व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)
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आज तोताराम बहुत व्याकुल और उद्विग्न अवस्था में बरामदे में दाखिल हुआ जैसे कि कोई अपने पीछे पड़े पागल कुत्ते से बच गया हो। वैसे बरामदे में दाखिल होना कोई संसद में दाखिल होने या सत्ताधारी पार्टी में शामिल होने जैसा उल्लेखनीय काम नहीं है। हमारा बरामदा सड़क पर खुलता है जिसमें तोताराम क्या, कोई भी रास्ते चलता बैठ-सुस्ता सकता है।
बोला- मास्टर एक गिलास पानी ला।
हमने अनुभव किया कि यह चाय से पहले पिया जाना वाला सामान्य पानी नहीं है। पानी लाकर दिया तो पहले तो तोताराम ने अपने चेहरे पर पानी के छींटे मारे, थोड़ा पानी पिया। उसके बाद तोताराम ने पानी का गिलास एक तरफ रख दिया। तभी उसे एक जोरदार उबकाई आई और उसने बरामदे से बाहर झुकते हुए एक ही बार में जो पिया था वह सारा पानी उलट दिया।
हमने पूछा - जब तबियत खराब थी तो एक चाय का लालच छोड़ता और शांति से घर बैठता।
बोला- मास्टर, यह मजाक की बात नहीं है। जब से प्रसादम में चर्बी और गौ मांस होने की बात सुनी है तब से रह रहकर उबकाई आती है। एक घोर अपराधबोध मन मस्तिष्क पर हावी हो रहा है।
हमने कहा- तोताराम, ये सब अंधभक्तों, धर्म-धन-सत्ता के ठेकेदारों की समस्याएं हैं। वे ही चन्दा देने वाले, वे ही प्रसादम तैयार करने करवाने वाले, वे ही बेचने वाले और वे खाने वाले। वे ही आरोप लगाने वाले, वे ही आस्था का हल्ला मचाने वाले सब ग्लानि, वे ही ठेकेदार, वे ही सरकार। घोड़ा खाए घोड़े के धणी को । तुझे क्या? तू तो पश्चाताप छोड़ और शांति से बैठ । अभी एक बढ़िया सी चाय बनवाते हैं।
और फिर तू कौनसा तिरुपति या अयोध्या के प्राणप्रतिष्ठा समारोह में गया था। वहाँ तो या तो हिन्दुत्व के प्राण मोदी जी, भागवत जी, आनंदीबेन, सभी बड़े बड़े देवताओं में प्रसिद्ध भक्त अंबानी जी अदानी जी, महानायक अमित जी, कंगना, अक्षयकुमार आदि गए थे। उनमें से तो किसी की तबियत आजतक खराब नहीं हुई।
बोला - मास्टर, मैं तो कहीं नहीं गया लेकिन अपने यहाँ से सरकारी खर्चे पर संघ और भाजपा के कई प्रचारित भक्त अयोध्या गए थे। उनमें से एक सीताराम अग्रवाल मिला था। उसीने लड्डू का एक टुकड़ा मुझे दे दिया था। वहाँ भी तो वे तिरुपति वाले चर्बी के एक लाख लड्डू सप्लाई हुए थे। मुँह में रखते ही उसमें से बासी-बासी बदबू तो अनुभव हुई लेकिन प्रसाद मानकर किसी तरह गटक गया। तब तो कुछ नहीं हुआ लेकिन अब जब से यह ‘प्रसादम’ विवाद हुआ है तब से रह रहकर उबकाई सी आती है।
हमने कहा- इस देश में इतना दूध ही नहीं होता कि 150 करोड़ लोगों की जरूरत का घी बनाया जा सके। फिर गली गले में, शादीब्याह में, जिस तिस कार्यक्रम में शुद्ध घी, पनीर, मावे की मिठाइयां बनती हैं, यह क्या है ? बहुत बड़ा झूठ और भ्रष्टाचार है।
बोला- तो फिर ये बाबा बने व्यापारी संत-योगी ‘दिव्य’ लोग इतना घी कहाँ से बनाते-बेचते हैं।
हमने कहा- वह तो योग-आस्था-धर्म और श्रद्धा का कमाल है। और फिर जिस देश में कुछ भी दे सकने वाली कामधेनु, नंदिनी, कल्पवृक्ष और पारस पत्थर होते हैं वहाँ घी जैसी वस्तु को लेकर क्या सोचना? अगर सोचना ही है तो सरकारों को इन सब पाखंडी खाद्य और दवा उत्पादकों-व्यापारियों से जनता को बचाने के बारे में सोचना चाहिए जो हर चीज में मिलावट करते हैं और जनता के जीवन से खिलवाड़ करते हैं।
बोला- वे सब तो सरकार को इलेक्शन बॉण्ड के माध्यम से चन्दा देते हैं।
हमने कहा- तो फिर चिंता मत कर। यह मीरा का देश में भी तो है। वह मीरा जो कृष्ण के नाम पर विष पीकर भी अमर हो गई। और फिर अगर तुझे ज्यादा की पश्चाताप हो रहा है तो अपने यहाँ प्रायश्चित का भी बड़ा सरल विधान है। दो छींटे नकली गंगाजल के मार और छुट्टी!
ज्यादा ही पछतावा है तो रुक अभी कुछ देर में गौमाताएं दूध देने के बाद नगर-भ्रमण के लिए निकलेंगी। ताज़ा ताज़ा गोबर उपलब्ध हो जाएगा। प्लेट भर गटक लेना और सब पवित्रम पवित्रम हो जाएगा। और रही बात भगवान की तो उन्हें भी कोई खतरा नहीं है क्योंकि वे तो कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)