कौन सी पेंशन? : रमेश जोशी

लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com

सम्पर्क : 94601 55700 

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कई दिनों से बेतरतीब बारिश हो रही थी। बरामदे में बैठने का कोई सिस्टम ही नहीं जम रहा था। आज मौसम खुला हुआ था तो हमने बरामदे की सफाई कर दी। न सही कहीं का काशी या किसी महाकाल का कॉरीडोर लेकिन साफ होने से एक दिव्यता सी झलकने लगी। बैठने के लिए रखी रहने वाली दोनों स्टूलें हटाकर दो पुराने तौलिए धोकर बिछा दिए। और एक ए फोर के सफेद कागज पर सूचना लिखकर दीवार टाँग दी।    

अभी हम बरामदे में ही थे कि तोताराम प्रकट हुआ। कुछ देर नीचे खड़ा हुआ ही देखता रहा और फिर बोला- ‘बरामदा विष्ठा’ की इस सजावट का कारण ? क्या मोदी जी आने वाले हैं या राहुल गांधी? 

हमने कहा- राहुल गांधी का कोई ठिकाना नहीं। कब, कहाँ टपक पड़े । घर पर अंबानी शादी का न्यौता देने घर पर आए हुए थे और बंदा पहुँच गया पूर्वी दिल्ली के गुरु तेगबहादुर नगर के राज मिस्त्रियों-मजदूरों के बीच। जाना था सुल्तानपुर और बीच में ही रामचेत की गुमटी पर बैठ गया। उसका कोई ठिकाना नहीं इसलिए उसके लिए किसी तैयारी का भी कोई अर्थ नहीं । 

‘तो फिर मोदी जी आ रहे हैं’ - तोताराम ने उत्सुकता से पूछा। 

हमने कहा-  अवसर ही ऐसा है, आ तो सकते थे लेकिन आज वे राजनाथ सिंह, नड्डा आदि के साथ पार्टी कार्यालय में सदस्यता फॉर्म भर रहे हैं। हम उसी अभियान को यहाँ मनाएंगे। देख नहीं रहा दीवार पर लगा पोस्टर।

‘संगठन पर्व सदस्यता अभियान 2024’    

बोला- लेकिन इसकी क्या जरूरत आ पड़ी? इन सब का तो संघ से गर्भनाल से जुड़ा रिश्ता है जो अटूट है। हो सकता है बाद में भाजपा में आए लोग इधर-उधर हो जाएँ लेकिन संघ के स्वयंसेवक तो कभी अलग हो ही नहीं सकते जैसे अंगुलियों से नाखून। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी भले ही खुद को 140 करोड़ का प्रधानमन्त्री बताएं लेकिन रहते हैं वे संघ के स्वयंसेवक ही। फिर चाहे वे अटल जी हों या आडवाणी जी या फिर मोदी जी। और तोताराम ने प्रमाणस्वरूप अपने स्मार्ट फोन में मोदी जी का गणवेश धारण किए हुए एक फ़ोटो दिखा दिया। 

तोताराम ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा- लेकिन इस सदस्यता अभियान की यहाँ क्या जरूरत है? यह कोई पार्टी कार्यालय थोड़े है? और फिर हम तो सरकारी कर्मचारी हैं। हम किसी पार्टी के सदस्य नहीं बन सकते। हमारी प्रतिबद्धता संविधान के प्रति होती है। पार्टियां आती-जाती रहती हैं लेकिन संविधान इस देश का सनातन धर्म है जो नागरिक होने के साथ ही हम पर आयद हो जाता है।

हमने कहा- तोताराम, वे सब पुरानी और रूढ़ नैतिकता की बातें हैं। सुना नहीं, आजकल तो सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में जाने के लिए छूट ही नहीं दे दी है बल्कि उन्हें प्रेरित भी किया जा रहा है। विश्वविद्यालयों में संघ की शाखाएं लगाई जा रही हैं। 

बोला- लेकिन गैस, डीजल, पेट्रोल, दूध सभी को एक ही भाव मिल रहा है फिर चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू, कांग्रेसी हो या भाजपाई। अटल जी द्वारा आविष्कृत और अब मोदी जी द्वारा संशोधित लेकिन घाटे वाली पेंशन सभी पर लागू हो रही है या नहीं? लेकिन हम तो 2004 से पहले ही रिटायर हो गए तो चलो बचे हुए हैं इस ओ पी एस, एन  पी एस, यू पी एस के झंझट से। 

हमने कहा- फिर भी हिन्दू राष्ट्रवाद से जुड़ने के फायदे तो हैं ही। लेटरल एंट्री के नाम से संघ के लोगों को बड़े बड़े पदों पर बैठाया जा रहा है। जजों तक को  राज्यसभा की सदस्यता का लालच देकर मनमाने फैसले लिखवाए जा रहे हैं ।कट्टर हिंदुत्ववादी विचारधाराओं के लोगों को विश्वविद्यालयों का कुलपति बनाया जा रहा है। इसी दृष्टि से पाठ्यक्रम बदला जा रहा है। ऐसे ही लोगों को संचालन के लिए सैनिक स्कूल दिए जा रहे हैं। अब तो बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों की तरह कार सेवकों को 20-20 हजार रुपया पेंशन दी जा रही है। 

हमने कहा- सरकार चाहे तो नई नई पेंशन देना ही क्या चाहे तो किसी की नौकरी 25-30 साल बाद मिलने वाली पेंशन बंद भी कर सकती है। अभी तो विकल्प दे रही है लेकिन कुछ दिनों बाद अपनी मर्जी से किसी को भी, किसी भी प्रकार की पेंशन में डाल सकती है।

बोला-  ऐसे कैसे हो सकता है?

हमने कहा- वैसे ही जैसे कोरोना के टीके के नाम पर 18 महिने का डी ए खा गए। किसी ने क्या कर लिया? और तुझे पता है इस बार की पेंशन में 3% डी ए भी नहीं जुड़ा है। लगता है वह भी खा गए हैं।

बोला- लेकिन अब कौनसी प्राकृतिक आपदा चल रही है?

हमने कहा- तुझे पता नहीं? राम मंदिर और नई संसद टपक रहे हैं, राम पथ और अटल सेतु धँसक रहे हैं, बिहार में रोज पुल गिर रहे हैं। और अब तो महाराष्ट्र में शिवाजी की मूर्ति भी गिर पड़ी। इन सब की मरम्मत, भरपाई कहाँ से करेंगे मोदी जी ? हमारा डी ए खा जाने के अलावा और चारा ही क्या है?

खैर चल। हम तेरे सामने तीन अंगुलियां करते हैं। तू इनमें से एक अंगुली पकड़। उसके आधार पर तय करेंगे कि कौन सी पेंशन आप्ट करें? ओ पी एस, एन पी एस या यू पी एस। 

बोला- मैं तो एम पी एस आप्ट करूंगा। 

हमने पूछा- यह एम पी एस क्या है? ऐसी तो कोई स्कीम है ही नहीं। कहीं मोदी जी ने अपने नाम से कोई ‘मोदी पेंशन स्कीम’  तो शुरू नहीं कर दी? 

बोला- नहीं, यह ‘माधवीपुरी पेंशन स्कीम’ है। सेबी प्रमुख माधवी पुरी जिसे अंतिम वेतन से दोगुना  पेंशन मिलती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं उनके अपने विचार हैं)