क्या टिप्पणी थी विद्वानों की मेरी चौथी पुस्तक के बारे (।।।) : रामजी लाल जांगिड़

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नई दिल्ली। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग के अध्यक्ष प्रो. (डा.) वासुदेव शरण अग्रवाल का नाम भारतीय इतिहास के जानकारों में आदर से लिया जाता है। ज्यादा पुस्तकें पढ़ने से उन्हें नेत्र कष्ट हो गया। इसलिए मेरी चौथी पुस्तक 'इतिहास के स्फुट लेख' पाने के बाद उन्होंने मुझे 25-08-1964 को लिखा-

"मैं नेत्र कष्ट के कारण आजकल स्वयं कुछ लिख पढ़ नहीं पाता" फिर भी उन्होंने विशेष कृपा करते हुए मेरी पुस्तक किसी से पढ़‌वा कर सुनी और अपने कांपते हुए हाथों से लिखा "उसकी सामग्री पाठकों के लिए सामान्यतः उपादेय है।

मैं आपके परिश्रम की सफलता चाहता हूँ।"आलोचना (त्रैमासिक) के सम्पादक श्री शिवदान सिंह चौहान की गिनती हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकारों में की जाती है। उन्होंने दो पृष्ठों की टिपणी में लिखा- "मेरे विचार में उनका यह प्रयत्न सराहनीय है। वे इतिहास के परिश्रमी और चिंतनशील विद्यार्थी हैं और हिन्दी पाठकों की इतिहास चेतना को जगाने के लिए सीधे सादे सरल ढंग से उन ऐतिहासिक घटनाओं और शक्तियों का विवरण विवेचन प्रस्तुत करने में पूरे उत्साह से प्रयत्नशील हैं। जिन्होंने समय समय पर मानव इतिहास को गति दी है या उसके विकास को अवरुद्ध किया है। इतिहास की जानकारी अंततः मनुष्य का आत्मज्ञान है। उससे हम अपने अतीत और वर्तमान को समझते हैं और भविष्य का दिशा निर्देश प्राप्त करते हैं। इसलिए इतिहास में रुचि और इतिहास का ज्ञान हर व्यक्ति की चेतना को समृद्ध और भरपूर बनाता है। मेरी कामना है कि श्री रामजी लाल अपने लेखन से सामान्य हिन्दी पाठकों में इतिहास के प्रति गंभीर रुचि पैदा करने के संकल्प में सफल हों।