राजस्थान में जन आन्दोलन का इतिहास : डॉ. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान (राजपूताना) 19 रियासतों में बंटा हुआ था। अजमेर, मेरवाडा पर सीधे अंग्रेजों का शासन था। सभी रियासतें राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक स्थिति में पिछड़ी हुई थी। रियासतों पर देशी नरेशों का निरंकुश एवं निर्बाध शासन था। इन राजाओं के तहत शक्तिशाली जागीरदार तरह-तरह के लागबाग, भेंट, बेगार लेते थे। ये सब शासक ब्रिटिश प्रतिनिधित्व के निर्देषानुसार कार्य करते थे। इन रियासतों की प्रजा अंग्रेजों, राजाओं और सामतों (जागीरदारों) की तीहरी गुलामी में रहती थी। रियासतों में लिखने, बोलने, खुले में विचार प्रकट करने की आजादी नहीं थी। राजा व जागीरदार निरंकुश होते थे। राजकोष का उपयोग भोग विलास व इच्छा के अनुरूप करते थे। रियासतों की प्रजा स्वतंत्रता, शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास से अपरिचित थी। राजा स्वतंत्रता के स्वरों को दबाने में अग्रसर रहते थे तथा स्वतंत्र एवं सुधारवाद से जुड़े लोगों को रियासत से निर्वासित कर देते थे।

1851 से 1947 तक इन देशी रियासतों ने ब्रिटिश शासन के अधीन कार्य किया यद्यपि इनकी मुद्रा, डाक टिकट, पुलिस, सेना, रियासती चिन्ह आदि अलग-अलग थे। रियासतों व ठिकानों के समूह का राजपूताना कहा जाता था। 18 वीं शताब्दी के अंत में इन देशी रियासतों ने मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी के सामने समर्पण कर दिया था। राजस्थान में नसीराबाद में सैनिकों ने 1857 में सबसे पहले विद्रोह की घोषणा की परन्तु यहां के राजा व सामंत आन्दोलन का नेतृत्व करने को तैयार नहीं थे। 

अखिल भारतीय स्तर पर स्वतंत्रता आन्दोलन प्रारम्भ हुआ तो राजस्थान भी इस आन्दोलन से अछूता नहीं रह सका और यहां के लोगों ने भी देश को ब्रिटिश हुकुमत से मुक्त करने के आन्दोलन में पूरा सहयोग दिया। 20 वीं सदी के चोथे दशक तक राजस्थान के अधिकांश राज्यों में प्रजामंडल और लोक परिषद नामक राजनैतिक संस्थाओं की स्थापना हुई। अलग-अलग संस्थाओं ने राजनैतिक अधिकारों, उत्तरदायी शासन तथा सामंती अत्याचारों के विरूद्ध जोरदार ढंग से आन्दोलन चलाया। 

राज्य में अनेक किसान आन्दोलन हुए। बिजोलिया का किसान आन्दोलन सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा। किसानों ने अभूतपूर्व धैर्य, साहस और बलिदान का परिचय दिया। किसानों की तरह डूंगरपुर व बांसवाड़ा के भील भी जागीरदारों के आर्थिक शोषण ओर अत्याचारों के शिकार थे। समाज सुधारकों ने समाज में व्याप्त सामाजिक बुराईयों को दूर करने का प्रयास किया। जन जाग्रति से शासक सहम उठे। 

आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने राजपूताने की रियासतों में राष्ट्रीयता व सामाजिक चेतना के बीज बोये। राजस्थान में प्रारम्भ में स्वतंत्रता का शंख फूंकने वालों में अर्जुनलाल सेठी, गोविन्द गुरू, ठाकुर केसरी सिंह बारेठ, विजय सिंह पथिक, राव गोपाल सिंह, सेठ दामोदर दास राठी, ठाकुर जोरावर सिंह आदि थे। अर्जुन लाल सेठी ने अपने विद्यालय द्वारा युवकों को देशभक्ति का मंत्र दिया, स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा दीक्ष्ति गोविन्द गुरू ने आदिवासी क्षेत्र में जन चेतना का शंख फूंकने का कार्य किया। 

7 दिसम्बर 1908 को मानगढ़ की पहाड़ी पर अंग्रेजों ने निहत्थे 1500 के लगभग आदिवासियों का कत्लेआम किया। ठाकुर जोरावर सिंह बारेठ ने हार्डिंग बंम कांड में अदम्य साहस दिखाया, सेठ दामोदर दास राठी एवं गोपाल सिंह खर्वा, राव विजय सिंह पथिक के साथ क्रांति का शुभारम्भ किया। रियासतों में सबसे पहले जन आन्दोलन बिजोलिया में हुआ। विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में किसानों ने जागीरदारी शोषण व अत्यचारों के विरूद्ध संघर्ष किया। लागबाग देने व बेगार देने से इंकार कर दिया। मेवाड में भीलों के आन्दोलन का नेतृत्व मोतीलाल तेजावत ने किया। अलवर रियासत में हुए नीमूचाना हत्याकांड की तुलना जलियावाला बाग से की जा सकती है। इस हत्याकांड में 95 व्यक्ति मारे गये, 250 घायल हुए ओर 353 मकान जला दिये गये। 

