आधुनिकता के दौर में इन्टरनेट पर चढा सिजांरा-तीज बधाईयों का खुमार

महिलाओं ने घरों खेत खलिहानो में झूले डालकर बढाई पींगे- गाए मल्हार 

सास-ननदों से सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद लिया

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील। सांभर व गुढा सहित अनेक गांवों में  शाम को हरियाली तीज पर्व पर महिलाए और युवतियां काफी उत्साहित नजर आई। घरों, खेत -खलिहानों में पींगे बढाई और मल्हार गाकर त्योहार मनाया। तीज पर महिलाओं ने विधि-विधान के साथ शिव- पार्वती की पूजन किया। बायना देकर सास ननद से सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद लिया। इस मोकै पर महिलाओ नें सावन माह के मंगल गीत गाए। तथा तीज पर्व का उत्साह और उमंग के लुप्त उठाया। भावना सैनी ने बताया सावन माह शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन, चुङियो की खनक, मेंहदी रचे हाथों में , रंगीलो सावन आयो, बरखा की बूंदा ल्याओं, बागा में झूलण झुल्या पर नृत्य करते हुए हर्षोल्लास से मनाया। घरो में अनेक प्रकार के व्यंजन बनाए। प्रतिष्ठानों पर घेवर आदि खरीदने के लिए काफी भीङ देखी गई। 

दुसरी ओर लूणवां, गोरवपूरा, शेरपुरा, मारवालो की ढयाणी, गवारियो की ढयाणी सहित सभी ढाणियों में सावन के मंगल गीतो के साथ सुहागिन महिलाए और युवतियों ने झूलों पर पींगे बढाकर जमकर तीज मनाई। कई जगहो पर प्रतियोगिताओ में खेल व नृत्यो के आयोजन प्रस्तुत किए गए। अधिकांश महिलाए हरे रंग की साङी और मारवाङी पहनावे में सज-धजकर झूले झूलते हुए तीज पर्व पर एक अलग ही नजारा देखने को मिला। लोगों ने बताया कि इन दिनो आधुनिकता के दौर में सिजांरा-तीज की बधाईयों का खुमार इंटरनेट की भेंट चढ गया। 

मोबाइल में सिमटी हरियाली तीज की रीत-

आधुनिकता की चकाचौंध में तीज का त्योहार फीका पड़ता जा रहा है। लोगों न अब अपना व्यवहार बदल लिया है। आज के समय में 50 प्रतिशत लोग ही सावन में बुआ व बहन के घर जाकर कौथली देकर आते है। अब न तो पेड़ों पर झूला नजर आता है और न ही महिलाओं का समूह सावन के गीत गाता है। हर वर्ग के हाथों में मोबाइल नजर आ रहा है। 

बुजुर्ग यह देखकर चिंतित नजर आ रहे है। उनका कहना है कि हमें अपनी विरासत बचाने के लिए पुरातन चलते आ रहे सभ्याचार मेलों व त्योहारों को पहले की ही भांति हंसी खुशी से मनाना फिर से शुरू करना होगा।