राष्ट्रभाषा हिन्दी : डा. सत्यनारायण सिंह

14 सितम्बर हिन्दी दिवस

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)

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आजादी से पूर्व इस प्रदेश को राजपूताना कहा जाता था, परन्तु सभी रियासतों के एकीकरण के पश्चात राज्य का नाम राजस्थान रखा गया एवं हिन्दी को राजकाज की भाषा रखने का निर्णय लिया गया। राजस्थान के प्रमुख निर्माता जयनारायण व्यास, हीरालाल शास्त्री, माणिक्यलाल वर्मा आदि ने इस प्रदेश की भाषा के संबंध में महात्मा गांधी से राय मांगी तो महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘‘राजस्थान की भाषा हिन्दी होनी चाहिये। राजस्थानी भाषा थोपना बड़ी निकम्मी बात है, कभी कच्छ वाले कहेंगे कि उनकी भाषा कच्छ होनी चाहिये। महात्मा गांधी के परामर्श पर ही राजस्थान की राजभाषा राजस्थानी रखने की मांग को सभी नेताओं ने समाप्त कर दिया। 

वर्तमान में भाषायी दृष्टि से राजस्थान ‘‘क‘‘ वर्ग के हिन्दी प्रदेशों में है। देश में हिन्दी भाषी प्रदेश अब केवल राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार कहे जा सकते है। 

राजस्थान निर्माण से पूर्व प्रान्त की पश्चिमी रियासतें जोधपुर, बीकानेर में राजकाज की भाषा हिन्दी रही। जोधपुर सरकार का गजट वर्ष 1906, बीकानेर रियासत का गजट 1919, जयपुर रियासत का गजट 1878 हिन्दी और अंग्रेजी में छपने लगा था। राजस्थानी कभी शिक्षा व शासन का माध्यम नहीं बनाई गई। विभिन्न रियासतों में हिन्दी ने ही उर्दू का स्थान लिया है और पंजाब, सिंध से आये लोगों व अल्पसंख्यकों की भाषा भी हिन्दी ही रही है।

राजस्थान में 1993 में लोक सेवा आयोग द्वारा प्रशासनिक सेवाओं में राजस्थानी भाषा का 300 अंकों का अनिवार्य प्रश्न पत्र निर्धारित किया गया। जनभावना को देखते हुए आयोग ने अपना निर्णय वापस लिया ओर राजस्थानी संस्कृति संबंधी 150 अंकों का एक ऐच्छिक विषय रखा। राजस्थानी को राजभाषा बनाये जाने के संबंध में 1996-1997 में सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका को न्यायालय ने खारिज कर दिया। भारत सरकार द्वारा गठित राज्य पुनर्गठन आयोग में भी 1991 में राज्य को हिन्दी भाषी प्रदेश के रूप में घोषित किया। पूर्व राज्यों ने एक ही दिन मे, एक ही निश्चित तारीख से हिन्दी में कार्य करने का निर्णय लेकर निर्णय की पालना सुनिश्चित की।

भारत सरकार द्वारा गठित राजभाषा आयोग ने हिन्दी को लिंक भाषा घोषित करने के पश्चात आठवीं अनुसूची में अन्य भाषाओं व बोलियों को नहीं जोड़ने की सिफारिश की। राजभाषा आयोग की मान्यता थी कि यदि हिन्दी परिवार की उप भाषाएं जोड़ी गई तो हिन्दी की स्थिति में कमी आयेगी, हिन्दी भाषा भाषियों की संख्या कम होगी और विश्व की शीर्ष भाषाओं में हिन्दी का स्थान नीचे चला जायेगा। 

