चुनावी वायदे करना आसान, पूरे करना कठिन

लेखक : लोकपाल सेठी 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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चुनावों से पहले सभी राजनीतिक दलों के नेता मतदाताओं को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वायदे करते है। इनमें से कई वायदे ऐसे होते है जिन्हें पूरे करना लगभग असंभव सा होता है। फिर भी सभी दलों में बड़े-बड़े से दावे करने की होड़ लगी रहती है। इस समय तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंता रेड्डी ऐसे ही दौर से गुजर रहे हैं  . इस समय उन्हें कोई रास्ता नजर आता कि पिछले साल दिसम्बर में हुए विधान सभा चुनावों में उन्होंने जो वायदे किये थे उन्हें पूरा कैसे करें। दिसम्बर के चुनावों  के बाद कांग्रेस इस राज्य में दस साल बाद सत्ता मेंआई थी। 

पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र अन्य वायदों के साथ यह वायदा भी किया गया था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो पंचायती राज सस्थानों के चुनावों में अन्य पिछड़ा  वर्गों के लिए 42 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जायेंगी। शहरी निकायों के संस्थानों में भी सीटों में इतना आरक्षण दिया जायेगा। चूँकि पंचायती राज संस्थानों  का कार्यकाल इस साल 2 फरवरी को होना था इसलिए यह उम्मीद की जा रही थी कि सत्ता संभालने के तुरंत बाद उनकी सरकार तुरंत ऐसे कदम उठाएगी कि  जिससे इस प्रस्तावित आरक्षण के साथ चुनाव हो सकें। लेकिन सरकार ने कोई कदम नहीं  उठाया और इसी बीच लगभग 13,000  ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो गया। पिछले नौ महीनो से सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी इन संस्थानों का काम चला रहे है। पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधि हर समय अपने इलाके में ही रहते थे इसलिए वे सभी समस्यों का निदान स्थानीय स्तर पर ही कर लेते थे। इस समय एकअधिकारी के पास  2 या 3 पंचायतो का कार्यभार है इसके चलते  वे एक ही स्थान पर हर समय उपलब्ध नहीं हो पाते। पचांयत स्तर पर होने वाले विकास के काम भी रुके पड़े है। केंद्रीय व्यवस्था के अनुसार योजना राशि केवल  उस  हाल में ही आवंटित की जाएगी जब वहां निर्वाचित पंचायत होगी। मोटे तौर पर 2000 करोड़ की राशि इन पंचायतों को देय है इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वहां कोई भी काम नहीं हो पा रहा। 

अधिकारिक आंकड़ो के अनुसार 130 जातीय  समूह जो अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में आते हैं। प्रत्येक जातीय समूह की संख्या के अधिकारिक आंकडे उपलब्ध  नहीं है। इसलिए अन्य पिछड़ा वर्ग में किस जातीय समूह कितनी आरक्षित सीटें मिलेगी यह अभी नहीं कहा जा सकता। क़ानून और नियमों के अनुसार कौन समूह किस श्रेणी मैं आता है इसका काम एक आयोग ही कर सकता है। राज्य सरकार ने ऐसा आयोग गठित करने की दिशा में अभी कोई कदम नहीं  उठाया है। कुछ विधि विशेषज्ञों का यह कहना है कि यह काम बिना आयोग गठित किये सरकार अपने स्तर पर भी कर सकती है। लेकिन बिहार के मामले में पटना हाईकोर्ट के निर्णय, जिसे सर्वोच्च्च न्यायलय ने भी सही ठराया है, ऐसा करना गैर कानूनी है। उल्लेखनीय है बिहार में नितीश कुमार सरकार ने पिछले साल राज्य में जातीय जनगणना  करवाई थी। इसे पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने इस जातीय जनगणना को अवैध बताया था। कोर्ट का कहना था कि राज्य सरकार को एक आयोग का गठन करना चाहिए था, जो अधिकारिक रूप से जनगणना करवा सकता है। बिहार सरकार ने पटना हाई कोर्ट के इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायलय में चुनौती दी लेकिन देश की सबसे अभी अदालत ने पटना हाई कोर्ट के निर्णय को सही बताया था।   

इस सारे मुद्दे को लेकर रेवंत रेड्डी सरकार बड़े दवाब में है। उन पर पार्टी के भीतर से तथा विपक्षी दलों का दवाब लगातार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में  पंचायतों के चुनाव नहीं होना एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है तथा वहां सरकार विरोधी सुगबुगाहट का दौर तेजी से चल रहा है। कांग्रेस पार्टी के स्थानीय कार्यकर्त्ता  पंचायतो के नेताओं के निशाने पर है। यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस को ऐसे चुनावी वायदे नहीं करने चाहिए थे जो वह पूरे नहीं कर सके। अगले साल के शुरू में  शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव होने है। कांग्रेस के चुनावी वायदे के अनुसार इनमें भी अन्य पिछड़ा वर्ग को 42 प्रतिशत आरक्षण  देना है। इसलिए यह माना जा रहा है कि सरकार इन चुनावों को टाल सकती है। विपक्षी दल अभी से इस मुद्दे को लेकर सत्तारूढ़ दल पर आक्रामक रुख आ गया है।  (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)