पद्मश्री प्रो. (डा.) गोपालकृष्ण विश्वकर्मा ने देश को क्या दिया?

लेखक : रामजी लाल जांगिड 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता

www.daylife.page

गोरा बाजार, गाजीपुर (पूर्वी उत्तरप्रदेश) में जन्मे प्रो. (डा.) गोपालकृष्ण विश्वकर्मा ने गाज़ीपुर, काशी और लखनऊ में शिक्षा पाने के बाद 24 वर्ष की आयु में अमरीका के विख्यात अस्पताल मेयो हास्पिटल में नौकरी शुरू की थी।कई देशों में प्राप्त अनुभव के आधार पर उनका पहला शोध पत्र

27 वर्ष की आयु में (वर्ष 1961) छपा। जयपुर में वर्ष 1961 में ही Orthopaedic Association के सम्मेलन में उन्होंने पहली बार शोधपत्र प्रस्तुत किया। उसी साल दो पत्रिकाओं में हड्डियों और जोड़ों की टी.बी. की चिकित्सा पर उनके शोध लेख प्रकाशित हुए। उसके बाद वह देश और विदेशों में हुए सम्मेलनों में लगातार शोध पत्र पढ़ते रहे। तथा शोध पत्रिकाओं में शोध लेख छपवाते रहे। शोध का निर्देशन करते रहे। उन्होंने सात मेडिकल कालेजों में 25 वर्षों से ज्याद समय तक एम.बी.बी.एस. और एम.एस. के छात्रों तथा छात्राओं को भारत एवं ईरान में पढ़ाया।

उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में भारत का कई बार प्रतिनिधित्व किया। 1963 में उन्होंने विश्व में रीढ़ की नकली हड्डी के सांचे का पहली बार प्रत्यारोपण किया। 1977 में उन्होंने गोवा में भारत को पहला हड्डी बैंक बनाया। 1973 से 1977 तक ईरान के झुंडी शाहपुर विश्वविद्यालय में  उन्होंने दुर्घटनाओं में अलग हुए अंगों को फिर से जोड़ने और कूल्हे की टी.बी. की चिकित्सा शुरू की। नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में अप्रैल 1983 से मई 1986 तक केंद्रीय हड्डी रोग संस्थान की स्थापना की। इसमें हड्डियों और जोड़ों का प्रत्यारोपण शुरू किया। Arthriits के लिए Implant Artho Plasty शुरू की।  उन्हें भारत के प्रधान मंत्री का प्रधान सलाहकार बनाया गया। 

उनके योगदान को सम्मान देते हुए उन्हें सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली के चिकित्सा अधीक्षक (Medical Superintendent) रहते हुए वर्ष 1983 में मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया का रजत जयंती पुरस्कार और डा. बिधान चंद राय पुरस्कार दिए गए। पूरे भारत में तब तक केवल चार डाक्टरों को यह सम्मान मिला था। भारत सरकार ने हड्‌डी सम्बंधी रोगों की चिकित्सा के क्षेत्र में उनके योगदान की सराहना करते हुए उन्हें वर्ष 1985 में पद्मश्री से अलंकृत किया। वर्ष 1973 से 1977 तक ईरान में हड्डी के रोगों की चिकित्सा के लिए केंद्र स्थापित करने के लिए उन्हें ईरान के शाह ने एक हजार रियाल का नकद पुरस्कार दिया था। भारत सरकार ने उन्हें आठवीं पंचवर्षीय योजना बनाने वाली विशेषज्ञ समिति में भी रखा था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)