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विश्व की महान नेता श्रीमती इन्दिरा गांधी के अनुसार ‘‘प्रगति व विकास की सफलता कोई दैवीय आशीर्वाद या वरदान नहीं है जो सहज ही मिल जाता है। इसके लिए कठोर परिश्रम, पुरूषार्थ, अटूट विश्वास, धैर्य, साहस व निर्मिकता की आवश्यकता होती है’’। श्रीमती गॉंधी ने इसी सोच के अनुसार प्रधानमंत्रीकाल में क्रान्तिकारी कदम उठाये तथा इतिहास सृजित किया। प्रसिद्ध लेखक एवं विचारक कन्हैयालाल मिश्र ने लिखा है ‘‘गांधीजी ने भारत की एक प्रतिमा संसार के मंच पर प्रतिष्ठित की, नेहरू ने शांति दूत की प्रतिमा स्थापित की, लाल बहादुर शास्त्री ने राजनीतिक प्रतिमा स्थापित की, श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सशक्त एवं समर्थ भारत की प्रतिमा स्थापित की। शांति और साहस इन्दिरा जी की विशेषता थी।’’
श्रीमती गॉंधी के अनुसार राजनीति ऐसी हो जिससे गरीब, शोषित व पीड़ितों को राहत की सांस व प्रेरणा मिले व उन्हें गरीबी के चंगुल से निकालकर स्वतंत्रता, लोकतंत्र व परिवर्तन का अहसास कराये। इंदिरा गांधी ने देश व समाज सुधार के हित में सराहनीय व कठोर कदम उठाये, उन आर्थिक नीतियों को सबल बनाया जो खोखली हो रही थी। उन्होंने अलगाववाद के विरूद्ध कठोर कदम उठाया। नौकरशही व अन्य जिम्मेदार पदों पर आसीन लोगों को अनुशासन का पाठ पढ़ाया। देश में हरित क्रान्ति उनके शासन में हुई। अणु शक्ति का विकास हुआ, राजाओं के प्रिवीपर्स व विशेष सुविधाऐं समाप्त हुई, बैंकों व बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण हुआ, बीस सूत्री कार्यक्रम और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम प्रारम्भ हुए।
अपनी मास्को यात्रा के समय उन्होंने कहा था ‘‘आर्थिक स्वतंत्रता के बगैर राजनैतिक स्वतंत्रता अधूरी हैै, गरीब व सम्पन्न देशों के बीच खाई बढ़ती जा रही है।’’ वह अफसरशाही व जातिवाद के विरूद्ध थी और कहती थी ‘‘यह अफसरशाही मनोवृति विकास में रूकावट पैदा करने के लिए जिम्मेदार है। जातिवाद का समाज में ही नहीं सरकार में भी बोलबाला है। धर्मनिरपेक्ष शब्द से यह अभिप्राय नहीं है कि हम धर्म विरोधी है। इसका अर्थ है कि शासन की दृष्टि में देश के सभी धर्मो के प्रति समान आदर है। प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी धर्म का क्यों न हो, समान अधिकार प्राप्त हो, साथ ही स्वयं सरकार का कोई धर्म नहीं हो।’’
इंदिरा जी ने भारतीय जनमानस को दूर दृष्टि, कठोर परिश्रम, दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर अनुशासन का पाठ पढ़ाया। राष्ट्र के नाम एक प्रसारण में उन्होंने कहा था ‘‘कृपा करके जादुई हल और नाटकीय परिणामों की आशा नहीं करें। केवल एक ही जादू है जो गरीबी को दूर कर सकता है और वह है स्पष्ट दूर दृष्टि के साथ कड़ा परिश्रम, दृढ़ इच्छा शक्ति और कठोर अनुशासन।
स्वर्गीया अमृत प्रीतम ने इंदिरा गांधी के लिए लिखा था ‘‘उनके लिए कभी भी ‘‘मैं’’ का प्रश्न नहीं था वरन मेरे लोगों का प्रश्न था।’’ उनके शब्द हमेशा मुझे याद आते है कि ‘‘चिंता मत करों, केवल अपना कर्तव्य करों। आन्तरिक जाग्रति और दीप्ति का ऐसा मिलन जो मैंने इन्दिरा जी में देखा है, बहुत कम दिखाई देता है।’’ स्वयं इन्दिरा गांधी ने एक साक्षात्कार में कहा था ‘‘मैं अपने जीवन में खतरों से खेलती आई हूं। मुझे नश्वर शरीर की तनिक भी परवाह नहीं है। मैं बिस्तर पर घुट-घुटकर अपने प्राण त्यागना नहीं चाहती। मैं देश की आन-बान और शान के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देना पसंद करूंगी।’’ इसीलिए लोग उन्हें लौह महिला कहते थे। वह निर्णय लेने में साहसी और अनुशासन प्रिय थी।
