आखिर कब साफ होगी यमुना : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।

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दिल्ली सरकार बीते बरसों से यमुना को 2025 तक साफ करके नहाने लायक बनाने का लगातार दावा करती रही है। इस दिशा में वह समय-समय पर लाख कवायद करने का दावा भी करती रही है लेकिन हकीकत इसके बिलकुल उलट है। असलियत यह है कि बीते पांच साल में यमुना नदी पहले से और ज्यादा प्रदूषित हो गयी है। नहाने की बात तो दीगर है, उसका पानी आचमन लायक तक नहीं रहा है। वह जानलेवा बीमारियों का सबब बन चुका है। इसकी पुष्टि तो पर्यावरण विभाग तक कर चुका है। यदि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानें तो हालत इतनी खराब है कि यमुना के पानी में फीकल कोलिफार्म की मौजूदगी 272 गुणा से भी ज्यादा है जो अधिकतम स्वीकृत मानक से 6.8 से भी बहुत अधिक है। 

विडम्बना यह है कि इनकी तादाद दैनोंदिन तेजी से बढ़ रही है जो खतरनाक संकेत है। यदि इलाके वार इसका जायजा लें तो पाते हैं कि यमुना के पानी में फीकल कोलिफार्म की मौजूदगी बजीराबाद में अधिकतम स्वीकृत संख्या से 6.8 गुणा ज्यादा है, आई टी ओ पुल के पास यह बढ़कर 80 गुणा से ज्यादा हो गया है और ओखला बैराज तक आते-आते यह 132 गुणा हो गया है जो असगरपुर पहुंचने पर 272 गुणा का आंकड़ा पार कर गया है। सबसे ज्यादा चिंता का सबब यह है कि वह चाहे आइएसबीटी हो, निजामुद्दीन पुल का एरिया हो,ओखला बैराज हो या फिर दिल्ली क्षेत्र का कोई भी इलाका, यमुना के पानी में आक्सीजन की मात्रा शून्य पायी गयी है। प्रदूषण बोर्ड तक इसकी पुष्टि कर चुका है। 

गौरतलब है कि बजीराबाद से लेकर ओखला के बीच घरेलू अपशिष्ट जल और रसायन युक्त औद्योगिक अपशिष्ट को ले जाने वाले 22 बड़े नाले सीधे-सीधे यमुना में गिरते हैं। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि यमुना की कुल लम्बाई का मात्र 22 किलोमीटर का इलाका दिल्ली में पड़ता है लेकिन सबसे बड़ी हकीकत यह है कि यही 22 किलोमीटर का इलाका यमुना को सबसे ज्यादा प्रदूषित करता है। आंकड़ों की माने तो नदी के 80 फीसदी प्रदूषण के लिए यही 22 किलोमीटर का इलाका सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। सच्चाई यह है कि पूरी यमुना में जो गंदगी है,  उसमें 80 फीसदी तो दिल्ली की ही गंदगी है। 

यमुनोत्री से प्रयागराज तक बहने वाली यमुना का मात्र दो फीसदी हिस्सा ही दिल्ली में बहता है। लेकिन उसी में वह 80 फीसदी प्रदूषित हो जाती है। मात्र 20 किलोमीटर के दायरे में हर दो किलोमीटर पर दो नाले यमुना को प्रदूषित कर रहे हैं। नाले गिरते ही यमुना का पानी नाले के पानी समान काला हो जाता है, उसमें झाग बनना शुरू हो जाता है। नतीजतन उसमें अमोनिया का स्तर बढ़ने लगता है और वह दुर्गंधमय हो जाता है। योजना अनुसार हर नाले पर एसटीपी लगायी जानी थीं,  वह काम भी आजतक नहीं हो सका है। पर्यावरण विभाग द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के पांच इलाकों से लिए गये यमुना के पानी की जांच रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि राजधानी के प्रत्येक इलाके के यमुना के पानी में पिछले पांच साल के दौरान बीओडी का सालाना औसत स्तर लगातार बढ़ रहा है जो चिंतनीय है। 

गौरतलब यह है और यह गर्व करने वाली बात है कि दिल्ली में दो सरकारें हैं। केन्द्र में भाजपा की सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में आप की सरकार है। लेकिन यमुना साफ कर पाने में दोनों दलों की सरकारें नाकाम रही हैं। जबकि यमुना सफाई अभियान को शुरू हुए दो दशक से भी अधिक का समय बीत चुका है। लेकिन हालात जस के तस हैं। यमुना को टेम्स बनाने का सपना तो सपना ही बनकर रह गया है। यमुना की हालत देखकर तो यही लगता है कि यमुना टेम्स बन पायेगी, इस सदी में तो उसकी आशा करना ही बेमानी है। उस दशा में जबकि केन्द्र सरकार यमुना की सफाई के लिए 1500 करोड़ और दिल्ली की सरकार एक बार 2074 करोड़ और दूसरी बार 200 करोड़ से ज्यादा राशि खर्च कर चुकी है लेकिन यह समझ से परे है कि इस राशि का हुआ क्या? 

