शिक्षा का अधिकार देकर देश में अशिक्षा मिटाने के प्रयास हुए हैं : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

शासन-प्रशासन की दशा और दिशा

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं 

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भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। बीते सात दशकों में देश ने अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति करते हुए दुनिया में सम्मान प्राप्त किया है। संविधान के सहारे देश सही दिशा में चला है। जनता का कानून के प्रति पूरा विश्वास बना रहा है। देश के लोगों को शिक्षा का अधिकार देकर अशिक्षा मिटाने के प्रयास हुए, कृषि, उद्योग, विज्ञान सभी में देश ने तरक्की की है। आरटीआई जैसे कानून जोड़े गये, संविधान के सहारे देश चल रहा है।

परन्तु अब भी देश का एक बड़ा तबका शिक्षा से वंचित है। अशिक्षा के अंधकार को मिटाना देश की सर्वोपरि जरूरत है। अशिक्षा देश की अधिकांश समस्याओं की जड़ है। भारत में महिला शिक्षा के प्रसार की महत्ती जरूरत है। खासतौर से ग्रामीण बालिकाओं को पारिवारिक परिस्थिति और संसाधनों की कमी के चलते शिक्षा से वंचित होना पड़ता है, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। देश के युवाओं में बेरोजगारी सबसे भयावह समस्या के रूप में उभरकर आई है। बेरोजगारी देश के युवकों की सबसे अहम् बेड़ी है। इससे सर्वप्रथम मुक्ति की आवश्यकता है। रोजगार के अभाव में युवा सम्मानित ढंग से जीवनयापन को तरस जाते है।

अपराध बढ़ रहे हैं। पिछले कुछ सालों से देश में अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो गई है कि लोग पुलिस दल पर हमला करके अपराधियों को छुड़ा ले जाते है और पुलिस का बड़ी भारी अमला उन्हें पकड़ नहीं पाता। देश में आए दिन महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं हो रही है। राष्ट्रीय राजमार्गो पर चलना भी सुरक्षित नहीं रह गया है। अपराधों पर लगाम लगाना वर्तमान दौर की गंभीर आवश्यकता है।

दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था में शुमार होने के बावजूद देश के करोड़ों लागों को दोनों वक्त भरपेट भोजन नहीं मिलता। गरीबी मिटाने की अनेक योजनाएं शुरू किए जाने के बावजूद भ्रष्टाचार की वजह से देश में गरीबों की तादाद में कमी नहीं आई है। योजनाओं का लाभ गरीब लोगों तक पंहुचा ही नहीं। कई लोग तो गरीबी के चलते ही अपराध की दुनिया में उतर रहे है। हर वर्ष लाखों लोग गरीबी के कारण कुपोषण और बीमारियों के शिकार होकर असमय ही दुनिया से चले जाते है। ऐसा भी नहीं है कि गरीबी बिलकुल कम नहीं हुई। देश में बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए है लेकिन हम गरीबी की पैमाइश के अन्तर्राष्ट्रीय पैमानों की बात करें जिसके तहत रोजाना 1.90 अमेरिकी डाॅलर यानि लगभग 130 करोड़ रूपए खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है तो देश की 21.30 फीसदी यानि लगभग 29 करोड़ से ज्यादा लोग गरीब है। जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, प्रजनन दर, सकल घरेलू आय और मुद्रास्फीति जैसे पैमानों से मिलकर बने मानव विकास सूचकांक में हम 130वें पायदान पर है। गरीबी देशों के इंडेक्स में भी हम लगभग 54वें स्थान पर है। समृद्धि सूचकांक में 142 देशों में से भार 99वें स्थान पर है।

भ्रष्टाचार को मापने वाली संस्था ‘‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल’’ के आंकड़ों में हमारा देश 76वें स्थान पर है। बीते कुछ सालों में सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग से एक हद तक भ्रष्टाचार पर लगाम कसी गई है लेकिन अभी भी प्रवृतियों पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। मनरेगा जैसी अनेक योजनाएं है जिनका यदि भ्रष्टाचार मुक्त क्रियान्वयन होता तो देश की तस्वीर और भी उजली होगी।

देश को सबसे पहले भ्रष्टाचार से आजादी की जरूरत है। आज भी सरकारी कार्यालयों और राजनीति के साथ चप्पे-चप्पे पर व्याप्त भ्रष्टाचार से आमजन परेशान है। भ्रष्टाचार एक ऐसी बेल है जिसने सारे सरकारी तंत्र को जकड़ रखा है। इसके कारण सरकारी कार्यालयों में बिना रिश्वत दिए काम कराना बहुत ही मुश्किल हो गया है। सरकारी भर्तियो में भी हर कदम पर रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद और पक्षपात होता है। वर्तमान दौर में देश के हर सरकारी महकमे में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। देश को सबसे पहले भ्रष्टाचार से आजादी की जरूरत है। इससे सरकारी दफ्तरों में कार्य निष्पादन की गति बढ़ जाएगी, विकास में गति आएगी।

