वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक
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दक्षिण भारत के प्रमुख राज्य तमिलनाडु में हिंदी, हिन्दू और हिंदुत्व पर सत्तारूढ़ दल द्रमुक का हमला कोई नई बात नहीं है। ऐसा यहाँ दशको से हो रहा है। अंतर केवल इतना ही है कि कभी हमला तेज होता और कभी हल्का। गत दिनों सनातन धर्म पर सीधा हमला इस बार राज्य के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने किया है। कहने को तो केवल खेल विभाग के मंत्री है लेकिन वास्तव में स्टालिन मंत्रिमंडल के सबसे अधिक ताकतवर मंत्री है। यह लगभग तय है कि पार्टी में वे अपने-अपने पिता के राजनीतिक उतराधिकारी होंगे। इसीलिए उनके द्वारा कही गई बातों को पार्टी में गंभीरता से लिया जाता है। कुछ दिन पूर्वे उन्होंने सनातन धर्म पर कड़ी चोट की थी और तब से न केवल वे सुर्ख़ियों में है बल्कि बीजेपी के साथ-साथ हिन्दू संगठनों के निशाने पर भी है। सनातन धर्म पर सीधे चोट करने के लिए उनको कई धमकियाँ मिल रही हैं जिसके चलते उनकी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।
पिछले दिनों एक प्रगतिशील कहे जाने वाले संगठन के जलसे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि सनातन धर्म डेंगू तथा कोरोनो की तरह जान लेवा बीमारी है। इसका इलाज सभव नहीं बस इसे जड़ से मिटाना होगा। उनका कहने का तात्पर्य यह था कि भारत में सनातन धर्म का उन्मूलन जरूरी है। ऐसा उनकी पार्टी के नेताओं द्वारा दशकों से लगातार कहा जाता रहा है। द्रमुक अपने आपको राज्य के द्रविड़ संस्कृति का अभिभावक और पोषक मानती है। पार्टी के संस्थापकों से लेकर सभी नेताओं का कहना है कि सनातन अथवा हिन्दू धर्म जातिवाद का पोषक है और जातिवाद के आधार पर लोगों को बांटता है। स्वर्ण हिन्दू, विशेषकर ब्राह्मण पिछड़ों और दलितों को अपने बराबर का दर्ज नहीं देते तथा उन्हें अछूत मानते है। उनको हिन्दू मंदिरों में प्रवेश नहीं करने देना चाहते।
अपने बयान को लेकर जब उनकी कड़ी आलोचना हुई तो उन्होंने माफ़ी मांगना तो दूर बल्कि यहाँ तक कहा कि वे अपने द्वारा कही गई बातों अडिग तथा अपना बयान वापिस नहीं लेंगे। उदयनिधि के बयान के बाद कांग्रेस पार्टी, जो तमिलनाडु में सरकार का हिस्सा है, इस पर कुछ साफ नहीं कहना चाहती। विपक्ष के नए संगठन इंडिया के घटक, जिनमें आप और टी एम सी शामिल है, का कहना कि नए मोर्चे के घटकों, जिसमे द्रमुक भी एक है, को सभी धर्मों को बराबर रखना चाहिए तथा उन पर बेवजह कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।
कुछ हिन्दू संतों ने इस बयान को लेकर उदयनिधि पर बड़ा हमला किया है। वाराणसी के एक महंत परमहंस दास ने यहाँ तक कह डाला कि जो कोई उदयनिधि का गला काट कर लायेगा उसे वे दस करोड़ रूपये का इनाम देंगें।
पिछली सदी के आरंभ में तमिलनाडु में ब्राह्मणों के खिलाफ एक बड़ी मुहीम शुरू हुई थी जिसे नेता नातेसन मुदलियार और उनकी जस्टिस पार्टी थी। इस पार्टी के नेताओं का कहना था कि, हिन्दू अथवा सनातन धर्म पर ब्रहामिनों का धार्मिक और समाजिक वर्चस्व समाप्त होना चाहिए। केवल इतना ही नहीं वे इतना आगे बढ़ गए कि उन्होंने अपनी दोनों बेटियों का विवाह बिना ब्रहमिन पुजारियों से करवाया। बाद में उन्होंने द्रविड़ कड़गम पार्टी का गठन किया और राजनीति में कूद गए। कुछ काल के बाद पार्टी में एक नए नेता ई वी आर रामास्वामी, जिन्हें पेरियार के नाम से संबोधित किया जाता था, उभर कर सामने आये। वे खुद ब्राह्मण थे, लेकिन कट्टर ब्राह्मण विरोधी थे। बाद में पार्टी का नाम द्रविड़ मुनेत्र कड़गम कर दिया। 1960 में यह पार्टी पहली बार तमिलनाडु में सत्ता में आई तथा सी एन अन्नादुराई राज्य के मुख्यमंत्री बने। तब से इस पार्टी अथवा इससे टूट कर बनी द्रविड़वादी पार्टियों का राज्य का राजनीति पर दबदबा बढ़ता चला गया।
ये पार्टियाँ ऐसी सभी बातों का विरोध करती जो हिंदी, हिन्दू और हिदुत्व से जुड़ा हुआ हो। इनका मानना है द्रविड़ संस्कृति और भाषा संस्कृत से न केवल पुरानी है बल्कि उससे उत्तम है। जब हिंदी को देश की सरकारी भाषा का दर्ज़ा दिया गया तो इसका दक्षिण में इसका सबसे अधिक विरोध इन पार्टियों ने किया। इसके चलते यहाँ शिक्षा में त्रि भाषीय फार्मूला अभी लागू नहीं है। इस फार्मूले ले अनुसार स्कूलों में हिंदी पढाया जाना जरूरी था। दशकों तक राज्य में हिंदी फ़िल्में दिखाए जाने पर प्रतिबन्ध रहा। कुछ समय पूर्व जब केंद्र ने नई शिक्षा नीति घोषित की राज्य की द्रमुक सरकार ने इस लागू करने से इंकार कर दिया। कारण यह है कि इसमें हिंदी पढाया जाना अनिवार्य है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)