वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता
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पद्मश्री प्रो. (डा.) गोपाल कृष्ण विश्वकर्मा जी गाज़ीपुर में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करके आगे पढ़ने के लिए काशी आ गए। उसके बाद लखनऊ स्थित किंग जार्ज मेडिकल कालेज से एम.बी.बी.एस और एम.एस. करके परिवार के खर्च पर अमरीका पहुँच गए। चौबीस वर्ष की आयु में अमरीका के नामी अस्पताल मेयो हास्पिटल में नौकरी करने लगे। उसके बाद स्विट्ज़रलैंड, कनाडा और इंग्लैंड में अनुभव प्राप्त करके सीधे नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में सहायक प्रोफेसर लगभग 28 वर्ष की उम्र में चुन लिये गए। वहां उन्होंने भारत का पहला रीढ़ की कृत्रिम हड्डी का कुमारी त्रिलोचन कौर के शरीर में सफल प्रत्यारोपण किया। वह ढांचा हड्डी और इस्पात से बना था।
इसके बाद गठरी सी पड़ी रहने वाली त्रिलोचन कौर सीधे तन कर चलने लगी।उसने यह कभी सोचा भी नहीं था। रीढ की हड्डी से ही हम चलते हैं। इसलिए आपरेशन नाजुक था। जल्दी ही उसकी शादी हो गई। शादी के बाद उसने अपने पति से कहा मुझे अपने भगवान से मिलना है। पति ने सोचा किसी गुरुद्वारे या मंदिर में ले जा रही होगी। मगर वह अपने पति को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के हड्डीरोग विभाग में ले आई और डा. विश्वकर्मा के पैर छूने लगी। डा. विश्वकर्मा ने पूछा- 'आप कौन हैं?' हमारे यहां लड़कियां पैर नहीं छूतीं।
"तब उसने कहा कि मैं वह अभागी लड़की थी, जिसने शादी की उम्मीद छोड़ दी थी। मगर आपने भगवान बन कर मेरा जीवन बदल दिया।" इस आपरेशन की सफलता ने उन्हें भारत भर में प्रसिद्ध बना दिए । डॉ. विश्वकर्मा ने 29 अक्टूबर 1986 को भारत सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं का महानिदेशक बनने के बाद एम.बी.बी.एस.पास करके इंटर्नशिप करने वाले हजारों प्रतिभाशाली युवक और युवतियों को सम्मानजनक मासिक वेतन दिला दिया।
महानिदेशक बनने के बाद उन्होंने दिल्ली के सारे अस्पतालों में इंटर्नशिप करने वालों के संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई और कहा जिसकी शादी हो गई हो वे हाथ उठाएँ। जब एक भी हाथ नहीं उठा तो उन्होंने पूछा आप लोगों की शादी क्यों नही हुई। जवाब मिला सत्रह हजार रू. हर महीने पाने वालों से कोई मां बाप रिश्ता नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा "तुम लोग एक सारिणी बनाओ। जिसमें बाईं तरफ लिखो- डाक्टर ने पढाई की इंटर के बाद साढ़े आठ साल। मासिक वेतन- 17 हजार रु। दायीं तरफ लिखो - आई.ए.एस.- इंटर के बाद पढ़ाई की दो साल। फिर आई. ए. एस. की परीक्षा दी। मासिक वेतन-1 लाख रु (न्यूनतम) इस अन्याय के विरुद्ध तुम लोग हड़ताल पर चले जाओ। आगे मैं देखता हूँ।" (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं) ....आगे की बात कल करेंगे। ....