लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं
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राहुल गांधी ने स्पष्ट व बेबाक टिप्पणी की है कि कांग्रेस में आने के चार रास्ते हैं। पहला रास्ता पैसा-पावर हो, दूसरा रास्ता राजनेताओं से रिश्तेदारी, तीसरा रास्ता राजनीति में दोस्ती या जान पहिचान और चौथा रास्ता आम आदमी की आवाज उठाकर राजनीति में आयें। परन्तु आज यह नहीं हो रहा, चौथा रास्ता बन्द है। कांग्रेस एक लोकतांत्रिक संगठन है, एक विचारधारा है, देश के हर शहर गांव में है। काँग्रेस एक केडर बेस्ड पार्टी नहीं है।
कांग्रेस में पिछले कुछ वर्षो से पदलोलूप नेताओं की भरमार देखी जा रही है जो राजनीति को पेशा समझकर उसमें आते हैं। उनके लिए सिद्धान्त और जुनून दोनों मायने नहीं रखते। बस अगले प्रमोशन के इंतजार में रहते हैं। ऐसे नेता जन्मजात रूप से अगले चुनाव से आगे की सोचने में असमर्थ हैं। अनुशासनहीनता बढ़ रहीं है। जो नेता रिश्तेदारी व जातिवाद के बल पर पार्टी में आये थे वे पार्टी की कीमत पर कांग्रेस संगठन पर हावी होना चाहते हैं। आपसी मतभेद रहते है, ग्रुप भी रहे हैं, पार्टी के टुकड़े भी हुए है, नेतृत्व के विरूद्ध आवाज भी उठी है, मतभेद भी हुए है परन्तु विचारधारा जिन्दा रही हैं। मौजूदा दौर में देखें तो कांग्रेस की हार का मुख्य कारण काँग्रेस आंतरिक संगठन व अनुशासनहीनता रही है।
केंद्रीय व प्रान्तीय पदाधिकारियों का पार्टी के नेतृत्व के प्रति अविश्वास और अनुशासनहीनता गम्भीर चिंता का विषय है। नेताओं व पदाधिकारियों में पार्टी को मजबूत करने की भावना नहीं है। जातिवाद, वर्ण व्यवस्था का विरोध करने के बजाए उसकी बुनियाद पक्की करने वाले लोग, सत्तासीन और पदाधिकारी बनने की लालशा रखने वाले लोग, युवा नेतृत्व के नाम पर, वरिष्ठ नेताओं को पर्याप्त प्रतिष्ठा व तवज्जों नहीं देने वाले लोग, सिद्धान्त, सेवा कार्य और जन भावनाओं को महत्व नहीं देते। वरिष्ठ नेताओं पर गंभीर अनुशासनहीनता के आरोप लगे उन्हें पार्टी संगठन में पदाधिकारी बनाकर पुरस्कृत किया जाता है। वर्तमान पदासीन कांग्रेस नेता केवल अपनी सुविधा, अपना पद, अपनी अहमियत, व पावर प्राप्त करने में लगे हैं।
कांग्रेसजन अपनी ही पार्टी के नेताओं व सरकार की मीडिया में आलोचना करते रहते हैं। अनुशासन का कोई ध्यान नहीं। यह समझकर चलते हैं कि कांग्रेस उनसे है, वे कांग्रेस से नहीं। जनता की तकलीफें दूर करने की बजाए अपने पद की मांगे अपनी सरकार से करते रहते हैं। जनता में अपनी व पार्टी में साथियों की छबी बिगाड़ते रहते हैं। यह नहीं सोच रहे कि आगे चुनाव लड़ना हैं, जनता को जबाव देना है, विरोधी उनकी नींव खोद रहे हैं।
कई कांग्रेस सदस्य चर्चा में बने रहने के लिए उल्टे-सीधे, पार्टी के लिए नुकसानदायक वक्तव्य देते रहते हैं। मंत्री-मण्डल में रहते हुए भी सरकार व मुख्यमंत्री के विरूध बयान देते रहते हैं। आज आवश्यकता है कांग्रेस को सुदृढ़ करने के लिए एक बड़ा छटनी अभियान चलाकर, पूरी जांच व सिद्धांत के साथ महत्वाकांक्षी, अनुशासनहीन व डाउटफुल चरित्रों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए।
अनुशासनहीनता और गुटबाजी के कारण पार्टी घोर संकट में है। वरिष्ठ नेताओं के भाषणों में भी पार्टी की अन्दरूनी समस्याओं की झलक दिखती है। पार्टी के अंदर कुछे छिपे शत्रु भी है जो शीर्ष नेतृत्व के विरूद्ध छिपे या खुले रूप से आवाज उठाते रहते हैं, आलोचना करते रहते है। पार्टी में गतिशील नेता, प्रमुख रणनीतिकार, प्रबन्धक नहीं रहे। कुछ ने पलायन कर लिया। जो हैं वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। पहले पार्टी में मतभेद सामने नहीं आते थे। अब तो पार्टी के छोटे-मोटे नेता भी मीडिया में बने रहने के लिए पार्टी को नुकसान पंहुचाने की कीमत पर भी बोलने में कोई संकोच नहीं करते। आज तथाकथित वरिष्ठ कांग्रेसजनों की किसी भी मुद्दे पर सामाजिक जिम्मेदारी और हिस्सेदारी नहीं है। पार्टी दिशाहीनता की शिकार है। धनबल और संरक्षण वाले लोगों ने इस संगठन की राज्य इकाईयों पर कब्जा कर लिया। वंशवाद, परिवारवाद व भ्रष्टाचार के आरोपों का सुचारू जबाब नहीं दे पा रही है।
