लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान
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प्रजातन्त्र की सबसे बड़ी विशेषता होती है चुनाव की प्रामाणिकता। इस तन्त्र में जनता को यह अधिकार होता है कि वह अपनी इच्छानुसार चरित्रवान व्यक्ति को अपना बहुमूल्य वोट देकर चुन सके। चुनाव अर्थात् चयन करना। शुद्धि का अर्थ है पवित्रीकरण। चुनाव शुद्धि का अर्थ हुआ चुनाव को प्रामाणिक रूप से कराना। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्रात्मक देश है। विश्व की आबादी के अनुसार यदि देखा जाय तो हर पांचवा व्यक्ति भारतीय है। विश्व जनसंख्या का 30 प्रतिशत भारत की जनसंख्या है। यहां प्रेम, समन्वय, भ्रातृत्व और अच्छे मूल्यों को सम्मान दिया गया है। वार्ड पंच, सर पंच, विधानसभा के सदस्य और लोकसभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त जितने भी चुनाव होते है सबमे निष्पक्षता होती है। प्रतिनिधियों के चुनाव में जनता स्वतन्त्र होती है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को चुनकर भेजना चाहिए जो प्रामाणिक और निष्पक्ष हो।
हर दल को चुनाव शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए। टिकट देते समय हर पार्टी को यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐेसे व्यक्ति को टिकट दिया जाये जो सच्चरित्र और ईमानदार हो। यदि चुना जाने वाला प्रतिनिधि ही भ्रष्ट होगा तो जनता का भला व कैसे कर सकता है। पैसे के बल पर यदि चुनाव होगा तो वह यही चाहेगा कि जितना पैसा खर्च किया है उसका कई गुना हम कमा ले। प्रजातन्त्र प्रजा का, प्रजा के लिए और प्रजा के द्वारा होता है। इसलिए यह एक ऐसा तन्त्र है जिसका उद्देश्य प्रजा की भलाई है। पैसे के बल पर, जाति और सम्प्रदाय के बल पर यदि टिकट का बटवारा होता है तो यह प्रजातन्त्र के लिए ठीक नहीं है। उम्मीदवार जितने के लिए कर, बल, छल का प्रयोग करते है। यह तरीका ठीक नहीं है। जनता की जो समस्या है वह है रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा। चुने हुए प्रतिनिधि अपने उत्तरदायित्व का निर्वह्न करते हुए अपने क्षेत्र की समस्याओं पर भेदभाव रहित होकर कार्य करे तो क्षेत्र का विकास होता है। चुनाव के समय शराब, पैसा, कपड़ा, प्रलोभन और झूठी आशा देकर जनता को भ्रमित किया जाता है। भोली-भाली जनता ऐसे लुभावने वादों में आकर यदि गलत प्रत्याशी का चयन कर लेती है तो पांच साला तक जनता को बहुत कष्ट भोगना पड़ता है।
चुनाव की यह बहुत बड़ी बुराई है कि प्रत्याशी गलत तरीकों का प्रयोग करके जीतने का प्रयास करते है। जीतने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि जनता के बीच में रहकर जनता की सेवा करना और जनता की समस्या को अपनी समस्या मानकर उसका समाधान करना। यदि प्रत्याशी पांच वर्ष तक जनता के बीच में रहते है और उनकी समस्याओं का समाधान करते है तो पुनः जीतने में उन्हें कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। भारत में बहुदलीय प्रणाली है। इस कारण राजनीतिक व्यवस्था कठोर न होकर पर्याप्त लचीली है। इस व्यवस्था में प्रत्येक वर्ग को प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है और प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवाज बुलन्द करने में तथा शासन तक पहुंचने में सक्षम होता है। इससे भारत में प्रजातन्त्र की जड़े मजबुत हुई है। अभी तक होने वाले चुनावों में भारत में करोड़ों नागरिकों में चुनाव में भाग लिया है, जो यह बताता है कि भारतीय जनता में राजनीतिक चेतना भरपूर है।
प्रजातन्त्र की सफलता के लिए मतदाता का शिक्षित होना परम आवश्यक है। भारत सरकार शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक कार्यक्रम चला रही है, जिससे शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है। नारी शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है। यह प्रजातन्त्र के भविष्य को सुनिश्चित करने की दिशा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। चुनाव शुद्धि के लिए हमारे देश में स्वतन्त्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था है। चुनाव आयोग पूरे देश में चुनाव की निगरानी करता है और यह सुनिश्चित कराता है कि चुनाव निष्पक्ष और बिना किसी भेदभाव के सम्पन्न हो। चुनाव आयोग की कुछ गाईडलाईन होती है जिसका अनुपालन प्रत्येक दल को करना पड़ता है। यह गाईडलाईन इसलिए जरूरी है कि चुनाव में जो प्रत्याशी खड़े हो उनका चरित्र निर्मल हो। प्रत्येक प्रत्याशी को अपनी सम्पत्ति का विवरण और उन पर किसी प्रकार का यदि मुकदमा इत्यादि चल रहा हो तो उसका भी विवरण चुनाव आयोग को उपलब्ध करावें।
चुनावों में हिंसात्मक घटनाएं, अवैध मतदान, अयोग्य और असामाजिक तत्वों द्वारा समर्थित उम्मीदवार के जीत के दृश्य प्रायः देखने को मिल जाते है। आजकल चुनावों में जातिवाद की समस्या अत्यन्त गंभीर रूप धारण कर चुकी है। चुनावों में धन एवं आतंक का प्रभुत्व हो गया है। अपहरण, हत्या तथा आतंंकित करना चुनाव जीतने के साधन बन चुके है। ये समस्त स्थितियां किसी भी जनतन्त्र के जीवन को संकटापन्न बनाने के लिए पर्याप्त है।
प्रत्येक राजनेता व्यक्तिगत रूप से तथा प्रत्येक राजनीतिक दल सामूहिक रूप से असामाजिक तत्वों को पालता है। हमारे मतदाता अधिकांशतः अशिक्षित है। उनको इस बात का पता ही नहीं है कि वे अपना अमूल्य वोट किसको दे? वे दबाववश अथवा अज्ञानवश अथवा लालच में आकर ऐसे उम्मीदवार का चयन कर बैठते है जो जीतने के बाद भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार में निमग्न रहता है। ऐसे प्रत्याशी से क्षेत्र के विकास की क्या आशा की जा सकती है। जो प्रत्याशी गलत तरीके से जीतता है वह पांच साल तक गलत तरीका ही अपनाता है। जनतन्त्र वस्तुतः एक अनुशासित जीवन पद्धति है। आत्मानुशासन के अभाव में जनतन्त्र की कल्पना नहीं की जा सकती। अतः चुनाव शुद्धि के बिना जनतन्त्र की कल्पना अधूरी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)