राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर विशेष
लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
लेखक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं
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विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय उपभोक्ता आंदोलन के परस्पर संबंधों को मनाने और एकता प्रदर्शित करने का दिन है। यह संयुक्त राज्य अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन. एफ. कैनेडी द्वारा 15 मार्च 1962 को चार मूलभूत उपभोक्ता अधिकारों के बारे में की गई ऐतिहासिक घोषणा की याद में मनाया जाता है।
उस घोषणा के फलस्वरूप सरकारों और संयुकत राष्ट्र संघस द्वारा अंततः इस बात पर बल दिया गया कि सभी नागरिको को उनकी आय या सामाजिक स्थिति पर विचार किए बिना उपभोक्ता के रूप में कुछ मूलभूत अधिकार हैं। भारत सरकार ने इसी के अनुरूप उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 पारित किया जिसमें उपभोक्ताओं को मूलभूत अधिकार प्रदान किए गए जो कि इस प्रकार हैः-
सुरक्षा का अधिकार:- उपभोक्ता का प्रथम अधिकार सुरक्षा का अधिकार है। उसे ऐसी वस्तुओं एवं सेवाआं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है जिनसे उसके शरीर एवं संपत्ति को हानि उत्पन्न हो सकती है। उसे किसी भी वस्तु या सेवा से चोट लगने या बीमार होने या क्षति होने या किसी भी व्यक्ति के के अविवेकपूर्ण आचरण से क्षति होने के विरूद्ध सुरक्षा पाने का अधिकार है। उपभोक्ता इस अधिकार के द्वारा खराब एवं दुष्प्रभावी खाद्य वस्तुओं, नकली दवाओं, घटिया यंत्रों एवं उपकरणों तथा बाजार में उपलब्ध घटिया, नकली, जाली सभी वस्तुओं में होने वाली धन, स्वास्थ्य एवं शरीर की हानि से सुरक्षा प्राप्त कर सकता है।
चुनाव या पसंद का अधिकार:- उपभोक्ता अपने इस अधिकार के अन्तर्गत विभिन्न निर्माताओं द्वारा निर्मित विभिन्न ब्रांड, किस्म, गुण, रूप, रंग, आकार तथा मूल्य की वस्तुओं में से किसी भी वस्तु का चुनाव करने को स्वतंत्र होगा।
सूचना पाने का अधिकार:- उपभोक्ता को वे सभी आवश्यक सूचनाएं भी प्राप्त करने का अधिकार होता है जिनके आधार पर वह वस्तु या सेवा खरीदने का निर्णय कर सके। यह सूचनाएं वस्तु की किस्म, मात्रा, शुद्धता, प्रमाण, मूल्य आदि के संबंध में हो सकती है। इन सूचनाओं को प्राप्त करके कोई भी उपभोक्ता व्यवसायी के अनुचित व्यापारिक व्यवहारों से भी सुरक्षा प्राप्त कर सकता है।
सुनवाई या कहने का अधिकार:- उपभोक्ता को अपने हितों को प्रभावित करने वाली सभी बातों को उपयुक्त मंचों के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार है। वे अपने इस अधिकार का उपयोग करके व्यवसायी एवं सरकार को अपने हितों के अनुरूप निर्णय लेने तथा नीतियां बनाने के लिये बाध्य कर सकते हैं। सुनवाई का अधिकार ही वह अधिकार है जिसके द्वारा वह अपनी शिकायत को व्यक्त कर सकता है तथा अपने अन्य उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा कर सकता है।
उपचार का अधिकार:- यह अधिकार उपभोक्ता को यह आश्वासन प्रदान करता है कि क्रय की गई वस्तु या सेवा उचित एवं संतोषजनक ढंग से उपयोग में नहीं लाई जा सकेगी तो उसे उसकी उचित क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होगा। उपभोक्ता के इस अधिकार की रक्षा के लिये सरकार कानूनी व्यवस्था करती है। भारत के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस प्रकार की व्यवस्था की गई है।
उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार:- इस अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ता को उन सब बातों की शिक्षा या जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होता है जो एक उपभोक्ता के लिये आवश्यक होती है। शिक्षा उपभोक्ता की जागरूकता की आधारभूत आवश्यकता है जबकि सूचना किसी क्रय की जाने वाली वस्तु या सेवा के संबंध में जानकारी है।
मूल्य या प्रतिफल का अधिकार:- उपभोक्ता यह अपेक्षा करने का अधिकार भी रखता है कि उसे उसके द्वारा चुकाए गए धन का पूरा मूल्य मिल सकेगा। उसे व्यवसायी द्वारा विक्रय के दौरान या विज्ञापन में किए गए वायदों तथा जगाई गई आशाओं को पूरा करवाने का अधिकार होता है।
संसद द्वारा पारित इस अधिनियम पर राष्ट्रपति ने दिनांक 24 दिसम्बर 1986 को हस्ताक्षर किए और यह कानून उसी दिन से पूरे भारत में लागू माना गया। इसी परिप्रेक्ष्य में 24 दिसम्बर को ’’राष्ट्रीय उपभोक्त दिवस’’ मनाने का निर्णय भारत सरकार द्वारा लिया गया जिसके द्वारा यह दर्शाया जाता है कि उपभोक्ता द्वारा अघ्किारों को मान्यता प्रदान करना और उनकी रक्षा करना सामाजिक और आर्थिक प्रगति का महत्वपूर्ण और गरिमामय परिचायक है। उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिये एवं उन्हें अधिकतम संतुष्टि प्रदान करने के लिये उपभोक्ता अधिकारों का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार करना और उपभोक्ताओं को जागरूक करना आवश्यक है।
अतः उपभोक्ताओं को शोषण होने से बचाने के लिये सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण हेतु उपभोक्ताओं को अनेक अधिकार प्रदान किए हैं तथा नियम, कानून एवं उपभोक्ता अदालतें भी बनाई हैं परन्तु वर्तमान में शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में इनके प्रचार प्रसार की अति आवश्यकता है। उपभोक्ताओं को इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए कि घटतौली, मिलावट, भ्रष्टाचार के विरूद्ध उनके क्या अधिकार है और उनको कौन से कदम इनके विरूद्ध उठाना चाहिए। यदि वास्तव में हमें उपभोक्ताओं को संतुष्टि पंहुचाना है और लाभ देना है तो उदारीकरण एवं सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों की रक्षा एवं हितों के संरक्षण हेतु जागरूक बनाने के साथ-साथ समाज में ईमानदारी का वातावरण सृजित करने की भी नितांत आवश्यकता है। (लेखक का पैन अध्ययन एवं अपने विचार है)