लेखक : डॉ.सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)
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संयुक्त राष्ट्र दीर्घकालिक विकास आयोग के अनुसार 1990 से 2030 के बीच विश्व की जनसंख्या में 3.7 विलियन की वृद्धि होगी। इस वृद्धि का 90 प्रतिशत विकासशील देशों में होगा। वर्ष 1990 में विश्व की आबादी का 42.3 प्रतिशतशहरों में रहती थी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 2020 तब 56.4 प्रतिशत हो जाने का अनुमान लगाया गया था।
शहरी जनसंख्या की वृद्धि शहरों में विद्धमान आर्थिक अवसरों की ओर खींचनेवाली और गांवों में विद्यमान निर्धनता और बेरोजगारी की ओर 'धकेलनेवाली' शक्तियों से प्रभावित होती है। इसलिए गत कुछ दशकों में शहरी आबादी में वृद्धि की दरें ग्रामीण आबादी की दरों से बहुत अधिक रही हैं। पिछले पचास वर्षों में शहरी आबादी में लगभग पॉच गुना वृद्धि हुई है। शहरी आबादी में वृद्धि का मुख्य कारण जनसंख्या में स्वाभाविक वृद्धि है जो 60 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार है। साथ ही विकास की वर्तमान पद्धति के कारण लोग गांवों से शहरों और कस्बों की ओर पलायन कर रहे हैं। 2030 तक शहरी आबादी ग्रामीण आबादी से दुगनी होगी। ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन, ग्रामीण क्षेत्रों में अल्प रोजगार, संयुक्त परिवारों के टूटने, भूमि जोतो का विखण्डन, भूमि सुधारों का लागू न किया जाना, शहरी क्षेत्रों में भूमिहीन आबादी के विश्थापन के लिए जिम्मेदार हैं।
शहरी आबादी में हुए इस विस्फोट का प्रत्यक्ष परिणाम यह है कि शहरों की गंदी बस्तियों में आबादी बहुत अधिक बढ़ रहीहै, बुनियादी स्वास्थ्य, सामाजिक ढा़ंचा तथा सेवाये उनकी पहुँच से बाहर हैं। नेशनल इन्स्टीट्यूट आफ अर्बन अफेयर्स के अनुसारइस शताब्दी के अंत तक 31 करोड़ की अनुमानित शहरी आबादी में गन्दी बस्तियों में रहने वाले व्यक्तियोंकी संख्या 7.8 करोड़ हो जायगी। शहरी पर्यावरण के गिरते हुए स्तर के कारण मानव बस्तियों में रहने वाले कम से कम 600 मिलियन लोग पहले ही अपने जीवन केा खतरे में डाल कर वहां रहते हैं। लगभग एक तिहाई लोग घटिया मकानों में रहते हैं।कम से कम 250 मिलियन शहरी निवासियों को सफाई सुविधायें प्राप्त नहीं हैं।
शहरी निर्धनों के स्वास्थ्य का स्तर कई घटको से प्रभावित हो रहा है। सकल घरेलू उत्पाद में भारत के शहरी क्षेत्र का योगदान 2001 तक 60 प्रतिशत से अधिक था विनिमय, व्यापार, परिवहन, वाणिज्य क्षेत्र के दो तिहाई रोजगार शहरी क्षेत्रों में केन्द्रित हैं परन्तु विकास का लाभ सभी शहरी लोगों को नहीं मिल रहा है। बड़े शहरों में 33 से 50 प्रतिशत आबादी गंदी बस्तियों में रहती है। आबादी के 15 प्रतिशत पुरूष श्रमिकों और 25 प्रतिशत महिला श्रमिकों के पास नियमित रोजगार नहीं है। वह अनुत्पादक क्षेत्रों में नियोजित रहती है या बेरोजगार रहती है।
1981 की जनगणना के अनुसार15.6 प्रतिशत शहरी परिवारों में एक भी साक्षर सदस्य नहीं था। गंदी बस्तियों में आज भी परिवार के स्वास्थ्य का स्तर, बरोजगारी, नशीली दवाओं, शराब व तम्बाकू पर फिजूल खर्च के कारण निम्न स्तर का है। जलापूर्ति, स्वच्छता, आवास व सुरक्षित भोजन सहित बुनियादी सुविधाओं का अभाव अत्यन्त निराशाजनक है।
