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भीलवाड़ा। राग छूटते है तो कर्म छूटने शुरू हो जाते है। आत्मा पर जब तक कर्म रूपी चाबी लगी है तब तक आत्मानुभूति नहीं होती है। कर्म बंध चेतन में ही होता है। ज्ञानी जनों ने कहा राग को छोड़ना घोर तपस्या है। ये विचार आगम ज्ञाता प्रज्ञा महर्षि वाणी के जादूगर डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने शांति भवन में नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। धर्म सभा में गायनकुशल जयवंत मुनि जी म.सा. एवं प्रेरणा कुशल भवान् मुनि म.सा. का भी सानिध्य मिला। धर्मसभा में करीब एक दर्जन श्रावक-श्राविकाओं ने सात उपवास की तपस्या का प्रत्याख्यान ग्रहण किया। धर्म सभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री राजेंद्र सुराणा ने किया। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के अध्यक्ष राजेन्द्र चीपड़ ने किया।