इस सबके बावजूद नतीजा आज भी शून्य है। जबकि 2015 के अपने घोषणापत्र में आप पार्टी ने कहा था कि "यमुना दिल्ली का लम्बे समय से हिस्सा रही है लेकिन अब दिल्ली की जीवन रेखा यमुना मर रही है। हम दिल्ली के 100 फीसदी सीवेज का ट्रीटमेंट सुनिश्चित करेंगे और औद्योगिक गंदगी को यमुना में बहाये जाने से सख्ती से रोका जायेगा। " अब दिल्ली के मुख्यमंत्री को ही लें,  उनका कहना था कि यमुना की सफाई मेरी जिम्मेदारी है।  यमुना साफ होगी और अगले चुनाव से पहले मैं इसमें स्नान करूंगा। अगर इसमें मैं फेल हो जाऊं तो मुझे वोट मत देना। पांच साल में यमुना की सफाई मेरी प्राथमिकता होगी। यह तो रही दावों की बात। यही नहीं नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत यमुना की सफाई के लिए केन्द्र ने 4000 करोड़ से अधिक राशि के 13 प्रोजेक्ट स्वीकृत किये लेकिन खेद है कि अभी तक केवल दो ही पूरे हो सके हैं। 

अब सवाल यह है कि जब दिल्ली में यमुना की स्थिति इतनी बदहाल है, उस दशा में दिल्ली से आगे मथुरा-आगरा और उसके आगे यमुना की स्थिति क्या होगी, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। आगरा में तो 17वीं शताब्दी में बनी विश्व प्रसिद्ध इमारत ताजमहल से होकर यमुना बहती है। प्रदूषण से इस बेशकीमती इमारत, विश्व विख्यात धरोहर और दुनिया के अजूबे को बचाने की ख़ातिर बरसों से हायतौबा मची है जो जगजाहिर है। उस हालत में जबकि ताजमहल के आसपास गोल्डी काइरोनोमस नामक एक विशेष किस्म के कीड़े पाये जाते हैं। यह कीड़े ताजमहल पर अपनी गंदगी से हरे धब्बे डाल रहे हैं जिससे इस इमारत का संगमरमर बदरंग हो रहा है, उसकी रौनक खत्म हो रही है। इसका अहम मूल कारण वहां यमुना में पानी की कमी और यमुना में सीवर का सीधे-सीधे गिरना है। साथ ही यमुना के पानी में आक्सीजन की मात्रा का स्तर अत्याधिक कम होने के कारण हजारों मछलियाँ और जल जीवों की हो रही मौतें हैं। इस मुद्दे को लेकर एनजीटी में आगरा के ही जाने-माने पीडियाट्रिक सर्जन डा० संजय कुलश्रेष्ठ की दायर याचिका पर एनजीटी ने सख्त रवैय्या अख्तियार करते हुए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में तीन महीने में जांच करने और विभिन्न विभागों की टीम बनाकर रिपोर्ट व पूरा प्लान तैयार कर पेश करने का आदेश दिया है। 

असलियत में यमुना सफाई की दिशा में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण,अदालतें और पर्यावरण विभाग आदि सख्त नियम बनाते हैं, सुधार हेतु आदेश देते हैं लेकिन भ्रष्टाचार और प्रशासनिक तंत्र का निकम्मेपन कहें या नाकारेपन की इसमें सबसे बड़ी भूमिका है। उसमें भी राजनैतिक नेतृत्व की प्रबल इच्छाशक्ति का अभाव इसका सबसे बड़ा कारण है जिसे झुठलाया नहीं  जा सकता। क्योंकि नदी वोट बैंक नहीं है। 

कहने को नदियों के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है कि ये जीवन का आधार हैं, इनके किनारे संस्कृतियों पनपीं हैं और यह पुण्यसलिला हैं, पुण्यदायिनी, जीवनदायिनी हैं, इनको मां के रूप में पूजा जाता है, जन्म से लेकर अन्त समय तक के धार्मिक कर्मकाण्ड इन्हीं के किनारे होते हैं आदि आदि, यदि ऐसा वास्तव में मानव का सोच होता तो मेरा यह निश्चित मानना है कि यमुना तो कब की टेम्स बन चुकी होती और पतितपावनी मोक्षदायिनी गंगा सहित देश की सभी नदियाँ कब की शुद्ध, निर्मल,अविरल और सदानीरा बन चुकी होतीं। जरूरत है कि हम नदियों के जीवन में महत्व को समझते-जानते हुए अपनी जिम्मेदारी समझें,इनको पूजें और इन्हें कूडा़ गाड़ी बनाने का किंचित मात्र भी प्रयास न करें। यह भी कि नदियाँ रहेंगी तो हम रहेंगे अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब इनका अस्तित्व ही नहीं रहेगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)