कर्मचारियों की कमी के चलते यहां पर रखे दुर्लभ ग्रंथों की सही देखभाल नहीं
अरशद शाहीन
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टोंक। मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान, जहां पर दुर्लभ ग्रंथों का ख़ज़ाना मौजूद है। आज भी इसको देखने कई विदेशी शोधार्थी आते हैं। इसे 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने निदेशालय बनाया। यहां पर अब तक 50 से अधिक देशों के लोग शोध एवं यहां रखे दुर्लभ ग्रंथों को देखने आ चुके हैं। लेकिन इसकी पूरी तरह देशभाल नहीं हो रही है। जिसकी वर्तमान में जरुरत हैं। अमेरिका, बिटेन, जापान, जर्मनी, मिस्र, इजराईल, आस्ट्रेलिया, ईरान, फ्रांस, खाड़ी देशों सहित करीब 50 देशों के शोधकर्ता एवं पर्यटक यहां आ चुके हैं। कई देशों व राज्यों के मंत्रियों, राज्यपालों, न्यायिक एवं अन्य आईएएस, आरएएस सहित हजारों विद्वानों यहां के दुर्लभ ग्रंथों की बेशकीमती विरासत का देखने आते रहते हैं।
संस्थान में कुरआन, हदीस, हस्तलिखित महाभारत, रामायण, विधि शास्त्र, खगोल शास्त्र, साहित्य, इतिहास, गणित, आध्यात्मिक विज्ञान, औषध विज्ञान, शास्त्रीय संगीत, सूफीज्म आदि के ग्रंथों मौजूद है। जिसे हलाकू ने मिटाना चाहा, वो दो ग्रंथ 1200 ई. से पूर्व के यहां सुरक्षित है। संस्थान में दुनिया की सबसे बड़े साइज की कुरआन भी मौजूद है, जिसे देखने भी हजारों लोग आते हैं। टोंक रियासत के तीसरे नंवाब मोहम्मद अली खां ने दुर्लभ एवं हस्तलिखित ग्रंथों का ख़जाना बनारस में रहकर एकत्रित किया था। उनके पुत्र बनारस से इसे टोंक ले आए थे। इसमें से कई ग्रंथ मौलाना आजाद ने नेशनल आरकाईज़ में भी संरक्षित हैं। बाकी ग्रंथ शोध संस्थान में मौजूद है।
संस्थान में हस्तलिखित करीब 8513 ग्रंथ, 31432 पुस्तकें 17701 जनरल पत्रिकाएं, 719 फरमान, 65000 शरा शरीफ के रिकार्ड के दस्तावेज, 9699 मेन्यूस्क्रिप्ट्स, 65032 बेतुल हिकमत व 50647 प्रिंटेड पुस्तकें संग्रहित है। इस शोध सस्थान के बारे में एम.असलम की पुस्तक शान-ए-बनास, प्राचीन रहस्यों का जिला टोंक में भी बहुत कुछ लिखा गया है। यहां पर स्थाई निदेशक नहीं है। साथ ही कई पद खाली भी है। लेकिन नवाबों की नगरी के नाम से मशहूर टोंक शहर में आज भी सैकड़ों विदेशी शोधार्थी इस दुर्लभ ग्रंथ का खजाना देखने आते हैं।