लेखक : रामजी लाल जांगिड
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता
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भारतीय मीडिया के बारे में कोई भी राय बनाने के पहले यह जानना जरूरी है कि मीडिया चला कौन रहा है और वह क्या परोस रहा है तथा क्यों परोस रहा है?
वर्ष 1978 में भारतीय अखबारों के 64.3 प्रतिशत पर उद्योगपतियों का कब्जा था। ये मुख्यतः महानगरों से निकलते थे। एक हजार से ज्यादा अखबार उस वर्ष केवल तीन महानगरों से निकले थे। सबसे ज्यादा दिल्ली से 1909 अखबार निकले। बाद में मुंबई (1160) और कोलकाता ( 1079) का क्रम था। वर्ष 2023 का अंत आते आते भारत में एक लाख से ऊपर अखबार छप रहे थे। 6 साल बाद 1984 में प्रसार संख्या में हिस्से की बात करें तो 36.4 प्रतिशत पर निजी स्वामित्व वाले अखबारों का, 36.4 प्रतिशत हिस्से पर Joint Stock Companies का और 10.4 प्रतिशत हिस्से पर Firms/Patnership वाले अखबारों का कब्जा हो गया था।
पूरे देश में वर्ष 1984 में एक लाख से ज्यादा छपने वाले केवल 38 अखबार थे। इनमें अंग्रेजी के 8 अखबार, और हिन्दी के 6 दैनिक समाचार पत्र थे। गुजराती के 4, मलयालम के 3, बंगला, मराठी तथा कन्नड़ के दो दो, तमिल, तेलुगु और ओडिया में एक एक दैनिक एक लाख से ज्यादा छपते थे। यानी आज़ादी के 37 साल बाद अंग्रेजी और सात भारतीय भाषाओं में मिलाकर 38 दैनिक अखबार एक लाख से ऊपर प्रसार संख्या पा सके थे। इनमें पहले दो स्थानों पर आनंद बाजार पत्रिका (4,13,494) और जुगांतर (3,45,273) थे। दोनों कोलकाता से छपने वाले बंगला दैनिक थे।
वर्ष 1978 के अंत तक टेलीविजन प्रसारण करने वाले 160 देशों में से 111 देशों में रंगीन टेलीविजन पहुंच चुका था। भारत में वर्ष 1959 में पहला टेलीविजन केंद्र खुला। 25 अप्रैल 1982 को रंगीन टेलीविजन पर प्रसारण हुआ। तब कुछ उद्योगपतियों को लगा कि रंगीन टेलीविजन पर समाचार चैनल खोल लें तो कमाई कई गुणा बढ़ सकती है। इसलिए धड़ाधड़ चैनल खुलने लगे। उन्होंने सबसे पहले सम्पादक पद समाप्त किया। यानी गधे का रस्सा खोल दिया। सम्पादक जांच के बाद ही खबर छापते थे। एक तरह से छलनी का काम करते थे। इसके बाद Anchor नामक गधे लाए गए। इनका काम दो जालीदार टोपियां पहने व्यक्तियों को दो तिलक धारियों से भिड़ाने का है। छींटाकशी, धमकी और चिल्लाने को बहस का नाम दे दिया गया। अब सूचना, शिक्षा और मनोरंजन की जगह TRP की फसल काटने का काम गधों को दे दिया गया। प्रेत का काम टी.वी. चैनल के मालिक करने लगे हैं। उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना है।
उत्तेजना,हिंसक व्यवहार, देख लेंगे के नारे लगाते हुए व्यर्थ के मुद्दों पर सारा समय नष्ट कर देते हैं। (लेखक का अपन अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)