ताकि, कोई भूखा न सोए

लेखक : नवीन जैन

स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)

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कुछ दिनों पहले आई एक दुखद खबर में कहा गया था कि भुखमरी को लेकर भारत नेपाल और बांग्लादेश से भी पिछड़ी हुई स्थिति में है। विश्व इंडेक्स के इस तरह के खुलासे को लेकर अक्सर मीडिया और विपक्ष केंद्र सरकार की घेरा बंदी भी करता रहे है, जो सिर्फ़ विरोध के नाम पर किया गया विरोध ही नहीं होता, बल्कि कुपोषण और भुखमरी को लेकर भारत की हालत  वास्तव में विडंबना पूर्ण ही है। कारण कि अन्न उत्पादन में भारत कभी का न सिर्फ आत्म निर्भर हो चुका है, बल्कि अब तो यूरोप के साथ अफगानिस्तान (तालिबान) को अनाज का निर्यात भी करने लगा है। 

बावजूद इसके विश्व स्वास्थ्य संगठन का ही यह भी कहना है कि भारत में आज भी करीब 19 करोड़ लोग भूखे सोते हैं। इसी दर्दनाक स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने चरण बद्ध तरीके से भुखमरी, और कुपोषण पर कड़ी लगाम कसने के लिए एक परिणाम मूलक योजना बनाई है। मीडिया में आ रही ताजा खबरों के अनुसार अब केन्द्र सरकार तैयार भोजन, और अनाज बचाने के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में एक सम्पूर्ण अध्याय जोड़ने की दिशा में काम कर रही है, ताकि स्कूली जीवन से ही बच्चों में भोजन, और अनाज को बचाने के प्रति आवश्यक संवेदना, जिम्मेदारी, जागरूकता, और सक्रियता की भावना पैदा होने में मदद मिल सके।

2020 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में प्रत्येक साल लगभभ 81 करोड़ लोग रोजाना भूखे  सोते थे, जिनमें से 19 करोड़, तो भारत के थे। दुनिया में हरेक व्यक्ति लगभग 94 किलो तैयार अनाज बर्बाद करता है। इसमें भी भारत का हिस्सा अमूमन 40 फीसद है। हर साल घरों में 6.8करोड़ टन भोजन खराब होता है, जो सीधे कूड़े दान के हवाले कर दिया जाता है। इसकी लागत होती है लगभग एक लाख करोड़ रुपए। 

अर्थशास्त्री रमेश सिंह कहते हैं कि कूड़े में फेंके गए भोजन का प्रबंधन है, तो मुश्किल, लेकिन नामुमकिन नहीं है। वे, कहते हैं कि स्कूली जीवन से बच्चे बचे हुए भोजन के बारे में जागरूक हुए, तो उसे जरूरत मंदो तक पहुंचाने में आसानी होगी। बच्चों में इसके लिए आवश्यक संस्कार शुरू से जड़ें जमाएंगे। यहां संदर्भ देना उचित होगा कि जापान एक मात्र देश है , जहां लोग 125 साल तक स्वस्थ, प्रसन्न ,सक्रिय जीवन जी जाते हैं, जिसके कारण उन्हें सीनियर सुपर सिटीजन का तमगा हासिल है। इसका मूल का कारण जापानी बच्चों को साफ़ सफाई की दी जाने वाली नियमित शिक्षा। वहां के विद्यालयों में पहला प्रिडियड ही स्वच्छता के सबक सिखाने वाला होता है। 

यहां संदर्भ देना उचित होगा कि जापान एक मात्र देश है, जहां लोग 125 साल तक स्वस्थ, प्रसन्न, सक्रिय जीवन जी जाते हैं, जिसके कारण उन्हें सीनियर सुपर सिटीजन का तमगा हासिल है। इसका मूल का कारण जापानी बच्चों को साफ़ सफाई  की दी जाने वाली नियमित शिक्षा। वहां के विद्यालयों में पहला प्रिडियड ही स्वच्छता के सबक सिखाने वाला होता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)