देश बर्दाश्त नहीं करेगा धार्मिक उन्माद बढ़ाने की साजिश : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।

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बीते दिनों दिल्ली का रामलीला मैदान जमीयत उलेमा ए हिंद का धार्मिक सद्भावना सम्मेलन सद्भावना की जगह विवादों का अखाड़ा बन गया। असलियत में विवादों के जन्मदाता धार्मिक सद्भावना सम्मेलन के आयोजक जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ही रहे जिन्होंने आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत के घर वापसी संबंधी बयान पर यह कहकर कि घर वापसी और सारे मुसलमानों को हिंदू बताने वाला बयान "जाहिल" जैसा है और "हम आदम की औलाद को मनुष्य कहते हैं जबकि ये हिंदू मनु की औलाद को मनुष्य कहते हैं। 

उन्होंने आगे कहा कि जब न श्रीराम थे, न ब्रह्मा और न शिव, तब मनु यानी आदम किसकी पूजा करते थे। बहुत कम लोग बताते हैं कि वह ओम को पूजते थे जिसका कोई रंग नहीं है। वह हवा है। उसने आसमान बनाया, उसने ही जमीन बनाई। उसे ही तो हम अल्लाह कहते हैं। इन्हीं को तुम ईश्वर कहते हो, फारसी बोलने वाले खुदा कहते हैं और अंग्रेजी बोलने वाले गाड कहते हैं। इसका मतलब मनु यानी आदम ओम यानी अल्लाह को पूजते थे। यानी ओम व अल्लाह और मनु व आदम एक ही हैं। इस्लाम भारत के लिए कोई नया मजहब नहीं है, बल्कि अल्लाह ने आदम यानी मनु को यहीं उतारा। उनकी पत्नी हव्वा को भी यहीं उतारा। जिन्हें वे हिंदू यानी हमवती कहते हैं और वे सारे नबियों, मुसलमानों, हिंदुओं और ईसाइयों के पूर्वज हैं। अरशद मदनी के इस तरह के बेतुका बयान के बाद सम्मेलन के मंच पर मदनी द्वारा ही बुलाये गये दूसरे धर्मों के धर्मगुरू जिनमें परमार्थ निकेतन हरिद्वार के स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज, सिख धर्मगुरु सरदार चंडोक सिंह जी, जैन मुनि आचार्य लोकेश मुनि जी महाराज आदि विरोध स्वरूप मंच से उतर गये। 

जैन मुनि आचार्य लोकेश जी ने कहा कि मदनी साहब मेरे पिता समान हैं। लेकिन उन्होंने जो बातें कहीं हैं वे सब बकवास हैं। उन्होंने जैन धर्म के तीर्थंकरों का हवाला देते हुए कहा कि मैं मदनी साहब की बातों से सहमत नहीं हूं। मैं मदनी को इस मुद्दे पर शास्त्रार्थ की चुनौती देता हूं। वह चाहें सहारनपुर बुलायें या फिर दिल्ली आयें, मैं आ जाउंगा। हम तो केवल सद्भाव के पक्षधर हैं और उसी माहौल में रहने के लिए सहमत हैं। हमें हमारे मां-बाप ने पैदा किया है। हम महावीर या अल्लाह को उनसे ऊपर मानते हैं। हम अपने धर्म और संस्कृति का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते। इस पर दर्शक दीर्घा से उन धर्म गुरूओं के खिलाफ नारे लगाये गये, जैन धर्माचार्य लोकेश मुनि पर हमले की कोशिश की गयी।

दरअसल मौलाना अरशद मदनी का यह बयान आर एस एस समेत हिंदू संगठनों से संवाद बढ़ाने की कोशिशों पर पलीता लगाने की कोशिश ही है, इसमें दो राय नहीं। साथ ही इससे दो धडो़ं में बंटी जमीयत उलेमा ए हिंद को एक साथ लाने की कोशिश भी बेपटरी हो गयी। इस्लामोफोबिया और डर के माहौल का जिक्र कर देश के समाज को बड़ा संदेश देने के साथ  ही लगे हाथ आर एस एस और भाजपा से संवाद स्थापित करने की मौलाना मदनी की कोशिश भी उन्हीं के बयान के चलते नाकाम हो गयी। जबकि जमीयत के लोगों का मानना है कि मौलाना ने इस तरह की बयानबाजी कर अच्छे माहौल को बिगाड़ने का काम किया है। इस बात को दरगुज़र नहीं किया जा सकता कि मौलाना के इस कारनामे से मुस्लिम समाज में भी काफी बेचैनी है। वह बेहद चिंता में है। सबसे बड़ी बात यह कि मुस्लिम धर्मगुरुओं ने ही मौलाना के बयान का विरोध करते हुए कहा है कि यह मुस्लिम समाज को गुमराह करने वाला है।  