नशाखोरी बढ़ रही है। नशाखोरी देश में गरीबी व अपराध का एक बड़ा कारण है तथा शिक्षा और केरियर से परे होता जा रहा है। नशे के शिकार लोग देश में अनुत्पादकता को बढ़ावा देते है।

देश के विकास में जाति व्यवस्था एक बड़ी बाधा है। जातिय व्यवस्था संकीर्ण सोच को बढ़ावा दे रही है जिससे देश के लोगों में समरसता का भाव नहीं है। भारत के अनेक राजनीतिक दल साम्प्रदायिकता, बहुलवाद, जातिवाद को बढ़ावा देकर अपने स्वार्थो की गोटियां सेंक रहे है। आरक्षण से जातियों में आपसी द्वैष भी बढ़ा है। इस व्यवस्था को समीक्षा की जरूरत है।

दलित उत्पीड़न, दलितों के साथ हुए अत्याचार ये बताने के लिए काफी है कि आजादी के 74 साल बाद भी हम जाति की मानसिक बेडियों में जकड़े हुए है। इन्हीं सब घटनाओं का असर रहा है कि विश्व शांति सूचकांक में हम 141वें नम्बर पर फिसल गए है जबकि 2010 में 128वें स्थान पर थे। पाकिस्तान को छोड़कर हमारे सभी पड़ौसी देश आगे है। भूटान 13वें, नेपाल 78वें, बांग्लादेश 83वें, श्रीलंका 97वें, म्यांमार 115वें और चीन 120वें स्थान पर है।

बात महिलाओं के उत्थान की करें तो यकीनन पिछले 69 सालों में तस्वीर बदली है। केरियर के चुनाव, शादी इत्यादि फैसले करने का अधिकार महिलाओं को नहीं के बराबर है। भ्रूण हत्या की भी खबरे लगातार अखबारों की सुर्खिया बन रही है। लिंगानुपात में पिछले दो दशक से लगातार सुधार आ रहा है। वल्र्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक हम 186वें नंबर पर है। देश की जनसंख्या में महिलाओं का प्रतिशत 48.29 है जबकि हमारे पड़ौसी देश नेपाल 51.59 फीसदी और म्यांमार 51.46 फीसदी महिलाओं के साथ हमसे आगे है। महिला सुरक्षा कानून बनने के बाद भी महिलाओं पर अत्याचार में कमी नहीं आई है। महिलाओं का स्वास्थ्य भी एक चिंता का विषय हैं। महिला जीवन प्रत्याशा में 188 देशों में से हम 130वें स्थान पर है। किशोर उम्र में मां बनने के मामलों में भी हम 47वें स्थान पर है।

जीवन प्रत्याशा सूचकांक में भारत 189 देशों में से 131वें स्थान पर है। व्यक्तिगत तौर पर स्वास्थ्य खर्च की बात करें तो भारत 188 देशों में 84वें स्थान पर है। यानि सुधार होना अभी बाकी है। संयुक्त राष्ट्र की भूख संबंधी 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे अधिक 19.4 करोड़ लोग भारत में भुखमरी के शिकार है। असामाजिक तत्वों से लगातार निपटना होगा। इस रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर 79.5 करोड़ लोग मुखमरी के शिकार है। नोटबंदी ने देश को कई साल पीछे धकेल दिया। जीडीपी भी नहीं बढ़ पाई। कोरोना महामारी का सामना करते हुए असफलता व कुप्रबन्ध से मंहगाई, बेरोजगारी, मंदी, अनउत्पादकता बढ़ गई है।

शहरी भारत भयावह प्रदूषण की चपेट में है। वाहनों की बढ़ती तादाद के कारण प्रदषण लगातार बढ़ता जा रहा है इससे लोगों में तरह-तरह की बीमारियां बढ़ती जा रही है। प्राकृतिक स्थल अपना स्वरूप खोने लगे है। प्रदूषण के कारण मौसम चक्र में बदलाव होने लगा है तथा कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि की स्थिति बन रही है। नागरिकों की खुशी पाने के लिए विकसित किए गए ‘‘वल्र्ड हैप्पीनेस इंडेक्स’’ में शामिल 157 देशों में 118वें स्थान पर है। वहीं पड़ौसी देशों में चीन 83वें, भूटान 84वें, पाकिस्तान 92वें, नेपाल 107वें, बांग्लादेश 110वें और श्रीलंका 117वें स्थान पर है। परन्तु विश्व की 30 विकासशील अर्थ व्यवस्थाओं में ‘‘ईज आफ डूईंग बिजनेस इंडेक्स’’ में हम दूसरे स्थान पर है। देश की आजादी कायम रहे इसके लिए तमाम कुरीतियों से लड़ते हुए देश में स्वच्छता व समानता लाने की जरूरत है। गांधी जी के बताए सत्य-अहिंसा के मार्ग पर चलना होगा। सरकार को महसूस करना होगा ताकि लोगों अभिव्यक्ति सुरक्षित रहें। देश शहरी व ग्रामीण विकास में नीचले क्रम पर ही आता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)