हिन्दी दिवस : राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की सुनो

14 सितम्बर हिन्दी दिवस

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)

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हिन्दी को 14 सितम्बर 1949 को राजभाषा घोषित किया गया। संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी तथा लिपि देवनागरी रखी गई परन्तु खण्ड तीन के अनुसार 15 वर्ष की अवधि के बाद भी अंग्रेजी का प्रयोग उपलब्ध कर दिया गया। अनुच्छेद 348 के अनुसार लगभग 65 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिन्दी उच्च शिक्षा में उपयोगी महसूस नहीं समझी जाती इसलिए माध्यम अंग्रेजी अपनाया जाता है। दक्षिण में हिन्दी शिक्षा का विरोध राजनीतिक है। भारत विरोध, कांग्रेस विरोध के लिए जनभावनाएं भड़काई जाती रही है। तमिल में त्रिभाषा फार्मूले का विरोध है।

उच्चतम न्यायालय का कामकाज व संसद में प्रस्तुत होने वाले विधेयक, उपविधियां अंग्रेजी में प्रस्तुत होते है। अनुच्छेद 351 के अनुसार केन्द्र हिंदी के प्रसार में वृद्धि करेगा जिससे सामाजिक संस्कृति के तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, राष्ट्रीय एकता को बनाये रखा जा सके। आशय रहा धीरे-धीरे हिन्दी भाषा का प्रयोग बढ़ाया जाय। 

22 बोलियों का समूह अपनी अलग-अलग भाषा बनाकर हिन्दी का स्थान लेना चाहता है, उसको प्रोत्साहन नहीं मिले इसके लिए हिन्दी बोलने व लिखने वालों को आगे आकर उन्हें यथासंभव हिन्दी अपनाने को संतुष्ट करने की आवश्यकता है। किसी भी हालत में प्रान्तीय भाषाओं को नुकसान पहुंचाना या मिटाने के प्रयास नहीं होने चाहिए। हिन्दी की देवनागरी लिपि को वैज्ञानिक मान्यता, विदेशों में प्रमुख विद्यालयों में स्वतंत्र हिन्दी विभाग है, इलेक्ट्रोनिक चेनलों से समाचार व शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक कार्य प्रस्तावित हो रहे है।

महात्मा गांधी ने कहा था ‘‘इस बात में साधारण सहमति है कि हमें एक सामान्य भाषा की जरूरत है, सामान्य भाषा का तो अभी हमारा स्वप्न ही है। सामान्य लिपि केवल एक आदर्श है, हमारी सामान्य संस्कृति भिन्न-भिन्न धर्म और सम्प्रदायों को एक सूत्र में बांधने वाली है। हमारी देशी भाषाओं की कई लिपियां है। 

भारत में प्रान्तीय मानसिकता को छोड़ना आवश्यक है। बाजारवाद के नाम पर, वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर, प्रान्तीयता के नाम पर हिन्दी का विरोध किया जा रहा है। दूसरी ओर हिन्दी को भी अधिकाधिक व्यवहारिक बनाने हेतु विज्ञान विषय में शब्दावली का निर्माण किया जाय। हिन्दी शब्दों का संस्कृतकरण नहीं सरलीकरण व तकनीकि विकास की आवश्यकता है। हिन्दी भाषा को क्लिष्ट बनाने के प्रयास करने की बजाय सरलीकरण एवं अन्य भाषाओं के बोलचाल वाले शब्दो को सम्मिलित करने की आवश्यकता है। विचारशीलता, विवेकशीलता, अभिव्यक्ति, सरलता, समर्थता लाने की आवश्यकता है।

हम अपनी-अपनी प्रान्तीयता से बंधे है। ‘‘प्रान्त प्रेम वहां अच्छा है जहां वह अखिल भारतीय देश प्रेम की बड़ी धारा को पुष्ट करता है परन्तु जो प्रान्त प्रेम केवल प्रान्त को सर्वस्व मानकर कहता है कि भारत कुछ नहीं, यह वृत्ति वर्जनशील और संकीर्ण हैं। हर अविकसित व अलिखित बोली को चिरस्थायी बनाना और विकसित करना राष्ट्र विरोधी है। मेरी विनम्र सम्मति में तमाम अविकसित और अलिखित बोलियों का अलविदा करके उन्हें हिन्दुस्तानी की बड़ी धारा में मिला देना चाहिए। यह आत्मोकर्ष के लिए की गई कुर्बानी होगी, आत्महत्या नहीं। अगर मेरी चले तो सब प्रान्तों में देवनागरी लिपि अनिवार्य कर दूं।’’ 