जमात उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना सुहैब कासमी कहते हैं कि वह चाहे अरशद मदनी हों या फिर महमूद मदनी, इन दोनों ने देश के मुस्लिमों को बरगलाने, बहकाने और भड़काने का काम किया है। जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता फिरोज बख्त अहमद की मानें तो मदनी ने सद्भावना के नाम पर दुर्भावना ही परोसी है। सनातन धर्म, मनु व ओम आदि के खिलाफ जहर उगलकर देश में आग लगाने का काम किया है। भागवत जैसे प्रतिष्ठित इंसान को जाहिल कहना उनकी मनस्थिति को दर्शाता है। इंडियन मुस्लिम फार प्रोग्रेस एण्ड रिफोर्म के चेयरमैन डा० एम जे खान का कहना है कि अधिवेशन में यह कहना कि देश का मुसलमान असुरक्षित है, बिलकुल निराधार और बेमानी है जबकि इस देश में सबकी अपनी अपनी भूमिका है जिसे नकारा नहीं  जा सकता। दरगाह आला हजरत के मुफ्ती मुहम्मद सलीम बरेलवी कहते हैं कि मदनी ने अल्लाह की शान में गुस्ताखी की है, इसलिए दारुल उलूम देवबंद के फतवा विभाग को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। अल्लाह को केवल उन्हीं नामों से पुकार सकते हैं जिनका विवरण कुरान व हदीस में हो। मदनी द्वारा हव्वा की तुलना अल्लाह से करना भी गलत है। 

यदि मदनी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गयी तो यह माना जायेगा कि देवबंद मसलक का भी अल्लाह के प्रति यही नजरिया है। दरअसल मौलानाओं का यह मानना है कि इस्लामी तारीख बताती है कि इस्लाम भारत में नया मजहब है। सपा सांसद शफीकुर रहमान वर्क कहते हैं कि ओम और अल्लाह अलग शब्द हैं। इनके अर्थ और अनुयायी भी अलग हैं। ऐसे में दोनों को समान कहना बहुत बड़ी गलती है।इस तरह के बयान आपस में विरोधाभास पैदा करते हैं। आल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शाहबुद्दीन रजवी ने मदनी का विरोध करते हुए कहा है कि भारत में इस्लाम सबसे पुराना नहीं है। इससे पहले भारत में आर्य, बौद्ध थे। 

इस संदर्भ में स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज कहते हैं कि -मोहब्बत से पूरी ज़िन्दगी गुजारी जा सकती है लेकिन इतिहास गवाह है कि नफरत से आज तक किसी का भी भला नहीं हुआ है। मजहब के नाम पर ही हमारे देश का बंटवारा हुआ और परिणामस्वरूप एक देश दो हो गये। जगदगुरु ज्योतिषपीठाधीश्वर अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि यदि मदनी कहते हैं कि अल्लाह और ओम एक है तो वह इसे प्रमाणित करने के लिए अपनी मसजिदों पर लिखवा दें। इसकी शुरूआत वह काबा से करायें। वहां और जहां-जहां अल्लाह लिखा है वहां सोने के वर्क से ओम लिखवायें क्योंकि उनके अनुसार दोनों एक ही हैं। 

यह रार अब थमती नहीं दिखती। कारण मदनी के बयान से हिंदू संगठन बेहद गुस्से में हैं। हिंदू संगठनों व बुद्धिजीवियों को भारत को इस्लाम की मातृ भूमि के साथ ही ओम और अल्लाह को एक बताने वाला बयान बहुत ही नागवार गुजरा है। इससे मौलाना महमूद मदनी ही नहीं  बल्कि अरशद मदनी भी अब सवालों के घेरे में हैं। महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय के कुलपति व धर्म दर्शन के प्रख्यात विद्वान रजनीश शुक्ल कहते हैं कि यदि इस्लाम बाहरी धर्म नहीं था तो इस्लामी शासकों द्वारा हिंदुओं पर जजिया कर क्यों लगाया गया। मंदिरों को क्यों तोडा़ गया। हकीकत में इस्लाम तलवार और कुरान एक साथ लेकर आया और इन्हीं के बलबूते उसका प्रसार हुआ। 