कांग्रेस पार्टी में अनुशासन की परम्परा अब खत्म हो रही है। चुनाव तंत्र बिगड़ गया है, पूर्णकालिक चुनाव प्रबंधन नहीं है, समय पहले चुनाव संबंधी योजना नहीं बनती है। कांग्रेस जब किसी राज्य में चुनाव आता है तब काम करना शुरू करती है। कांग्रेस अंदरूनी चुनौतियों से जूझ रही है। पूर्व में जिस तरह का राजनैतिक कौशल पार्टी के पास था वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। चुनावी घोषणा के बाद तैयारी शुरू होती है। टिकट वितरण के समय असंतोष, दल बदल उभरता है। कांग्रेस की नीतियों से हिन्दु-मुस्लिम दोनों के मत बंट जाते है। धर्मनिरपेक्ष दल हाशिये पर चले गये है। उधर आलाकमान के फैसलों को चुनौती दी जा रही है। कांग्रेस की केन्द्रीय सत्ता कमजोर, शक्तिहीन होती जा रही है।
कांग्रेस को धर्मनिरपेक्ष दल होने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है क्योंकि भाषा, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, जाति वर्ग के नाम पर राजनीति आरम्भ हो चुकी है। कांग्रेस के विरूद्ध योजनाबद्ध तरीके से घृणा व द्वैष प्रसारित किया जा रहा है, वंशवाद, परिवारवाद व भ्रष्टाचार का प्रतीक करार दिया जा रहा है।
राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सामूहिक रूप से आक्रामक रवैया नहीं अपनाने में पार्टी का रूख तय नहीं है, कांग्रेस मंचों पर कोई नियमित चर्चा नहीं होती, सामूहिक नेतृत्व सफल नहीं हो रहा। हर नेता संगठन व सरकार में स्थान सुरक्षित करने की सांठगांठ में लगा है।
दुष्प्रचार का पूरी ताकत से मुकाबला नहीं किया जा रहा है। मीडिया के प्रबृद्धजनों को साथ नहीं लिया जा रहा। अन्य राजनैतिक दलों के मुकाबले अवैतनिक, वैतनिक कार्यकर्ताओं व प्रचारकों को नियोजित नहीं किया। ग्रामस्तर पर संगठन को सुदृढ़, सक्षम व मजबूत नहीं किया। वर्तमान सरकार के जनविरोधी फैसलों के विरूद्ध कांग्रेस नेता राष्ट्रीय सवालों को नहीं उठा पा रहे हैं। चुनाव लड़ने के बजाय राज्यसभा व अपर हाउसों में जाने को ही प्रयत्नशील रहते हैं। जनोपयोगी व महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपक्रमों को जिन्हें कांग्रेस के शासन में स्थापित किया था, उनके निजीकरण के निर्णयों के विरूद्ध भी कोई सख्त विरोध अथवा सैद्धांतिक कार्यक्रम नहीं है।
कांग्रेस को अनुभवी नेताओं व प्रभावशाली सिद्धांत से चलने वाले युवा कार्यकर्ताओं को जोड़कर, मध्यम रास्ता बनाते हुए अनुभवी मजबूत नेताओं के नेतृत्व में आगे बढ़ना होगा। कांग्रेस की रीति नीति व इतिहास से अवगत कराकर एक प्रतिबद्ध मजबूत कैडर बेस्ड संगठन बनाना होगा। जो नेता विवादित हो गये हैं, व्यक्तिवादी हैं उन्हें संगठन में पदाधिकारी के रूप में महत्व नहीं दिया जाना चाहिए।
कांग्रेस संगठन यदि वर्तमान सरकार की कमियों, नोटबंदी, जीडीपी, लोकडाउन, मंदी, महंगाई, बेरोजगारी व राजकोष के दुरूपयोग, निजीकरण, किसान, मजदूर की अवहेलना व प्रत्याडना को लेकर जनता में जाये तो सफलता हाथ लगेगी परन्तु कांग्रेस संगठन को केवल भाजपा विरोधी चल रही अंतरधारा पर ही निर्भर नहीं रहकर अपने आदर्श, सिद्धांत व चिंतन को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए, अपने पोजिटिव प्रोग्रामों से संतुष्ट करना चाहिए कि कांग्रेस ही आज भी एकमात्र ऐसा दल है जो देश समाज व जनता की सेवा कर सकती है, देश में विकास के आयाम स्थापित कर सकती है। काँग्रेस पार्टी की मजबूती के लिए एकजुट होने की जो आवश्यकता है, उसका परिचय कांग्रेस पार्टी नहीं दे पा रही है। काँग्रेस को सेंट्रल राईट की नीति को छोड कर सेंट्रल लेफ्ट की नीति पुनः अपनानी चाहिएं। सेंट्रल राईट की नतियों से वह भाजपा से नहीं लड सकती क्योंकि भाजपा पूरी तरह राईट की नीति अपना रही है।
कांग्रेस को सचेत रहना होगा, वह राजस्थान में जीती हुई बाजी ना हार जायें। जनता इस समय अशोक गहलोत जैसे धीर गम्भीर व्यक्तित्व के धनी 40 साल के राजनीतिक अनुभव पर भरोसा करती है। एक सेवाभावी समर्पित जननेता के सफर में उन्हें कई अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ा है और वे हर बार कुन्दन की तरह खरे सिद्ध हुए हैं। भाजपा अगर आज राजस्थान में डरती है तो वह केवल एक शख्स अशोक गहलोत ही डरती है। उन्होंने जमकर लोहा लिया है। पूरे राजस्थान व छत्तीस कोमों में पकड़ रखने वाले गहलोत को जनता पुनः मुख्यमंत्री देखना चाहती है। काँग्रेस हाईकमान को उनको मजबूत करना चाहिऐ। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)