व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)
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आज तोताराम ने आते ही बरामदे का मुआयना किया और नाक-भौं सिकोड़ते हुए कहा- मास्टर, अमृतकाल भी आगया, मोदी जी 3.0 चल रहा है। नई संसद बन गई, 2047 का एजेंडा तय हो गया। इकोनोमी 10-15 ट्रिलियन की हुई जा रही है लेकिन तेरे इस दीवाने आम की शोभा वही की वही बनी हुई है। वही नाली की बदबू, वही नाली के किनारे उगी गाजर घास, वही सड़क पर बनी गोबर की रंगोली और बरामदे का उखड़ा फर्श । कोई भला आदमी आए भी तो कैसे?
हमने कहा- तेरे होते कोई भला आदमी क्या खाकर यहाँ आएगा? एक अकेला तोताराम सब पर भारी।
बोला- मान ले, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की गणेश पूजा में शामिल होने की तरह मोदी जी अपने यहाँ के लोकदेवता रामदेव के दर्शन करने या फिर खाटू श्याम जी के दरबार में हाजरी लगाने या फिर सालासर के हनुमान के मेले में ‘कनक दंडवत’ करते हुए यहाँ भी टपक पड़े तो? फिर कहाँ बैठाएगा?
हमने कहा- तुम्हारी इस बात में तो दम है । मोदी जी आज भले ही दिन में दस बार नई नई ड्रेसें बदलते हों, हजारों करोड़ के हवाई जहाज में उड़ते हों, सात एकड़ में फैले सर्व सुविधा सम्पन्न आवास में रहते हों लेकिन वे मन से मूलतः हैं फकीर। अगर किसी को उर्दू से परहेज हो तो कहें सन्यासी हैं। सामान्य आदमी की बात और है कि वह धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ से होता हुआ ‘सन्यास आश्रम’ में पहुंचता है लेकिन फकीर या सन्यासी ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधा सन्यास आश्रम में प्रवेश करता है या धर्म से सीधा मोक्ष में छलांग लगाता है। सो मोदी जी पर कोई भी नियम लागू नहीं हो सकता।
उन्होंने 35 साल भीख मांगी है तो वे किसी के भी घर में किसी भी पूजा-उत्सव में शामिल हो कर प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।
बोल- और क्या?
हमने कहा- तो फिर ठीक है । छोड़ सब चिंता-फिक्र । एक फकीर को बैठने के लिए क्या चाहिए ? यह धरती सबका भार उठाती है। बैठ जाएंगे यहीं हम दोनों भाइयों के साथ और पी लेंगे एक चाय। न सही उन्हें चाय पिलाते समय सोने के तारों से अपना नाम कढ़ा 15-20 लाख का सूट। फिर भी तू कहेगा तो नए कप-प्लेट निकाल देंगे, कल ही पोती लाई थी चार का एक सेट।
बोला- बात कप-प्लेट की नहीं, इस बरामदे के डोल की है। जगह जगह से उखड़ा हुआ पलस्तर, और छत से लटकते जाले।
हमने कहा- तोताराम, हमारा मुँह मत खुलवा। तेरे 10-20 हजार करोड़ के राम मंदिर और सेंट्रल विष्ठा से तो बेहतर है हमारा यह बरामदा । कम से कम पानी तो नहीं टपकता। वैसे भी यहाँ क्या लेने आएंगे? न तो यहाँ चुनाव होने वाले हैं और न ही यहाँ कोई राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत। फिर हम कौनसे न्यायाधीश हैं जिनसे उनका कोई काम अटका है?
बोला- मास्टर, इतना छोटा नहीं सोचना चाहिए। अरे, घर में धार्मिक कार्यक्रम है तो अड़ोस-पड़ोस की तरह मोदी जी को भी न्यौता दे दिया तो क्या हो गया ? मोदी जी ठहरे भक्त, सरल, भले, भोले और भाले आदमी। चले आए। कोई राहुल गांधी की तरह अकड़ू थोड़े ही हैं जो अंबानी जी न्यौता देने आए और साहब चले गए पूर्व दिल्ली के गुरु तेगबहादुर नगर के राज-मिस्त्रियों के बीच। मोदी जी ने संस्कारवश आरती की थाली घुमा दी, बप्पा का आशीर्वाद ले लिया तो क्या हुआ। मोदी जी तो फकीर हैं। उन्हें क्या चाहिए? किसके लिए चाहिए ? देश-दुनिया के लिए अमन-चैन की कामना ही तो की होगी।
वैसे तूने ध्यान दिया हो तो मोदी कितना अच्छी तरह से पूजा की थाली घुमा रहे थे ! और सिर पर गांधी टोपी। बिल्कुल मुंबई के सामान्य डिब्बे वाले लग रहे थे। कोई धूमधाम-तामझाम नहीं। इस सहज, सरल, विग्रह में तो एक बार अमित शाह भी उन्हें न पहचान पाएं।
हमने कहा- ये सब भजन-पूजन, आरती-जागरण एक साल बाद जब 75 के होकर निर्देशक मण्डल में बैठ जाएँ तब कर लें या फिर निकल पड़ें शंकराचार्य की तरह धर्म की ध्वजा फहराने के लिए। धर्म व्यक्तिगत कल्याण का मार्ग है । देश-दुनिया में अमन-चैन आरती घुमाने से नहीं होगा। उसके लिए अपने अंधभक्तों को नफरती बयानबाजी से रोकना चाहिए । सब मामलों में संवेदनशीलता और सम भाव दिखाना चाहिए । इससे अच्छा तो सवा साल बाद ही सही, मणिपुर ही चले जाते । सत्ता और न्यायपालिका की यह निकटता संदेह पैदा करती है।
बोला- इस देश और दुनिया ने मोदी को समझा ही नहीं। वे छिति, जल पावक, गगन, समीरा की तरह सब बंधनों और औपचारिकताओं से परे हैं।
हमने कहा- कहीं ऐसा तो नहीं कि जब चादर लगी फटने, तो खैरात लगी बँटने। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)