जयपुर रियासत में प्रजा मंडल ने आन्दोलन छेड़ा। जोधपुर रियासत में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मारवाड़ किसान संघ की स्थापना हुई। उन्होंने 1935 में पीपुल ऐसोसिएशन का गठन किया और प्रजा मंडल में सम्मिलित हो गये। जयनारायण व्यास ने मारवाड़ लोक परिषद नामक राजनैतिक संस्था का गठन किया।

मारवाड़ किसान सभा ने श्री नृसिंह कछवाहा, मथुरादास माथुर, द्वारकादास पुरोहित, छगनराज चोपासनी वाला, बंशीधर पुरोहित के नेतृत्व पर डाबडा में बेगार प्रथा के विरूद्ध संघर्ष किया। बीकानेर में 1938 तक सभा करने, झंडा फहराने, नारे लगाने आदि पर रोक रही। मेवाड़ में माणिक्यलाल वर्मा के नेतृत्व में प्रजा मंडल की स्थापना हुई। 1945 में अखिल भारतीय देशी राज लोक परिषद का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ। जैसलमेर में सागरमल गोपा के नेतृत्व में आन्दोलन हुआ। जेल में अमानुषिक यंत्रणा के कारण 4 अप्रेल 1946 को उनकी मृत्यु हुई।

नीमूचाना (अलवर) हत्याकांड के पश्चात प्रजा मंडल की स्थापना हुई। भरतपुर में गौरीशंकर औझा के नेतृत्व में हुए सम्मेलन में विश्व कवि रविन्द्र नाथ ठाकुर, मदनमोहन मालवीय, सेठ जमनालाल को आमंत्रित किया गया व भरतपुर प्रजा मंडल की स्थापना हुई। धौलपुर में रामचरण गौड़, करौली में कुंवर मदन सिंह, कोटा में पं. नेनू राम ने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु संगठन बनाया। स्वतंत्रता सेनानियों के सुधारवादी आन्दोलनों से लोगों में चेतना व जाग्रति आई। 

रियासती आन्दोलनों में जयनारायण व्यास, माणिक्यलाल वर्मा, मोतीलाल तेजावत, हरिभाऊ उपाध्याय, रामनारायण चौधरी, दुर्गाप्रसाद चौधरी, प्रोफेसर गोकुलनाथ, स्वामीनारायण ब्यावर, शोकत उस्मानी (बीकानेर), ठाकुर देशराज (भरतपुर), भोगीलाल पंड्या (डूंगरपुर), गोकुल भाई भट्ट सिरोही, हीरालाल शास्त्री (जयपुर) ने प्रजामंडल द्वारा अधिक प्रयत्न किया। राजाशाही व जागीरदारी जुल्मों के खिलाफ जन-जन में चेतना का संचार किया।

प्रथम चरण में तारीख 18 मार्च 1948 को राजपूतानें की पूर्वी रियासतों अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली का मत्स्य संघ बना। धौलपुर शासक को इस संघ का प्रमुख बनाया गया। श्री शोभाराम प्रधान बनाये गये। दूसरे चरण में 25 मार्च 1948 को बांसवाड़ा, डूगरपुर, झालावाड़, बूंदी, कोटा, टोंक व 5 अन्य छोटी रियासतों को मिलाकर राजस्थान संघ बनाया गया। 18 अप्रेल 1948 को उदयपुर का विलीनीकरण कर संयुक्त राजस्थान का गठन हुआ। उदयपुर को राजधानी व माणिक्यलाल वर्मा को प्रधानमंत्री बनाया गया। कोटा के महाराणा को उपराजप्रमुख बनाया गया। 30 मार्च 1949 को वृहद राजस्थान बना। जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर का विलय संयुक्त राजस्थान में हो गया। हीरालाल शास्त्री प्रधानमंत्री बने, उदयपुर महाराणा को महाराज प्रमुख, जयपुर के महाराजा राजप्रमुख, कोटा व जोधपुर के महाराजा उपराजप्रमुख बने तथा नये संध की राजधानी जयपुर रखी गई। 11 मई 1949 को मत्स्य का, 7 फरवरी 1950 को सिरोही व 1 नवम्बर 1956 को अजमेर का विलय हुआ। सभी रियासतों की मुद्रा, सेना, पुलिस, डाक टिकट आदि समाप्त किये गये। पुर्नगठित राजस्थान 1 नवम्बर 1956, के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया बने।

राजस्थान गठन के समय जयपुर रियासत का राजस्व सर्वाधिक 28850000 था और न्यूनतम शाहपुरा का 418000 था। जयपुर की जनसंख्या वर्ष 1941 के अनुसार 3040876 थी। बीकानेर क्षेत्रफल में सर्वाधिक 230317 वर्ग मीटर था। नरेशों के प्रिवीपीयर्स स्वीकृत किये गये जिसमें जयपुर नरेश का सर्वाधिक 18 लाख प्रतिवर्ष था। 

