत पीना भी मुझे अच्छा नहीं लगता। सम्मानपूर्वक दिया गया विष भी पी लूँगा क्योंकि अपमान के जीवन से सम्मान की मृत्यु भी श्रेष्ठ होती है।  

लेकिन जब किसी चीज का स्वाद लग जाता है, सुख-सुविधा की आदत पड़ जाती है तो छूटती नहीं। तभी बिहारी कहते हैं- 

बढ़त-बढ़त संपत्ति सलिल मन सरोज बढ़ जात।  

घटत घटत पुनि ना घटे बरु समूल कुम्हलाय ॥  

लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि भले राजनीति में तात्कालिक रूप से समर्थक लोग चुप रहें लेकिन कालांतर में लोक इसका सही तरह से संज्ञान लेता और न्याय करता है। इसके लिए भी कहा गया है-  

मान सहित विष खाय के संभु भये जगदीस 

बिना मान अमृत पिये राहु कटायो सीस 

(लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)