कांग्रेस के अन्दरूनी मतभेद व भाजपा : डॉ. सत्यानारायण सिंह

लेखक : डॉ. सत्यानारायण सिंह 

(लेखक पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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भाजपा के प्रान्तीय नेता कांग्रेस के अन्दरूनी मामलों को लेकर अशोक गहलोत तथा उनकी सरकार के खिलाफ मुखर है। आरोप है, कांग्रेस ने गत चुनावों में मतदाताओं को झूंठे वायदो से भटकाया। शासन प्रशासन असफल है, जनता से किये वायदे पूरे नहीं हुए। कांग्रेस कामयाब नहीं हुई इसलिए कांग्रेस में कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व और सरकार के प्रति गुस्सा है, एक गुट के नेताओं को राजनीति का शिकार बनाया जा रहा है इसलिए अचानक यह रियक्शन है। अपने ही सहयोगी को नाकारा, नालायक जैसे शब्द बोले गये, कांग्रेस सिमटती जा रही है। कांग्रेस के मजबूत लोग जहान से उतर रहे है। 

भाजपा नेताओं का पब्लिक में यह कहना है कि सचिन पायलेट जी की अपनी एक पार्टी है, उनका अपना एक विचार है। भाजपा एक विचारों का समुद्र है जिसमें अलग-अलग विचारों के लोग भी आते है जो उसी के होकर रह जाते है। राज्य में आज महामारी फैल रही है, अस्पतालों में डाक्टर नहीं है, दवा नहीं खरीदी जा रही, भ्रष्टाचार चल रहा है, कानून व्यवस्था व सड़के खराब है। मंहगाई, बेरोजगारी है, तेल पर वेट कम नहीं किया, किसानों का ऋण माफ नहीं किया, बेरोजगारी भत्ता नहीं दिया जा रहा है। इस राजनैतिक आपदा में भ्रष्टाचार का मुद्दा प्रमुख है। यसमैन की संस्कृति चिंताजनक है, खामियाजा आम नागरिक भुगत रहा है। 

आलाकमान की ओर से भेजे गये पर्यवेक्षक सीएमआर में बैठे रहे, विधायकों का इंतजार करते रहे। दूसरी ओर विधायक शांतिलाल धारीवाल के घर बगावती कागज पर हस्ताक्षर करते रहे, विधायको को दाव पर लगा दिया। विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा स्वीकार कर लेना चाहिए था। आलाकमान की बेइज्जती हुई, पर्यवेक्षक खाली हाथ दिल्ली लोट गये। भाजपा कांग्रेस आलाकमान को पानी पी पीकर कोसती रही है और निम्नतम स्तर पर पंहुच कर गांधी परिवार को कोसती रही है। वही भाजपा आलाकमान की ओर से कसीने देने लग गई। 

अचानक बिना गहलोत की राय जाने, विधायको की राय जानने के लिए एक षडयंत्रकारी प्रयास किया गया। अशोक गहलोत की आलाकमान के प्रति 45 वर्ष की वफादारी को दाव पर लगा दिया। सचिन पायलट का बहाना बनाकर सत्ता का खेल खेलने को भाजपा लालायित है। यह हालत कर दी गई कि कुछ एमएलए को कहना पड़ा कि गद्दार व बिकाऊ लोगों को स्वीकार नहीं करेंगे। 

भाजपा उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने खुलकर सचिन पायलेट की तारीफ की और कहा ‘‘यह बात बिल्कुल सही है हम जब सत्ता में थे, सड़क पर संघर्ष करने और जनभावनाओं के आधार पर हमको कटघरे में खड़ा करने का काम सचिन पायलट ने किया। यह तो उस तरह की बात हो गई कि किसी किसान ने अपनी फसल पैदा की, पूरे साल मेहनत की, फसल लहलहा उठी, फसल को काटने की बारी आई तो कोई ओर आया और चुपके से काट कर ले गया। मैं उनकी तारीफ करूंगा कि पिछले डेढ साल से उन्होंने कोई गलत बयान नहीं दिया। जिन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के लिए कहा था वो आज कांग्रेस तोड़ो अभियान में जुटे है। पायलट ने तो केवल विद्रोह कर अशोक गहलोत को हटाकर भाजपा के सहयोग से सरकार बनाने का ही प्रयत्न किया था। गहलोत के नेतृत्व में तो कांग्रेस तौड़ने का काम बखूबी हो रहा है। 

पायलट बीजेपी में आते है तो क्या बीजेपी पायलट का स्वागत करेगी, तो कहा गया कि यह सब संभावनाओं का सवाल है। पहली बार आलाकमान के लोग बेइज्जत होकर निकले हैं, इस सरकार का तो जन्म ही अन्दरूनी विरोध से हुआ है। अशोक गहलोत की पूंजी केवल आलाकमान की वफादारी थी, वह समाप्त हो गई। भाजपा नेताओं के इस प्रकार के बयानों ने पायलट का बड़ा अहित किया है। एक युवा उभरते नेता से 2020 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार गिराने की कोशिश की। इस राजनीतिक भूल और अलोकतांत्रिक निर्णय ने उनके राजनीतिक उज्जवल भविष्य को दाग लगा दिया। गलतियां बताई नहीं जायेगी, सुधारी नहीं जायेगी तो सही काम कैसे होगा।

सिद्धांतों से समझौता करके सत्ता को समर्थन देने की वृत्ति ने चाटुकारिता को एक कला बना दिया है, यही कारण है आलाकमान को यह दिन देखना पड़ा। ओब्जरकर भी ऐसे नहीं हो जो निजी स्वार्थ अथवा हुक्म बजाने के अलावा कुछ नहीं जानते हो। चमचे व स्वामी की भाषा एक व्यवहार संहिता बन गई है। परिवर्तन कभी झुकता नहीं, अपने मूल्यों को छोड़े बिना उपरी ढांचे को लगातार बदलना पड़ता है। आज आवश्यकता है कांग्रेस एक नये समावेशी राजनीति दल के संदेश के साथ आगे आये और जनमानस में अपनी जगह फिर से स्थापित करे। नये नेतृत्व का चुनाव कार्यकर्ता व निर्वाचित प्रतिनिधि करें, पूर्वाग्रह या विवाद नहीं हो, रिमोट कंट्रोल से निर्णय नहीं थोपे जाये। देश व लोकतंत्र को बचाने के लिए गांधी परिवार को पूर्णतया जनतांत्रिक तरीके से चलकर पार्टी को मजबूत करना होगा अन्यथा भाजपा उसे समाप्त करने में हर प्रकार के हथियार काम में ले रही है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने निजी विचार हैं)