यद्यपि राजस्थान का एकीकरण 30 मार्च 1949 को हो गया था तथापि यहां राज्य विधानसभा का निर्माण देश में संविधान लागू होने के पश्चात् मार्च 1952 में ही संभव हुआ। प्रथम राजस्थान विधानसभा का गठन 29 फरवरी 1952 में हुआ लेकिन 1 नवम्बर 1956 को राज्यों के पुनर्गठन के समय राज्य के राजस्थान में विलीन हो जाने से तत्कालिन अजमेर विधानसभा के सदस्यों को भी राजस्थान विधानसभा में शामिल कर लिया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व राजस्थान में सामन्ती प्रथा प्रचलित थी तथा राजस्थान कई रियासतों में बंटा हुआ था। इन रियासतों के शासकों तथा सामन्तों ने गांवों के सर्वांगीण विकास के लिए नहीं बल्कि अपनी सुख-सुविधा और सत्ता की रक्षा के लिए शोषण और अत्याचार का सहारा लिया।

गांवों में प्रशासन और उनके विकास में वहीं के लोगों को भागीदार बनाने के उद्देश्य से लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण अथवा पंचायती राज योजना को भारत में सर्वप्रथम लागू करने का श्रेय राजस्थान को है। 2 अक्टूबर 1959 को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय पं. जवाहर लाल नेहरू ने नागौर में राजस्थान में पंचायती राज प्रणाली का शुभारम्भ किया था। राज्य का पिछड़ापन स्वतंत्रता प्राप्ति के समय बहुत प्रखर था। आज भी आर्थिक विकास की दृष्टि से राजस्थान एक पिछड़ा हुआ राज्य कहलाता है। 

राजा रजवाड़ों की सामन्ती व्यवस्था तथा विभिन्न रियासतों के राजा महाराजाओं को आर्थिक विकास के प्रति उदासीनता ने औद्योगिकरण के लिए आवश्यक आधारभूत सुविधाओं का विकास नाममात्र का किया, दूसरी ओर भौगोलिक परिस्थितियों ने भी विकास के अवसर अवरूद्ध कर रखे थे।

राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 62 प्रतिशत भाग रेगिस्तानी है। राज्य एक वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण वहां वर्षा की उपलब्धता न्यून है और जो कुछ उपलब्धता है वह भी अत्यधिक, असमान, असामयिक तथा अनिष््िरचत है। जनसंख्या वृद्धि दर भी उंची रही है। 

जनसंख्या में पंचवर्षीय योजना 1950-51 में जब प्रारम्भ की गई तो राज्य आर्थिक पिछड़ेपन से ग्रस्त था। प्रथम पंचवर्षीय योजना का लगभग सारा समय आर्थिक विकास पर ध्यान देने की जगह राजनैतिक एकीकरण की प्रक्रिया में उलझा रहा। राज्य देश के अन्य राज्यों की तुलना में आर्थिक विकास प्रक्रिया की शुरूआती दौड़ में ही पिछड़ गया। राजस्थान गठन के पश्चात सात प्रथम पंचवर्षीय योजनाओं में (1951 से 1990 तक) कुल 7819 करोड़ रूपये का निवेश हुआ जबकि 2012 से 2017 की पंचवर्षीय योजना का आकार 1 लाख 94 हजार करोड़ रूपये का निर्धारित हुआ हैै।

आज के राजस्थान में आर्थिक, सामाजिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक, शैक्षणिक, तकनीकी आदि सभी क्षेत्रों में तरक्की की नई तस्वीर उभरी है। व्यक्ति की जीवन्तता के लिए महती आवश्यकता अनाज की बात हो या गहरे अंधेरे में लोगों से राहत देते उजाले की विद्युत परियोजनाओं की, राज्य के पश्चिमी अंचल की अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार पशुधन की बात हो या आर्थिक और व्यावसायिक उन्नति के मार्ग खोलते उद्योग धन्धों की, तरक्की के मार्ग में ज्ञान का आलोक देती शिक्षा की बात हो या आम आदमी तक पहुंचाई जाने वाली स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं हो, हर क्षेत्र में राज्य ने समग्र उन्नति की है। इस विकास यात्रा को बिना किसी पड़ाव के जारी रखना है।

विशाल राजस्थान की स्थापना के अवसर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कहा था कि ’’राजपूताने में आज एक नया साल प्रारम्भ हुआ है। हम लोगों को राजस्थान का महत्व व पूरी रीत को समझ लेना चाहिए। अपने हृदय को साफ कर ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि राजस्थान के लिए अच्छी राजधानी बनाये। ईश्वर राजस्थान को उठाने व राजपूताने के लोगों की सेवा के लिए हमें शक्ति व बुद्धि दें।’’ (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)