कर्नाटक में विधान सभा चुनावों से पहले नए दल की सुगबुगाहट

लेखक : लोकपाल सेठी

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक)

www.daylife.page 

कर्नाटक विधानसभा के चुनाव अब केवल कुछ महीने ही दूर है। बीजेपी हर संभव तरीके से राज्य में फिर सत्ता में आने में लगी है। उधर कांग्रेस के नेताओं को पूरा विश्वास है कि अगले चुनाव के बाद वह सत्ता में आयेगी। ऐसी स्थिति में राज्य की राजनीति ने एक नई करवट ली है। राज्य में एक नया राजनीतिक दल सामने आया है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि इस राजनीतिक दल को शुरू करने वाले जनार्दन रेड्डी है कभी बीजेपी के बड़े नेता थे। इसलिए यह दल  बीजेपी को बड़ा नुकसान कर सकता है। उधर बीजेपी नेताओं का दावा है कि रेड्डी पिछले एक दशक से राजनीति से दूर है इसलिए वे अब बीजेपी को कोई नुकसान पहुँचाने की स्थिति में नहीं है। वैसे भी उनका प्रभाव एक जिले तक ही सीमित है। 

रेड्डी कभी येद्दियुरप्पा के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री रहे है। पिछले सप्ताह इस बड़े और विवादस्पद खनन कारोबारी ने  कल्याण राज्य प्रगति पक्ष नाम के राजनीतिक दल के गठन की घोषणा की तथा कहाँ कि उनकी ने पार्टी न केवल अगले विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार खड़े करेगी बल्कि वे खुद प्रचार मैदान में उतरेंगे। 

रेड्डी विवादों से घिरे खनन व्यापारी है। उनका खनन व्यवसाय न केवल राज्य के बल्लारी जिले में है बल्कि इससे सटते आन्ध्र प्रदेश के अनंतपुर और कडप्पा  जिलों में भी फैला है। उन पर अवैध खनन के आरोप हैं। जिसकी जाँच सीबीआई कर रही है। उन्हें इस आरोपों के चलते  गिरफ्तार किया गया था तथा वे कई साल जेल में रहे है। 2015 सर्वोच्च न्यायालय से उनको जमानत मिली लेकिन इसके लिए यह शर्त लगाई गई थी कि जब तक इन जाँच पूरी नहीं होती वे इन जिलों में प्रवेश कर सकते। तब से वे बंगलुरु में ही रह रहे है। 

उन्होंने बल्लारी से लगते जिले  के एक स्थान गंगावती में घर बनाया है। उन्होंने यह भी घोषणा की है कि वे अगला चुनाव इसी चुनाव क्षेत्र से लड़ेंगे। पिछले एक दशक से बीजेपी के नेता अक्सर यह कहते रहे है कि इस खनन कारोबारी, जिसके पास अपार सम्पदा है, का बीजेपी से कुछ लेना देना नहीं है। लेकिन न तो उनको कभी बीजेपी से निकला गया और न ही उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि वे बीजेपी में नहीं है। लेकिन उनकी बीजेपी के नेताओं से निकटता किसी से छिपी नहीं। उनको कभी येद्दियुरप्पा का दत्तक पुत्र कहा जाता है। 

एक दशक पहले जब बीजेपी की दिवंगत नेता सुषमा स्वराज ने बल्लारी से तब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा था तो चुनाव की सारी कमान उनके पास ही थी। स्वयं स्वराज उनको अपना राखी बांध भाई कहती थी। जब उनके खिलाफ सीबीआई ने जाँच शुरू की तब येद्दियुरप्पा और स्वराज ने उनको  बचाने के हर संभव कोशिश की थी। 2018 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने पर्दे के पीछे रह बीजेपी के उम्मीदवारों के लिए काम किया था। इन चुनावों में उनके दो भाई करुणाकरण रेड्डी और सोमशेखर रेड्डी बल्लारी जिले के दो विधानसभा क्षेत्रों से बीजेपी के  उम्मीदवार के रूप में चुने गए थे। वाल्मीकि समाज से आने वाले  श्रीरामुलु इस इलाके के एक बड़े नेता है। उन्हें जनार्दन रेड्डी का सबसे महत्वपूर्ण हाथ समझा जाता है। वे बीजेपी के बड़े नेता भी है। वे भी पास के एक चुनाव क्षेत्र चित्रदुर्ग से चुन कर विधानसभा पहुंचे है। वे इस समय बीजेपी सरकार में मंत्री भी है। 

जब जनार्दन रेड्डी ने नए दल के गठन के घोषणा की तो यह समझा गया कि ये तीनो विधायक विधानसभा से त्यागपत्र देकर नए दल में शामिल हो जायेंगे। लेकिन फिलहाल ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा। अपनी ओर से जनार्दन रेड्डी ने कहा है की वे इन पर बीजेपी छोड़ नए दल में शामिल होने का दवाब नहीं   बनायेंगे। फिलहाल नए दल का कोई संगठनात्मक ढांचा नहीं है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे-जैसे राज्य के दोनों बड़े दल अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा करेंगे और जिनको टिकट नहीं मिलेगी जनार्दन रेड्डी उनको अपना उमीदवार बनाने में तरजीह देंगे। 

इस बात के संभावना से इंकार  नहीं किया जा सकता है कि दोनों दलो के ऐसे कुछ बागी नेता चुनाव जीत भी जायें। अगर इन चुनावों में बीजेपी और और कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तो ऐसी स्थिति में जनार्दन रेड्डी की भूमिका किंग मेकर की हो जाएगी। फ़िलहाल दोनों बड़े राजनीतिक दल इस बात का आंकलन करने में लगे है कि   नई पार्टी के मैदान में आने से उनको क्या लाभ अथवा क्या नुकसान होगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)