दूसरी ओर जोधपुर के पूर्व महाराज गजसिंह ने जनगणना के समय मारवाड़ के लोगों के लिये फरमान जारी किया जिसमें कहा गया था कि हिन्दी के बजाय राजस्थानी को मातृ भाषा लिखाया जाये, जबकि विश्वविद्यालयों में पृथक विभाग होने के बावजूद राजस्थानी सहित अन्य भाषाओं के अध्ययनरत छात्रों की संख्या नगण्य रही है। 25 अगस्त, 2003 को राजस्थान विधानसभा ने एक संकल्प पारित किया जिसमें राज्य में बोली जाने वाली सभी बोलियों को राजस्थानी भाषा के रूप में सम्मिलित करने की बात कही गई। राजस्थानी भाषा डिंगल व मायड़ के नाम से जानी जाती है। बागड़ी, ढूंढाड़ी, मेवाड़ी, शेखावाटी, हाड़ोती, मालवी, मेवाती आदि पिंगल में शामिल थी। 

गत 50 वर्षो में विरोध के बावजूद देश विदेश में हिन्दी का प्रचार प्रसार बढ़ा है। हिन्दी गत 55 वर्षो में शासन व शिक्षा की भाषा के रूप में मान्य रही है। राज्य के युवक अन्य हिन्दी भाषी प्रान्तों में हिन्दी भाषा व लिपि के ज्ञान के कारण ही रोजगार प्राप्त कर रहे हे। हिन्दी भाषी राज्य होने के कारण ही लिपि के रूप में देवनागरी को ही अपनाया गया और देवनागरी लिपि केवल हिन्दी की लिपि नहीं रहकर संस्कृत, मराठी, नेपाली आदि अनेक भाषाओं की लिपी बनी। अब इस समपर्क लिपि को वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त होने से टंकण कम्प्यूटर आदि में इसका उपयोग बढ़ता जा रहा है। देश में ही नहीं विदेशों में भी प्रमुख विश्वविद्यालयों में हिन्दी का स्वतंत्र विभाग है। इलेक्ट्रोनिक चैनलों व दूरदर्शन केन्द्र से समाचार व अन्य शैक्षणिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों को हिन्दी में ही प्रसारित किया जा रहा है।

यदि हिन्दी को प्रोत्साहित नहीं किया गया तो पंजाब, गुजरात, की तरह राज्य से हिन्दी का निर्वासन हो जायेगा। राजस्थान की भाषा हिन्दी घोषित किये जाने के पश्चात ही बागड़ व ब्रज के क्षेत्र राजस्थान से जुड़े थे। बागड़ी भाषा गुजराती से अधिक मिलती है। कानूनी रूप से आठवीं सूची में जब लिंक भाषा के रूप में हिन्दी को ही जोड़ा गया है तो, अन्य बोलियों को जोड़ना विधि के अनुरूप होना प्रतीत नहीं होता। विधायिका एवं न्यायपालिका के कार्यो में भी बाधाएं उत्पन्न होगी। पूर्व रियासतों ने एक ही दिन में एक ही निश्चित तारीख से हिन्दी में कार्य करने का निर्णय लेकर निर्णय की पालना सुनिश्चित की थी।

हिन्दी भाषा के सामने अब भारी संकट उपस्थित है। उसका उपयोग घटेगा, अंग्रेजी व अन्य प्रान्तीय बोलियों का वर्चस्व व प्रयोग बढ़ेगा। सूचना और प्रोद्योगिकी के वर्तमान समय में एक ओर जहां युवा पीढ़ी को विश्व सम्पर्क, व्यापक हित, रोजगार एवं व्यापारिक हितों को ध्यान में रखकर अंग्रेजी, फ्रांसिसी, जापानी, चीनी आदि भाषाएं पढ़ाई जा रही है। शिक्षण के तोर-तरीकों को रोजगारन्मुख बनाया जाकर बदलाव की तैयारी की जा रही है। युवकों को तीसरी भाषा का अध्ययन करना होगा।

संसद में विचार करने से पूर्व, साहित्यकारों, शिक्षाविद्, वैज्ञानिकों व जनप्रतिनिधियों आदि की एक समिति सुप्रिम कोर्ट के वर्तमान अथवा पूर्व न्यायाधिपति की अध्यक्षता में गठित कर इस मामले पर सर्वेक्षण एवं विचार विमर्श हों और उसकी रिपोर्ट को ध्यान में रखकर विधानसभा, संसद में विचार हो, तभी उपयुक्त निर्णय संभव हो सकता है अन्यथा हिन्दी की स्थिति में गिरावट आयेगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)