लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
www.daylife.page
जब राहुल गाँधी की भारत छोड़ो यात्रा दक्षिण के प्रदेश केरल से गुजर रही थी तो गुटों में बंटी प्रदेश कांग्रेस और इसके नेता पूरी तरह से यह आभास देने में लगे थे कि पार्टी में सब ठीक-ठाक है तथा पार्टी पूरी तरह से एक है। पार्टी के कई नेता इसका श्रेय राहुल गाँधी को देने में लगे थे। लेकिन अब ऐसा लगता है कि पार्टी एक बार फिर पहले की तरह गुटों में बंट गई है। इसी बीच कुछ नए गुट भी सामने आये हैं।
2021 के विधान सभा चुनावों से पूर्व यह लगभग निश्चित सा लग रहा था कि कांग्रेस वाममोर्चे की सरकार को हटा कर सत्ता में आ जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राज्य में वाममोर्चा सरकार की आम छवि ख़राब होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी सत्ता तक नहीं पहुंच पाई। जब पार्टी की हार को लेकर समीक्षा हुई तो यह सामने आया कि पार्टी की भीतरी गुट के चलते पार्टी के उम्मीदवार उन चुनाव क्षेत्रों में भी हार गए जहाँ वाममोर्चे के उम्मीदवार कमजोर स्थिति में थे। समीक्षा के बाद पार्टी के केंद्रीय नेताओं ने राज्य पार्टी में कई बदलाव किया। सतीशन के रूप में पार्टी को विधान सभा में नया नेता मिला। तब ऐसा लग रहा था कि पार्टी अब सुधार की ओर जा रही है। लेकिन कुछ महीनो के बाद पार्टी फिर अपने पुराने ढर्रे पर लौट आई। पार्टी में कई नए गुट भी सामने आने लगे। पार्टी का नया बनता संगठनात्मक ढांचा फिर बिखरने लगा।
शशि थरूर राज्य में कांग्रेस पार्टी के एक बड़े सम्मानजनक नेता है। कई बार से लोकसभा सदस्य है। केंद्र में मंत्री भी रह चुके है। हिंदी और अंग्रेजी पर उनकी एक जैसी पकड़ है। अपनी राजनीतिक टिप्पणियाँ भी बड़े संयमित ढंग से व्यक्त करते है। लेकिन अपने ही राज्य और कांग्रेस में वे एक बड़े नेता के रूप में नहीं उभर सके। इसका एक कारण यह भी बताया जाता है कि उनका रुख किसी एक गुट की ओर नहीं है। वे अपने ही बल पर राजधानी श्रीअनंतपुरम सीट से लोकसभा के लिए जीतते आये है।
इस समय था जब पार्टी में दो बड़े नेता थे। एक ए.के. एन्थोनी तथा दूसरे थे के करुणाकरण। दोनों ही राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके है। एन्थोनी गाँधी परिवार के बहुत निकट माने जाते है तथा केंद्र में रक्षा मंत्री भी रह चुके है। लेकिन समय के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी में इन दोनों का प्रभाव घटता चला गया और नई गुट बंदियां सामने आईं।
पिछले कुछ समय से शशि थरूर को लग रहा है कि अगर वे राज्य में अपनी राजनीतिक पैठ बढायें तो वे 2026 के चुनाव में पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते है। इसी को सामने रखते हुए उन्होंने राज्य के कुछ हिस्सों को दौरा करना शुरू किया। अपने ही स्तर पर कई स्थानों पर पार्टी के कार्यकर्ताओं की बैठकें कीं। प्रदेश कांग्रेस नेताओं की ओर से कहा गया कि यह पार्टी का कार्यक्रम नहीं है। इसके बावजूद अच्छी खासी संख्या में पार्टी के स्थानीय नेता इन बैठकों में आये। पार्टी के निर्देश के बावजूद थरूर ने अपनी कार्यकर्त्ता बैठकों का दौर जारी रखा। वे धीरे-धीरे राज्य में एक बड़े चेहरे के रूप में उभरना शुरू हो गए।
ए.के. एन्थनी के बेटे अनिल एन्थोनी काफी समय से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय हैं। कुछ समय पूर्व तक राज्य पार्टी के डिजिटल मीडिया कमेटी के संयोजक भी थे। राहुल गाँधी जब श्रीनगर में प्रधान मंत्री मोदी पर बीबीसी डाक्युमंटरी को भारत में न दिखाए जाने की आलोचना कर रहे थे उसी समय केरल के राजधानी में जूनियर एन्थोनी ने इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन किया। इसको ले राज्य पार्टी में बड़ा बवाल हुआ। इसके चलते एन्थोनी ने राज्य पार्टी के सभी पदों और केंद्रीय समितियों से त्याग पत्र दे दिया। एन्थोनी शशि थरूर के बहुमत निकट माने जाते है ओर ऐसा कहा जाता है कि पदों से त्यागपत्र देने का फैसला किया वह थरूर की सलाह पर ही किया।
उधर राज्य के राजनीतिक गलियारों और कांग्रेस हलकों में यह कहा जा रहा है कि पिछले कुछ समय से थरूर ने बीजेपी पर अपने हमले कम कर दिए दिए है। पिछले दिनों जब हिन्डबर्ग रिपोर्ट पर कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा से वाक आउट किया था तब थरूर तुरंत सदन में लौटा आये थे। प्रधानमंत्री मोदी ने उनको इसके लिए उन्हें विशेष रूप से धन्यवाद दिया था। चर्चा यह है कि लोकसभा चुनावों से पूर्व थरूर अपने साथियों के साथ बीजेपी में शामिल हो सकते है। अगर ऐसा होता है तो यह पूरी संभावना है कि जूनियर एन्थोनी भी उनके साथ जा सकते है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)