एक पर्यावरणविद् व प्रकृति प्रेमी हैं।
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पारिस्थितिकी सिस्टम को पर्यावरण के अनुकूल तथा आर्द्र भूमि कों नम बनाएं रखने में नदियों का बड़ा महत्व होता है, यह अक्सर देखा भी जाता है कि जितनी बड़ी नदी होगी उतना ही बड़ा उसका बहाव क्षेत्र होने के साथ वनस्पतियों वन्य जीवों जलीय जीवों पक्षियों का विचरण करने प्रजनन व अण्डे देने के लायक उनके अनुकूल परिस्थितियां बनी रहती है, जिससे प्रत्येक मौसम में एक सुनहरा दिल को छूने वाला स्वच्छ सुंदर शुद्ध वायु से भरपूर वातावरण बना रहता है। वनस्पति की बहुतायत होने से वायु की गुणवत्ता के साथ नदी के जल को शुद्ध पवित्र बनाने वर्षा जल संग्रहण करने भूगर्भीय जल स्तर को बढ़ाने में छोटी छोटी झाड़ियों बड़े वृक्षों का जितना योगदान होता उतना ही नदी के भूगर्भीय जल श्रोतों को जल संग्रह करने हेतु उपयोगी बनाएं रखने में वन्य जीवों का योगदान होता है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में नदियों के योगदान को भुलाया जाने के साथ उन्हें हेय द्रष्टि से देखा जा रहा है उपेक्षा की शिकार हों रहीं हैं।
ख़ैर जो भी है आज नदियों की सहायक नदी नालों पर जल संग्रह करने भूमि में जल स्तर बढ़ाने के नाम पर पिछले दो तीन दशकों से जों कंक्रीट के छोटे बड़े बांध बनाएं जा रहें हैं वो वास्तविक रूप से नदी के स्वरूप को खत्म करने और एक कंक्रीट की मोटी दीवार के नाम पर करोड़ों खर्च कर विकास के नाम नदी का विनाश करना है। इसे हम यह भी कह सकते हैं कि "नदियों का सही पतन हीं बांधों के निर्माण से शुरू हुआं है"।
बांध मुख्य धारा पर कम और सहायक नालों पर बहुतायत में बनने से नदी में पानी की आवक कम हो जाती है, जिससे वह सिकुड़ने लगती है, धीरे धीरे सिकुड़ने के साथ अतिक्रमण बढ़ने लगता है और नदी अपना अस्तित्व खो ने के साथ सभी जीव जन्तुओं पक्षियों जानवरों वनस्पतियां नष्ट होने लगती है, आर्द्र भूमि उष्ण बनने लगतीं हैं, जल स्तर गिरता जाता है, पारिस्थितिकी तंत्र लड़खड़ाने लगता है, पर्यावरणीय ख़तरों कों बढ़ावा मिलने लग जाता है परिणाम स्वरूप वायु की शुद्धता गुणवत्ता खत्म हो जाती है, जैसा आज के परिवेश में देखने को मिल रहा है। नदियां जों पानी अपने पेट में सोख कर भूगर्भीय जल स्तर बढ़ाती है उतना बांध बढ़ाने में कभी भी मददगार नहीं हुए ना ही बांधों ने पारिस्थितिकी सिस्टम को अनुकूल बनानें का कोई काम किया बल्कि पानी नदी व स्थानीय पारिस्थितिकी व्यवस्थाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता दिखाई दिया है। इस वर्ष इंद्र देव की कृपा होने से वर्षा अच्छी हों रहीं हैं नदी नाले उफ़ान पर चल रहे हैं, बांधों में चादरें चल रही है, नदियां कल-कल करती बह रही है, झरनें मनमोहक बन रहें हैं, लोगों को एक नई आशा दिखाई देने लगी है, चारों ओर पानी आफ़त बना हुआ है, पर सवालिया निशान यह लगता है कि कुछ स्थानीय नदियों में एक ग्राम पानी नहीं दिखाई दिया, जबकि वर्षा औस्त सही है नियमित वर्षा चल रही है।
चार मास अर्थात चौमासा जब सही बरसें तब नदी हीं नहीं नाले भी झरनों के जैसे हमेशा अपनी धुन में कल-कल करते बहते दिखाई देने लगते हैं, लेकिन अफसोस है इस वर्ष कुछ स्थानीय नदियों को एक बुंद पानी नसीब नहीं हो सका, यहीं नदियां चार से पांच दशकों पुर्व अपने किनारे बसे गांवों कस्बों में तबाही मचाती रहतीं थीं जो आज स्वयं बहुतायत में वर्षा होने के बाद भी अपने कंठ गीले नहीं कर सकीं, हजारों की संख्या में वन्य जीव विचारण करते थे, सैकड़ों प्रजातियों के वनस्पतियों पक्षियों को देख मन गदगद करता था, कुओं में पानी छलकता, चारों ओर खुशहाली होती लेकिन सबको नोच लिया गया, ना वनस्पतियों को देख पाते ना वो वन्यजीव पक्षी दिखाई देते, बस दिखाई देने योग्य बचा है एक सुकड़ी स्वरूप में नदी गंदगी से भर पूर मेला ढोने वाली जों स्वयं अपने आप को बचाने में कामयाब नहीं हैं वो हैं राजस्थान राज्य के अलवर जयपुर कोटपुतली- बहरोड़ नीमकाथाना जिलों में बहने वाली नदियां जिनके रास्ते में बने छोटे बड़े बांधों अतिक्रमणों से आज बुचारा का बांध, छितोली का बांध बीसाकाबास जैसे बांध खाली होने के साथ आगामी समय में जल समस्या और अधिक उभर कर सामने आ सकती है वहीं अलवर की जल पूर्ति करने वाला जयसमंद बांध का नहीं भरना भी चिंता का विषय है। अकेले नारायणपुर वाली नदी में पानी नहीं छलकने से दर्जनों गांवों के जल स्तर पर प्रभाव पड़ रहा है कारण नदी पेट में उद्गम स्थल से नारायणपुर तक बनें दो दर्जन से अधिक चेकडैम बांध रहे हैं अतः नदियों के बहाव क्षेत्रों में बने बांधों को हटाने से ही नदियां अपने अस्तित्व को बचा सकेंगी बड़े बांधों में पानी भर सकेगी वहीं पारिस्थितिकी तंत्र अनुकूल बनने के साथ पर्यावरण संरक्षण में इजाफा होगा वन्यजीव पक्षियों को पुनः एक जीवन जीने की आशा बन सकेगी जब नदियां बहने लगेंगी। लेखक के अपने निजी विचार है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)