इन्दिरा गांधी में राजनीतिक प्रगतिशीलता, क्रियाशीलता और प्राचीन भारतीय आध्यात्म का सामंजस्य था। उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा पर बल देते हुए कहा था कि ‘‘सांप्रदायिकता व जातिवाद की विचारधारा बीती हुई दुनिया की विचारधाराऐं हैं जिसकी आज की दुनिया में कोई जगह नहीं हैं। ब्रिटेन के प्रमुख अखबार ‘‘आब्जर्वर’’ ने लिखा था कि श्रीमती गांधी एक करिश्मा है और अपने इस करिश्मे के बल पर ही वह अपने देश व देशवासियों के दिल पर शासन करती है। अपने देश के अपार जनसमूह को ऊंचे व विशाल मंच से जब वह संबोधित करती है तो देश के किसानों और मजदूरों के लिए उनके मुंह से स्नेह व सहानुभूति के शब्द निकलते है।’’
उन्होंने बढ़ते आतंकवाद, विघटनकारी, अलगाववादी शक्तियों को कड़ाई से समाप्त करने का प्रयास किया। अन्तर्राष्ट्रीय मामलों को हल करने में बड़ी शक्तियों की परवाह नहीं की, पाकिस्तान को मुहंतोड़ जबाब दिया और विशाल पाकिस्तानी सेना को ढाका में हथियार डालने को मजबूर होना पड़ा। उन्होंने अलगाव के विरूद्ध कठोर कदम उठाये। उनके द्वारा प्रारम्भ किये गये पांच सूत्री कार्यक्रमों की उस समय विरोधियों ने खिल्ली उड़ाई, रूढीवादियों ने घौर विरोध किया परन्तु आज सभी महसूस करते है कि जनसंख्या वृद्धि को रोकने, वृक्षारोपण, गंदी बस्ती उन्मूलन, दास प्रथा उन्मूलन व रक्तदान का विशेष महत्व है। इन नीतियों पर वरिष्ठ नेता आपस में अब वार्तालाप करते है परन्तु किसी में भी उनको सुचारू रूप से लागू करने की हिम्मत नहीं है।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी.आर.कृष्णन अय्यर ने एक समारोह में कहा था ‘‘जब तक देश में आर्थिक असमानता रहेगी तब तक सामाजिक न्याय की बात करना फिजूल है।’’ उस समय श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा था कि हर एक कहता है कि समाज को बदलना चाहिए लेकिन कितने लोग ऐसे है जो कहते है कि मैं सबसे पहले स्वयं बदलूंगा। छुआछूत, मानसिक व भौतिक गंदगी, सोचने व काम करने के गलत तरीकों के खिलाफ संघर्ष में हम सबको पूरी तरह हाथ बंटाना होगा। उन्होंने देश के दलितों, पीड़ितों, उपेक्षितों, किसानों, मजदूरों तथा युवा पीढ़ी में राष्ट्रीय स्वाभिमान, आत्मबल व संकल्प की भावना जाग्रत की। उन्होंने इमरजेसी लागू की परन्तु स्वयं ही बगैर किसी आन्दोलन या विरोध, स्वयं ने समाप्त कर चुनाव कराये व पराजय स्वीकार की।
सांप्रदायिक संगठन चोरी छीपे काम करते है। हिंसा व तोड़फोड में इनका विश्वास है। यह लोकतंत्र व सर्वहारा वर्ग का विकास, स्वतंत्रता व आर्थिक विकास अपनी आवश्यकताओं के अनुसार करते है। इंन्दिरा गांधी अपने दृढ़ संकल्प के बल पर पाकिस्तान को परास्त कर उसके दो भाग कर देने में सफल हुई और अलगाववाद को शक्ति से कुचल देने वाली विशेष सख्शियत साबित हुई।
सदैव से इन्दिरा विरोधी पश्चिमी प्रेसों ने जनमानस को बदलने का प्रयास किया। जनता ने श्रीमती इन्दिरा गांधी को 1977 में सत्ता से हटा दिया परन्तु कुछ ही दिनों में संघषों की अनुभवी इन्दिरा गांधी ने चुनौती स्वीकार कर संघर्ष प्रारम्भ कर दिया। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि देश की जनता उनसे प्रेम करती है व उनमे विश्वास करती है। जनता को चिरप्रतिक्षित आर्थिक व सामाजिक सुधारों की आवश्यकता थी इसलिए जनता ने दुनिया के इतिहास में प्रथम बार कुछ ही वर्षो में उन्हें भारी बहुमत से सत्तासीन कर दिया क्योंकि जनता का उनमें भरोसा था कि कोई उनका हमदर्द है। अपनी सहज मुस्कराहट और आंखों की चमक से वह बातचीत से लोगों का मन जीत लेती थी। यह उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का प्रतीक था। अन्दर की पीड़ा उनके चेहरे पर नहीं आती थी। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे। सौभाग्य व दुर्भाग्य की घड़िया देखी परन्तु हर संकट का एक नई स्फूर्ति और संकल्प के साथ सामना किया।
मेरा यह सौभाग्य रहा है कि देश के प्रथम पांच प्रधानमंत्रियों से जनसमस्याओं के संबंध में विचार विमर्श करने का मौका मिला। मैंने पाया कि आम जनता की तकलीफों के बारे में जानकारी प्राप्त कर उनको समझने व हल करने तथा गंभीर मामलों पर तुरत फुरत निर्णय लेने की क्षमता श्रीमती इन्दिरा गांधी में अन्यों की अपेक्षा अधिक थी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)
लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)