महात्मा गांधी ने अफसोस प्रकट करते हुए कहा था ‘‘हमारे पढ़े लिखे लोगों के अनुसार अंग्रेजी तो राष्ट्रभाषा बन चुकी, अंग्रेजी के बिना हमारा कारोबार बंद हो जायेगा परन्तु गहरे जाकर देखेंगे तो पता चलेगा अंग्रेजी राष्ट्रभाषा न तो हो सकती है और न होनी चाहिए। भाषा का विचार करते समय क्षणिक या कुछ समय तक रहने वाली स्थिति पर जोर नहीं दिया जाय। हमारे नवयुवकों के लिए किसी भी भाषा से अंग्रेजी ज्यादा कठिन है। धार्मिक व्यवहार नहीं हो सकता व अधिकतर लोगों की भाषा नहीं है। साम्राज्य के राजनीतिक कामकाज में अंग्रेजी की जरूरत रहेगी। हमें अंग्रेजी भाषा से कोई वैर नहीं, उसे हद से बाहर न जाने दिया जाय, परन्तु राष्ट्र की भाषा अंग्रेजी नहीं हो सकती। अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाना ‘‘ऐस्पेरेण्टो’’ दाखिल करने जैसा है, यह कल्पना ही हमारी कमजोरी को प्रकट करती है कि अंग्रेजी राष्ट्रभाषा हो सकती है। यह माने बिना काम नहीं चल सकता कि हिन्दी भाषा में सारे आवश्यक लक्षण मौजूद हैं। बंगाली, गुजराती, मराठी अपने प्रान्त के बाहर हिन्दी का ही उपयोग करते है। धर्मोपदेशक सारे भारत में अपने भाषण हिन्दी में देते है। हिन्दी बोलने वाले जहां जाते है, हिन्दी का उपयोग कर लेते हैं ठेठ द्रविड प्रान्त में भी हिन्दी की आवाज सुनाई देती है। मद्रासी उत्तर में हिन्दी बोलते है, भारत के मुसलमान हिन्दी बोलते है, हिन्दी राष्ट्रभाषा बन चुकी है, उसका उपयोग किया जा रहा है। मुसलमान बादशाह, अंग्रेज अधिकारी उर्दू व अंग्रेजी को आम लोगों पर नहीं थोप सके। अंग्रेजी भाषा, द्रविड जनता में नहीं घुस सकी। जितने साल हम अंग्रेजी सीखने में बरबाद करते है उतने महिने भी अगर हिन्दुस्तानी सीखने की तकलीफ उठाये जो जनसाधारण के प्रति प्रेम की डींगेख् निरी डींगे ही रहेंगी।

मातृभाषाओं के मुकाबले अंग्रेजी की मुहब्बत से उंचे तबके के साथ आम लोगों का रिश्ता टूट गया है। सर्वसाधारण की बोली में ही स्वाधीनता की लड़ाई लड़ी जा सकती थी। अंग्रेजी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में कुछ लोगों के सीखने की चीज हो सकती है, लाखों करोड़ों ग्रामीण लोगों के लिए नहीं। रूस ने बिना अंग्रेजी विज्ञान में तरक्की की। अर्न्तप्रान्तीय भाषा के रूप में हिन्दी का उपयोग बढ़ाया जा सकता है। बंगाली व द्रविड बालक अद्भुत सरलता से हिन्दी सीख लेते हैं। दक्षिणी अफ्रिका व विदेशों में रहने वाले तमिल तेलगु भाषी हिन्दी समझते हैं।

अंग्रेजी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की भाषा है। कूटनीति की भाषा है इसलिए कुछ लोगों के लिए अंग्रेजी जानना आवश्यक हो सकता है। अगर स्वराष्ट्र करोड़ों निरक्षरों, दलितों व अन्त्यजों का है तो हिन्दी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती है। विभिन्न प्रान्तों के पारम्परिक संबंध के लिए हम हिन्दी सीखें। अंग्रेजी भाषा का महत्व है, अंग्रेजी अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है, अंग्रेजी के ज्ञान की आवश्यकता है परन्तु अंग्रेजी राष्ट्रभाषा नहीं हो सकती क्योंकि वह पूरे देश में आमजन की भाषा नहीं है। सवाल यह है कि हिन्दुस्तान एक देश और एक राष्ट्र है, अनेक देशों और राष्ट्रों का समूह नहीं है। कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन 1916 में प्रस्ताव अंग्रेजी में था परन्तु गांधी जी ने चर्चा हिन्दी में की, 1917 में सरोजनी नायडू के अंग्रेजी भाषणपर उन्होंने कहा ‘‘भारत कोकिला अंग्रेजी में बोल रही है।’’ 

नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा फार्मूला रखा गया है, उसमें भी तीन में से दो भारतीय भाषाओं को सीखने का विकल्प रखा गया है। उच्चतर शिक्षा में दो भाषाएं उपलब्ध कराई जायेंगी। भारतीय संविधान में राजभाषा का पद हिन्दी को मिला परन्तु आज तक हिन्दी न राजभाषा बन पाई और न ही जनभाषा। भारत में कुछ प्रान्त ऐसे हैं जहां वह राजकाज की भाषा है। अन्य राज्यों में हिन्दी के प्रचार प्रसार संबंधी आख्यान, व्याख्यान, भाषण होते हैं परन्तु हिन्दी का उपयोग पूर्णरूपेण भारत में नहीं होता। चीन, जापान, रूस आदि ने अपनी भाषा को मजबूत किया, उनका विकास किया, वैज्ञानिक और औद्योगिक क्षेत्र में तरक्की की।

हिन्दी भाषा प्रदेश केवल राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार रह गये है। हिन्दी परिवार की उपभाषाओं को आंठवी अनुसूची में जोड़े जाने की मांग की जा रही है। इससे हिन्दी की स्थिति में कमी आयेगी, हिन्दी भाषा भाषियों की संख्या कम होगी व संयुक्त राष्ट्र से मिली मान्यता खतरे में पड़ सकती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)