लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)
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भारतीय अर्थव्यवस्था पर उपनिवेशवाद का अभूतपूर्व प्रभाव पड़ा था। ब्रिटिश राज की दो मुख्य आर्थिक नीतियां थी। पहला पूर्व औद्योगिक उत्पादकों को उजाड़कर उसकी जगह ब्रिटेन से पूंजीवादी उत्पादो का आयात, दूसरा आर्थिक अधिशेष का ब्रिटेन के लिए हस्तांतरण। दस्तकारी आधारित उत्पादन तबाह हो गया। खाद्यान्न व कच्चा माल का निर्यात, ब्रिटेन में निर्मित सामान का आयात। इससे बेरोजगारी व गरीबी बढ़ती गईं स्वतंत्रता के बाद भारत में बनी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र नेतृत्वकारी भूमिका संभाली। व्यापार व पूंजी पर कड़े नियंत्रण लगे। प्रिवीपर्स की समाप्ति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, बीमा का राष्ट्रीयकरण हुआ। औपनिवेशक दौर की बढ़ती भूख, बढ़ती बेरोजगारी व बढ़ती गरीबी के रूझान का उलट दिया। औद्योगिकरण के जरिये औद्योगिक दर 7-8 फीसदी पंहुची, खाद्यान्न उपलब्धता प्रति व्यक्ति बढ़ी। जीडीपी की वृद्धि दर 3.5 से 4 फीसदी, रोजगार वृद्धि दर 2 फीसदी सालाना रही। हरित क्रांति, दुग्ध क्रांति हुई, शिक्षा व स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार हुआ। जागीरदारी जमींदारी समाप्त हुई, किसान खेत का मालिक बना। दलितों का सामाजिक दर्जा बढ़ा, कानून का राज, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के साथ कल्याणकारी कदम उठाये गये। विकास का सुनियोजित यात्रा पथ बना। अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक के अनुसार उदारवादी नीतियां अपनाने के पश्चात असमानता बढ़ी।
2011-12 के बाद हालात में इतनी गिरावट आई कि मोदी सरकार ने 2017-18 के लिए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़े प्रकाशित नहीं किये। कारपोरेट-हिन्दुत्वच गठजोड़ बना, धार्मिक समुदायों के बीच नफरत फैलाना प्रारम्भ हुआ, मेहनतकश जनता को बांटना व उनके अधिकारों में कमी प्रारम्भ हुई। मंहगाई, बेकारी, बेरोजगारी, गरीबी पुनः पूर्व की स्थिति से भी बदतर हो गई।
असमानता के हाल यह हो गये कि बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों ने 2021-22 तक 9.3 लाख करोड़ का मुनाफा कमाया जो पूर्व की सालाना औसत मुनाफे से तीन गुना अधिक है व 70 फीसदी से भी अधिक है। महामारी काल में भी दोगुना मुनाफा कमाया जबकि 2020 में 4.6 करोड़ भारतीय अपनी अब तक की माली हालत से लुढ़ककर गरीबी के रसातल में पंहुच गये। लगभग आधी आबादी प्रभावित हुई और 2021 के भूख सूचकांक में भारत 116 देशों के बीच 101 स्थान पर पंहुच गया और 27.5 के स्कोर के साथ इसे गंभीर की श्रेणी में रखा गया। एक और चरम धनिको की आमदनी दिन दूरी राज चौगुनी बढ़ी, दूसरी तरफ देश की मेहनतकश आबादी का बड़ा हिस्सा फाकाकशी में रहा।
2022 में आक्सफैम इंडिया ने ‘‘इनीक्वालिटी किल्स’’ शीर्षक से रिपोर्ट प्रकाशित की। मार्च 2020 से नवम्बर 2021 के बीच 84 फीसदी परिवारों की आमदनी में गिरावट आई। बिलीनियर्स की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई, कुल सम्पदा 23.14 लाख करोड़ से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ तक जा पंहुची। आक्सफैम ने कहा ‘‘भारत में सम्पदा की यह तीखी गैर बराबरी उस आर्थिक व्यवस्था की नतीजा है जो गरीब व हाशियाकृत लोगों के खिलाफ चरम धनिकों के पक्ष में है।
2014-15 से 2020 के बीच सरकार ने टैक्स इंसेटिव के नाम पर कारपोरेट करदाताओं को 6.15 लाख करोड़ की छूट दी। बैंकों ने 10.72 लाख करोड़ के कर्जो को बट्टे खाते में डाल दिया। 2019 में कारपोरेट टैक्स दर को 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी कर दिया और 1.45 लाख करोड़ का तोहफा दिया। पूंजीपतियों की जेब भर गई, बेरोजगारी की दर 40 वर्षो में अधिकतम हो गई।
वरिष्ठ पत्रकार संजीव कुमार ने अपने सम्पादकीय में ‘‘आजादी के अमृत महोत्व को मनाएं’’ आलेख में बहुत ही संजीदा तरीके से लिखा है। टैक्स दरों में भारी छूट के साथ औने-पौने दामों में सार्वजनिक सम्पदा की बिक्री, नेशनल मानेटाईजेशन जैसी योजनाओं, पूंजीपतियों के पक्ष पर श्रम कानूनों में सुधार से अमीरों की अमीरी बढ़ रही है, गरीब कर हकमारी हो रही है। मौजूदा कारपोरेट हिन्दुत्व गठजोड़ आमजन को बांटने और उनके सरोकारों को आर्थिक प्रश्नों से हआकर किसी दूसरी दिशा में मोड़ देने का ताकत हिन्दुत्वादी लगा रहे है। हिन्दुओं के सामने मुसलमानों को पराचा के तौर पर पेश किया जा रहा है। संविधान की मूल भावना से परे निर्णय लिये जा रहे हैं।
भारत वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इन्डैक्स में लुढककर 180 से 150वें स्थान पर आ गया है। न्यायालय, ईडी, सीबीआई, आयकर व अन्य संवैधालिक संस्थाओं को राजनैतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। गुजरात दंगों संबंधी फैसला व गांधीवादी समाजकर्मी हिमांशु कुमार के फैसले नये परिवर्तन के द्योतक है। लोकतंत्र व मानवाधिकारों की लड़ाई मुश्किल हो गई है। मीडिया पर इने गिने औद्योगिक घरानों का अधिकार हो गया है। सूचना का अधिकार कानून का महत्व नहीं रहा। लोकतांत्रिक व्यवस्था के संरक्षकों, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा के लिए खड़े है, उनका रास्ता कठिन, दुष्कर व कष्टप्रद हो गया है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)