भारतीय उत्सव एवं पर्व हमारी एकता के प्रतीक : डॉ. सोहन राज तातेड़

लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान

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भारतवर्ष में उत्सव एवं पर्व प्राचीनकाल से आयोजित किये जाते रहे है। जब कोई प्रसन्नता की बात होती है तो सभी मिलकर उत्सव मनाते है। आन्तरिक प्रसन्नता प्रकट करने के लिए उत्सवों का आयोजन होता है। भारत विभिन्नता में एकता का देश है। यहां हर जगह विभिन्नता दिखलाई पड़ती है। भौगोलिक विभिन्नता, सामाजिक विभिन्नता, राजनीतिक विभिन्नता, धार्मिक और साम्प्रदायिक विभिन्नता, भाषायिक विभिन्नता और रहन-सहन की विभिन्नता प्रमुखता से यहां दिखाई देती है। इन सब विभिन्नताओं में प्रेम और सौहार्द्र का सूत्र एक धागे में पूरे देशवासियों को पिरोये रहता है। यहां पर सभी देशवासियों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त है। अपनी इच्छानुसार धार्मिक आयोजनों को करना, उत्सवों को मनाना और परस्पर मिल-जुलकर रहना इत्यादि बाते सब अपनी इच्छानुसार कर सकते है। 

विभिन्नता में एकता का सबसे बड़ा सूत्र यह है कि यहां मतभेद हो सकता है, किन्तु मनभेद नहीं। वर्षभर में 365 दिन होते है। प्रायः सभी धर्मों और सम्प्रदाय के लोगों का कोई न कोई उत्सव और पर्व प्रतिदिन हुआ करता है। हिन्दूओं के उत्सव होली, दीपावली, रक्षाबन्धन, दशहरा, महावीर जयन्ती आदि पर्व बड़े धूम-धाम से मनाये जाते है। मुस्लिमों में ईद, बकरीद, रोजा, नमाज, प्रतिदिन सौहार्द्र पूर्ण वातावरण मंे आयोजित होते है। इसी प्रकार से सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और अन्य सम्प्रदाय के लोगों के व्रत त्योंहार, उत्सव आयोजित होते रहते है। इन उत्सवों का सम्बन्ध किसी न किसी घटना से रहता है। जैसे दशहरा का पर्व हमंे यह संदेश देता है कि बुराई को छोड़कर अच्छाई का वरण करना चाहिए। दशहरा अन्याय पर न्याय की विजय का सन्देश देता है। दिपावली प्रकाश का त्यौंहार है। इस दिन सभी लोग एक-दूसरे के साथ मिलजुलकर खुशियां बांटते है और आनन्द मनाते है। इसी प्रकार सभी उत्सव किसी न किसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से सम्बन्धित है। 

उत्सव और त्यौंहार हमें क्या देते है? यह जानना महत्वपूर्ण है। उत्सव और त्यौंहार मानव में खुशियां बांटते है और निराशा को दूर करते है। हर पर्व पर हमें यह शिक्षा लेनी चाहिए कि हम प्रसन्नता पूर्वक जिये, एक-दूसरे के साथ समभाव रखें और शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के साथ रहे। किसी के साथ हम घृणा न करे। हर वर्ग के लोगों को एक-दूसरे के पर्व में उत्साह से भाग लेना चाहिए, खुशियों का आदान-प्रदान करना चाहिए। सहनशीलता, नैतिकता और सहअस्तित्व के द्वारा जीवन जीना चाहिए। उत्सव मानव में परिवर्तन का सन्देश लाते है। मानव और प्रकृति दोनों एक-दूसरे से सम्बन्धित है। प्रकृति हमें प्रसन्नता का संदेश देती है। मानव में कुछ ऐसे हार्मोन्स होते है जो निराशा पैदा करते है और कुछ प्रसन्नता पैदा करते है। जब किसी उत्सव का आयोजन होता है तो मनुष्य नृत्य, गीत, संगीत के माध्यम से अपनी प्रसन्नता को व्यक्त करता है। इससे मानव में रासायनिक परिवर्तन पैदा होता है। उत्सव का सम्बन्ध कृषि से भी है। जब नयी फसल पककर तैयार होती है और किसान के घर आती है तो किसी न किसी उत्सव का आयोजन अवश्य होता है। कार्तिक मास में दिवाली का आयोजन होता है। 

इस समय किसान धान की फसल अपने घर लाता है और प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए दिपावली का आयोजन कर खुशियां बांटता है। नवरात्र का पर्व हमें यह सन्देश देता है कि आसुरी शक्तियों का विनाश कैसे किया जाये। मां दुर्गा के नौ अवतारों का नव दिन मंे पूजन हवन किया जाता है। इस समय रवी की फसल पककर तैयार रहती है और जब किसान के घर आती है तो उसी प्रसन्नता में धूम-धाम से इस पर्व का आयोजन कर खुशी मनाता है। उत्सव भाइचारें का संदेश देते है। मनुष्य अपने पुराने विवादों को भूलकर नयी जिन्दगी जीने के लिए तैयार होता है और एक-दूसरे के साथ भाईचारें का सन्देश देता हैं। मनुष्य मंे मानवता रहती है। मानव धर्म एक है। मानवता का गुण सभी मं होना चाहिए। उत्सवों के दिन सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों में अवकाश घोषित किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि परिवार के सभी सदस्य मिलजुलकर खुशियों को आदान-प्रदान करें। पती-पत्नी, बच्चे, मां-बाप, दादा-दादी, चाचा-चाची, नाती, पोते सब एक-दूसरे के साथ मिल बैठकर वैचारिक आदान-प्रदान करते हैं और एक-दूसरे को शुभकामना देकर मिष्ठान और पकवान का आनन्द लेते हैं। कुछ उत्सव धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और कुछ आध्यात्म्कि दृष्टि से। नवरात्र का उत्सव आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। 

कुछ लोग नौ दिन तक निराहार रहकर भगवती देवी को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना करते है। घर में धूप-दीप जलाकर अपने आन्तरिक उत्साह को प्रकट कर आत्मोत्थान करते है। जैन धर्म में पर्युषण पर्व के अवसर पर और भगवान महावीर की जयन्ती के अवसर पर लोग आध्यात्मिक उन्नति की कामना करते है। सुबह प्रभात फेरी और जुलूस निकालकर अहिंसा और सत्य का उपदेश देने का प्रयास किया जाता है। जब यह जुलूस राजमार्गों से होता हुआ निकलता है तो लोग देखकर भगवान् महावीर के उपदेश को जीवन में उतारने का प्रयास करते है। अहिंसा परमोधर्मः का सन्देश सर्वत्र वितरित किया जाता है। अहिंसा मानवधर्म है। जीव हिंसा न करना और अपने समान सभी जीवों को देखना अहिंसा का मूलमंत्र है। इसी प्रकार वाणी का संयम, विचारों का संयम करके मानव मात्र को धर्म का उपदेश दिया जाता है। जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित कर उत्सव एवं पर्व के महत्व को भी बतलाया जाता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)