गन्दी बस्तियों को उप संस्कृति के रूप में परिभाषित किया जाता है वहॉ आज भी खराब सफाई व्यवस्था और स्वास्थ्य उदासीनता के लक्षण हैं। पर्यावरणीय परिस्थितियों पर ध्यान नहीं है परिणाम स्वरूप शहरी पर्यावरण में भी गिरावट आयी है। 1985 में लगभग 27.1 प्रतिशत शहरी आबादी को स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध नहीं था। 2011 की जनगणना के अनुसार 18 प्रतिशत को उपलब्ध नहीं है। 71.6 प्रतिशत आबादी सफाई की आधारभूत सुविधाओं से वंचित है। शहरी क्षेत्रों में भी लगभग 4.7 करोड़ लोगों को सुरक्षित जल आपिूर्ति उपलब्ध नहीं है। 12.4 करोड़ की जनसंख्या सफाई की आधारभूत सुविधाओं से वंचित है। 4.9 करोड़ लोगों को स्कूली शिक्षा उपलब्ध नहीं हैं।
स्लम आबादी के बढ़ते घनत्व के कारण 90 प्रतिशत से अधिक स्लम परिवारों के पास निजी शौचालय नहीं है। लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्रों में पानी भरा रहता है जिससे आंत्र, श्वास तथा चर्म रोग उत्पन्न होते हैं। 36.82 प्रतिशत परिवारेां के पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है तथा 57.6 प्रतिशत अन्य लोगों के साथ उपयोग करते हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सर्वेक्षण के अनुसार एक लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में केवल 71 शहरों में मल वाहन प्रणाली विद्यमान है। 12 प्रमुख शहरों में उत्पादित प्रतिदिन 6.5 विलियन मल-जल में से केवल 1.5 विलियन लीटर जल का ही प्रतिदिन निपटान किया जाता है।
शहरी स्लम वातावरण विशेषकर युवा वर्ग के व्यक्तियों को हानिकारक होता है। पर्यावरणीय व्यवस्थास्लम क्षेत्रों में चल रहे, लघु उद्योगों द्वारा उत्पन्न पारिवारिक वातावरण हिंसा व तनावपूर्ण बना रहता है। काम धन्धों के बीच, मजदूरों के बच्चों का शोषण व दुर्व्यवहार जीवन का अंग बना है। स्लम क्षेत्रों में चल रहे व्यवसायों में काम करने वाले बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
स्लम क्षेत्रों में संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ले रहा है। बच्चों व महिलाओं पर ध्यान नहीं रख पाते, आमदनी बढ़ानें हेतु छोटी उम्र में काम पर लगाते हैं। स्लम क्षेत्रों में आवास सुविधा का अभाव स्वच्छ पानी व स्वच्छता का अभाव व बुनियादी सुविधाओं का अभाव प्रदूषित वातावरण, जीवन को दूषित बना रहा है। अनुत्पादक सार्वजनिक भूमियों पर अवैध कब्जों से निम्न दर्जे के आवास, झुग्गी झौंपडियाँ निर्मित किये जा रहे हैं।
शहरी विकास सम्बन्धी कार्यक्रम, रोग निदानकारी पहलुओं, जल, स्वच्छता, पर्यावरणीय सुधार कार्यक्रम, आय सृजन कार्यकलापों के साथ ही फलदायी हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में द्रुतगति से विकास, रोजगार सृजन कार्यक्रम हाथ में लेना आवश्यक है। जिससे शहरों की ओर तेजी से बढ़ती दौड कम हो सके। स्लम क्षेत्रों का विकास सामुदायिक संगठन,कार्यक्रम नियोजन और कार्यान्वयन सहित व्यापक रूप से करना होगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)