हिन्दी ने मुझे क्या दिया ? : रामजी लाल जांगिड
लेखक : रामजी लाल जांगिड 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता

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हिन्दी हर भारतीय को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देती है। यदि गोआ के कोंकणी भाषी परिवार में मंगेश गांव में पैदा हुई लता केवल अपनी मातृभाषा में अभंग गाती रहती तो उसका नाम केवल एक छोटे से क्षेत्र के लोग ही जानते। मगर हिन्दी में गीत गाने से ही वह भारत कोकिला बन सकी। यदि हेमामालिनी, रेखा और वैजयंती माला केवल तमिल फिल्मों में ही काम करती रहती तो वे सांसद नहीं बन पातीं। यदि राज कपूर और वी.शांताराम अपनी अपनी मातृभाषाओं में ही फिल्में बनाते रहते तो उन्हें अखिल भारतीय स्तर पर ख्याति नहीं मिल पाती। भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए कम से कम पांच सौ आम सभाओं में देश भर में हिन्दी में भाषण देना जरूरी है। श्रीकामराज और श्री देवेगौड़ा हिन्दी के वक्ता नहीं थे, इसलिए वे स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और श्री नरेन्द्र मोदी की तरह अखिल भारतीय स्तर पर प्रभाव नहीं छोड़ सके।

मैंने अपना भाषण पहली बार 28 नवम्बर 1949 को पांचवीं कक्षा में पढ़ते हुए दस साल 21 दिन की आयु में हिन्दी में अपने विद्यालय के छह वर्ष पूरे होने पर राजस्थान के पहले मुख्यमंत्री स्वर्गीय हीरा लाल जी शास्त्री के स्वागत में दिया था।

हिन्दी में भाषण देने का सिलसिला स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय में जारी रहा। अंत में वर्ष 1979 में भारत सरकार के सूचना व प्रसारण 'मंत्रालय के अंतर्गत

स्थापित भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली में भारतीय भाषा पत्रकारिता विभाग के संस्थापक अध्यक्ष पद तक हिन्दी में प्रवीणता के कारण ही पहुँच सका। बिना खर्ची, बिना पर्ची, बिना सिफारिश के। न किसी विधायक और न किसी सांसद से मदद के लिए आज तक मिला। जरूरत ही नहीं पड़ी। 

वर्ष 1983 में नई दिल्ली में हुए तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन की जन संचार सम्बन्धी गोष्ठी की अध्यक्षता करने का सौभाग्य मिला। इस सम्मेलन के अवसर पर मैने विश्व भर में हिन्दी की प्रगति दिखाने वाली प्रदर्शनी का आयोजन भी किया। इस सम्मेलन की स्मारिका में मेरा लेख छपा- "विश्व की प्रमुख भाषाओं में हिन्दी का स्थान।" इसमें मैंने बताया कि विश्व की 16 प्रमुख भाषाओं में पांच भारतीय भाषाएँ हैं। भारतीय भाषाएं कम से कम 137 देशों में बोली जाती है। बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से हिन्दी भाषी चीनी भाषा बोलने वालों के बाद दूसरे स्थान पर हैं। वर्ष 1996 में  ट्रिनिडाड और टोबेगो में हुए पांचवें विश्व हिन्दी सम्मेलन की स्मारिका में भी मेरा लेख छपा था। विषय था-"

"अंतरराष्ट्रीय संचार व्यवस्था और हिन्दी"

मुझे 13 व 14 सितंबर 2019को विश्व हिन्दी परिषद और राजभाषा विभाग गृह मंत्रालय, भारतसरकार तथा 2020 में हिन्दी प्रचारिणी सभा, मारीशस ने सम्मानित किया था।