शुक्ल कहते हैं कि यदि इस्लाम भारतीय है, उस दशा में अहमदिया और बोहरा मुस्लिम आज भी गैर मुस्लिम क्यों हैं? स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज जो अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महासचिव हैं, कहते हैं कि भारत सरकार तथ्यों के आधार पर इतिहास का पुनर्लेखन करे जो समय की मांग है। तुर्की और सीरिया में आये विनाशकारी भूकंप में वहां तीन हजार साल पुराने मंदिर निकले हैं। द्वारका में पांच हजार साल पुराना मंदिर है। अगर इस देश को इस्लाम से जोड़ने को लेकर उनके पास यानी मदनी के पास कोई साक्ष्य हैं तो उपलब्ध करायें अन्यथा देश से माफी मांगें। उनके अनुसार हमारे पास मनु की मनुस्मृति है,याज्ञवल्कय की याज्ञवल्क्य स्मृति है, रावण की रावण संहिता है, उनके पास कुरान के अलावा क्या है। और तो और 65 हदीसें भी एक दूसरे का खंडन करती हैं। क्या उनके आदम की निशानी भारत में मौजूद है। यूनाइटिड हिंदू फ्रंट ने तो अरशद मदनी को तत्काल गिरफ्तार करने की मांग की है। विश्व हिंदू परिषद के विनोद बंसल ने तो इस सम्मेलन के आयोजन पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि यह सद्भावना सम्मेलन था या जमीयत की जहरीली जमात का जमावड़ा, क्योंकि इसमें इस्लाम की प्रभुता दर्शाते हुए यूसीसी का विरोध किया गया, अपने लिए अलग कानून की मांग की गयी। कहा गया कि इस्लाम को सबसे पुराना धर्म बताकर अन्य धर्म को खत्म कर देना है। इससे इनका चाल, चरित्र और चेहरा उजागर हो गया है। हिंदू संगठन तो यह कहते हुए कि यदि इस्लाम बाहरी नहीं है तो फिर बड़ी तादाद में मतांतरण का क्या औचित्य था। इसलिए मुस्लिम नेताओं को तत्काल माफी मांगनी चाहिए।

कैसी विडम्बना है कि हमारे देश में कभी कोई राजनेता जातिगत समीकरण साधने की गरज से हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ रामचरित मानस पर अशोभनीय टिप्पणी कर, उसकी प्रतियां फाड़कर वोटों के ध्रुवीकरण की जुगत में रात-दिन एक कर रहा है, वहीं कोई मौलाना अल्लाह और ओम एक ही हैं और देश में मुसलमान असुरक्षित हैं, का ढिंढोरा पीटकर मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा बनने की जुगत में है। वह बात दीगर है कि ऐसे लोगों को उनके अपने ही वह चाहे दल विशेष के हों या फिर धर्म गुरू या मौलाना ही उनको शीशा दिखा कर उनका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। जबकि यह सारी दुनिया जानती-समझती है कि भारत में मुसलमान कितने किस हद तक सुरक्षित हैं और चैन की रोटी खा रहे हैं। पाकिस्तान का हश्र सबके सामने है जहां भूख, गरीबी, तंगहाली और बरबादी के सिवा कुछ नहीं  है। यह उन लोगों के लिए भी करारा सबक है जो भारत में रहकर पाकिस्तान जिंदाबाद और भारत तेरे होंगे टुकड़े-टुकडे़ के नारे लगा- लगाते बाज नहीं  आते। वे यह भूल जाते हैं कि ऐसी आजादी महावीर, बुद्ध, नानक और गांधी के हिंदुस्तान में ही संभव है। किसी दूसरे मुल्क में नहीं। यह बात ऐसा करने वालों को याद रखनी होगी कि बरदाश्त की भी कोई हद होती है। सीमा का अतिक्रमण महाभारत काल में शिशुपाल ने भी किया था।उसके हश्र से भी सभी परिचित हैं। यह हमारे देश का इतिहास है। 

महमूद मदनी द्वारा माफी मांगा जाना और अरशद मदनी का अपनी बातों पर अडे़ रहना, इन सवालों का हल नहीं है। लोकेश मुनि द्वारा उनको क्षमादान हमारी सहिष्णुता का परिचायक है।लेकिन बार-बार ऐसी गलतियां न देश हित में हैं और न समाज और धर्म हित में हैं। क्योंकि देश संविधान से चलता है। इसमें दो राय नहीं। यहां विचारणीय यह है कि आखिर देश में ऐसा कबतक चलेगा। देश में किसी भी धर्म के अपमान, व्यक्ति की भावनाओं से खिलवाड़ और निजता से खिलवाड़ की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)