राजस्थान के विकास पुरूष थे मोहनलाल सुखाड़िया : डॉ. सत्यानारायण सिंह

31 जुलाई जन्म दिवस पर

लेखक : डॉ. सत्यानारायण सिंह 

(लेखक रिटायर्ड आई. ए. एस. अधिकारी हैं)

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आधुनिक राजस्थान के शिल्पी यशस्वी मुख्यमंत्री स्व. मोहनलाल सुखाड़िया का जन्म 31 जुलाई, 1916 को झालावाड़ में हुआ था। नाथद्वारा और उदयपुर से अपनी प्रारम्भिक षिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बम्बई में विद्युत इंजीनियरी का अध्ययन किया। तत्पष्चात वे प्रजामण्डल आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़ गए और उन्हें अपने विद्यार्थी जीवन में ही स्वतंत्रता संग्राम में आना पड़ा। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 26 वर्ष की आयु में जेल गये। 1946 में वे तत्कालीन मेवाड़ राज्य (उदयपुर) के नागरिक आपूर्ति, सार्वजनिक निर्माण, राहत और पुर्नवास मंत्री बने। 

राजस्थान में दलित जनता के उत्थान के लिए ठक्कर बापा की कल्याण योजनाओं से भी वे संबद्ध रहे। राजस्थान राज्य का गठन होने के बाद 1948 में उन्होने विकास मंत्री के रूप में राज्य मंत्रिमंडल में कार्यभार संभाला। 1951-52 में वे नागरिक आपूर्ति, कृषि एवं सिंचाई मंत्री रहें। 1952 में हुए पहले आम चुनावों में राजस्थान विधानसभा के लिए चुने जाने पर सुखाड़िया राजस्व कृषि एवं अकाल राहत मंत्री बने। 13 नवम्बर, 1954 को वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बने और 1971 तक इस पद पर कार्य करते रहें। 1961 में उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की कार्यकारिणी समिति का सदस्य नामित किया गया था। 

मुख्यमंत्री के रूप में राज्य में भूमि सुधार और पंचायतीराज शुरू करने में उन्होंने एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई। राजस्थान को एक सुदृढ़ राज्य बनाने की समस्या का उन्होंने स्थिरचित होकर सामना किया। उनके मुख्यमंत्री काल में राजस्थान का सुनियोजित विकास और औद्योगिकीकरण हुआ। उन्होंने राज्य में शिक्षा तथा चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार को भी प्रोत्साहित किया। 

राजस्थान का विकास सदैव उनके हृदय के निकट रहा है। अकाल-पीड़ितो की सहायता तथा विस्थापितों का पुर्नवास उनकी मुख्य चिन्तायें रहीं और इन कठिन कार्यों को पूरा करने का दायित्व उनके कुशल एवं सशक्त कन्धों पर रहा। सबसे कम आयु के मुख्य मंत्रियों में से एक, उन्होंने इस उच्च पद की बागडोर देष में सबसे लम्बी अवधि तक संभाली। उनके मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद राजस्थान प्रदेश में खुशहाली एवं प्रगति का युग प्रारम्भ हुआ और शीघ्र ही उनके द्वारा किये गये भूमि-सुधारों एवं विकास परियोगलाओं से जिनमें शिक्षा के व्यापक प्रसार के लिए प्रारम्भ कियें गये प्रयास सम्मिलित हैं, प्रदेश का अपूर्व एवं आश्चर्यजनक काया कल्प हो गया। एक प्रगतिशील जीवन के सभी क्षेत्रों में अद्भूत परिवर्तन लाये। 

पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने सुखाड़िया के लिए कहा था ”सुखाड़िया हमारे भविष्य की आशा है।“ पड़ौसी राज्यों की बारहमासी नदियों का लाभ प्राप्त करने के उद्देष्य से कई वृहृद बहुद्देशीय परियोजनायें प्रारम्भ की गई। इन परियोजनाओं में गंगनहर, भाकरा, राजस्थान (इन्दिरा गांधी) नहर, सिधमुख एवं नोहर योजना (पंजाब से), चम्बल घाटी परियोजना (उत्तर प्रदेश से), माही एवं नर्मदा योजना (गुजरात एवं मध्यप्रदेश से) सम्मिलित हैं। राजस्थान नहर परियोजना, जिसका नाम बाद में स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी की स्मृति में इंदिरा गांधी नही परियोजना कर दिया गया, देश की सबसे बड़ी नहर परियोजना तथा विश्व की विशाल योजनाओं मे से एक है। परियोजना की विषालता, दुर्गम परियोजना क्षेत्र में निर्माण सम्बन्धी प्रतिकूल परिस्थितियां, राज्य के सीमित वित्तीय संसाधन तथा अन्य तकनीकी एवं प्रशासनिक कठिनाइयों के परिप्रेक्ष्य में इस परियोजना की सफल क्रियान्विति वास्तव में राज्य के लिये एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। 

राजस्थान (इन्दिरा गांधी) नहर परियोजना से राजस्थान प्रदेश के इस भू-भाग का जो कायापलट हुआ है उसका सही अनुमान वे लोग ही लगा सकते हैं जिन्होंने इस क्षेत्र के शुष्क मरूस्थल तथा प्यासी धरती को देखा है या अध्ययन किया है। हरियाली एवं खुशहाली से भरपूर यह क्षेत्र राजस्थान एवं देश की आर्थिक प्रगति एवं समृद्धि में अपना मूल्यवान योगदान कर रहा है। 

”राजस्थान में सहकारी आन्दोलन पंगु ही नहीं अपितु नहीं के बराबर था। उसे अपने पैरों पर खड़ा करने में सुखाड़ियाजी की महत्वपूर्ण भूमिका थी।“ सुखाड़ियाजी का यह स्पष्ट मानना था की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को यदि सुदृढ़ आधार देना है तो सहकारिता ही उसका प्रमुख माध्यम हो सकता है। इसी तरह पंचायतों की रचना, प्रशासनिक विकेन्द्रिकरण की प्रतीक होनी चाहिए। इसीलिये उन्होंने अपने जीवन में पंचायतों और ग्राम सेवा सहकारी समितियों की महत्ता को पहचाना तथा उसे दिशा-निर्देष दिया। 

पहले किसानों को अपनी उपज के विपणन के लिये किसी बिचौलिये, साहूकार या महाजन का सहारा लेना पड़ता था जिसमें उन्हें अनेक कठिनाइयों एवं अनिश्चितता का सामना करना पड़ता था। क्रय-विक्रय सहकारी समितियों के राज्यव्यापी गठन से किसानों को अपनी उपज के विपणन तथा उसका सही मूल्य प्राप्त करने में मूल्यवान सहायता मिलने लगी। 

नवम्बर 1954 में श्री माहनलाल सुखाड़िया द्वारा मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की बागड़ोर संभालने के पश्चात औद्योगिक विकास के प्रयासों में विशेष गति आई। राज्य की द्वितीय एवं तृतीय पंचवर्षीय योजनाओं तथा तीन वार्षिक योजनाओं में औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिये नीतिगत निर्णय लेकर उनकी क्रियान्विति सुनिष्चित करना सम्मिलित था, वहीं दूसरी किये गये जिन्होंने देष के दूसरे भागों में औद्योगिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा अर्जित की थी। 

औद्योगिक विकास का महत्व समझते हुये श्री सुखाड़िया ने स्वयं मनुहार कर बिड़ला, सिंहानिया, कानोड़िया तथा श्रीराम सरीखे औद्योगिक घरानों को राज्य में उद्योगों की स्थापना के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप कोटा मे डी. सी. एम. व जे. के. समूह की औद्योगिक ईकाइयां लगीं। चित्तोड़गढ़ में बिड़ला समूह व निम्बाहेड़ा में जे. के. समूह के सीमेन्ट प्लान्ट, कांकरोली में जे. के. टायर, उदयपुर में नेवटिया-बजाज सीमेन्ट (अब जे. के.), भरतपुर में सिमको, भीलवाड़ा में एल. एन. झुनझुनूवाला की राजस्थान स्पिंनिग एवं वीविगं मिल, भवानीमण्ड़ी में बिड़ला टेक्सटाइल्स तथा किषनगढ़ मे कानोड़िया समूह की आदित्य मिल्स आदि समूह स्थापित हुये।विद्युत उत्पादन के लिये ताप (थरमल) एवं डिजल बिजलीघरों का नवीनीकरण एवं क्षमता बढ़ोतरी की गई तथा नये बिजली घर स्थापित किये गये। 

मुख्यमंत्री के रूप में श्री सुखाड़िया ने प्रषासनिक नवाचार को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ अपने मंत्रीमण्डल के साथियों तथा अधिकारियों के बीच परामर्ष एवं विचार-विमर्ष की प्रक्रिया भी प्रारम्भ की। इतिहास ने उन्हें राजस्थान राज्य को सामन्तवाद एवं राजशाही व्यवस्था से त्राण देते हुये आधुनिक जनहितैषी प्रषासन के युग में पहंचाने का दायित्व संभलाया था और उस दायित्व के सफल निर्वहन के लिए उन्होंने प्रशानिक सुधार एवं नवाचार के सभी आवष्यक कदम उठायें। वे राजनेता एवं लोकसेवक के बीच पूर्ण समन्वय एवं विश्वास के प्रबल पक्षधर थे। प्रषासन मे स्वायत्तता तथा जवाबदेही में अधिकतम संतुलन बनाकर चलने मे विश्वास रखते थे। प्राथमिक, उच्च प्राथमिक तथा माध्यमिक/उच्च माध्यमिक तीनों ही स्तर पर इस अवधि में जहां विद्यालयों की संख्या एवं अध्यापकों की संख्या में बढ़ोत्तरी तीन से चार गुना तक हुई वहीं विद्यार्थियों की संख्या में बढ़ोत्तरी पांच से छः गुना तक हुई। 

उनके शासनकाल में विकास एवं जनहित के कार्यों के साथ चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार एवं प्रसार पर भी ध्यान दिया गया। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनेक कदम उठाये गये।श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिये राज्य कर्मचारी बीमा योजना लागू की गई। इसके अन्तर्गत श्रमिकों को निःशुल्क इलाज की सुविधा, बीमारी के दिनों का मुआवजा तथा महिला श्रमिकों एवं श्रमिको की पत्नियों के लिये प्रसूति एवं मातृत्त्वकालीन सुविधायें उपलब्ध की जाती है। 

पूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादूर शास्त्री और पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री जगजीवनराम ने भी सुखाड़िया को राजस्थान के नवविर्माण में एक कुषल प्रसासक के रूप में दिये गये योगदान पर पूरी-पूरी प्रसंषा की और राजस्थान की प्रगति का श्रेय सुखाड़िया जी को दिया।

1972 और 1977 के बीच की अवधि के दौरान वे कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश और तमिलनाडू के राज्यपाल नियुक्त किये गए।1980 में वे उदयपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के लोकसभा के लिए चुने गयें। 02 फरवरी, 1982 को उनका देहावसान हो गया। उनके स्वर्गवास पर पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा था ”श्री मोहनलाल सुखाड़िया कांग्रेस पार्टी और हमारे देश के अग्रणी नेता थे। एक निष्ठावान राष्ट्रसेवक और कुषल प्रशासक थे। उन्होंने गरिमा के साथ कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और अपनी सूझ-बूझ का परिचय दिया। राजस्थान के विकास में उनका बहुत योगदान है। वे राजस्थान की जनता के लिए समर्पित थे। हमारे संगठन में उनकी भूमिका और देश की बड़ी समस्याओं में उनकी रूचि भी कम महत्वपूर्ण नहीं थी।“ (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)