असर बेरोजगारी और मंहगाई का : डॉ. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)

www.daylife.page 

2020 में आई कोरोना महामारी सबसे लम्बे, दुनिया के सबसे कठोर लोकडाउन की तरफ ले गई। नोटबंदी, जीएसटी, लोकडाउन से उत्पन्न आर्थिक मंदी से अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में लगे लाखों लोगों की आजीविका दांव पर लग गई। लाखों लोग बंटवारे के बाद सबसे बड़े कूच में अपने गांवों की और लौटते देखे गये। बेरोजगारी दर दशकों के सबसे डरावने स्तर पर पंहुच गई है। मैन्यूफैक्चरिंग में नौकरियां 2016-17 के मुकाबले आधी रह गई, बढ़े निजीकरण से भी नौकरियों में कमी आई। थोक मंहगाई 15.08 फीसदी पर पंहुच गई और खुदरा मंहगाई 7.8 फीसदी तक पंहुच गई। 

खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती लागत से सर्वाधिक मंहगाई बढ़ी, 7.1 करोड़ गरीब भूख से बेहाल जीवनयापन कर रह है। विश्व खाद्य कार्यक्रम रिपोर्ट में कहा गया है। करोड़ों लोग गंभीर या उससे कम स्तर की भुखमरी का सामना कर रहे है। घरेलू आय का 42 प्रतिशत भोजन पर खर्च करते है, 1.90 डालर या इससे कम पर जीवनयापन कर रहे लोगों की तादाद 9 प्रतिशत आबादी तक पंहुच गई है। देश में 2019-21 में कुपोषितों की संख्या 22.43 करोड़ रही। 

भारत 116 देशों के वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2021 में फिसलकर 101 स्थान पर आ गया, बंगलादेश, पाकिस्तान से पीछे है। वीएचआई में भारत का स्थान 2017 में 100 वां था। 2018 में इंडेक्स में 103 स्थान पर, 2019 में 117 देशों में 102 स्थान पर, 2020 में 94 वें स्थान पर आ गया। जीएचआई स्कोर 2000 में 38.8 था जो 27.5 रहा। जीएचआई स्कोर की गणना चार संकेतों पर की जाती है। अल्पपोषण, कुपोषण, बच्चों की वृद्धि दर और बाल मृतयु दर चार संकेतक है। कंसर्न वर्ल्ड वाईड ऐजेन्सी के अनुसार भारत में भूख के स्तर को चिन्ताजनक बताया है। उम्र के हिसाब से वृद्धि नहीं होने की दर 1998-2002 के बीच 17.1 प्रतिशत थी। भुखमरी की श्रेणियों में भारत को गंभीर श्रेणी में रखा गया है। न्यूनतम स्वीकार्य भोजन से 89 प्रतिशत शिशु वंचित है जिससे शारीरिक, मानसिक विकास रूकता है। 

रसोई गैस के दाम 834 से बढ़कर 1053 रूपये हो गये, 26 प्रतिशत से भी ज्यादा वृद्धि हो गई। एस्सिस आई इंडिया के सर्वे के अनुसार मंहगाई की वजह से 59 प्रतिशत परिवारों को अपनी खरीददारी में कटौती करनी पड़ रही है। बेरोजगारी दर 7.5 प्रतिशत है (शहरी क्षेत्र में 8.5 प्रतिशत व ग्रामीण में 7.1 प्रतिशत)। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 7.79 प्रतिशत तक पंहुच गया है। सबसे बुरा असर गरीब तबके पर पड़ रहा है जो मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र में काम करता है। कृषि क्षेत्र में आमदनी बढ़ाने की संभावनाएं कम है, मंहगाई अकेले नहीं है, बेरोजगारी व मंहगाई का मिला जुला हमला है। अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर धीमी है, बाजार में मांग सुस्त है। निर्यात से प्रतिबंध से किसानों को आमदनी के स्तर पर जो फायदा होने के संभावना थी वह खारिज हो गई। 

अनाज के भाव नियंत्रण में रखे गये जबकि दवाओं, चिकित्सा, शिक्षा, परिवहन, पैट्रोल व अन्य खर्चो को बढ़ने दिया। 50 साल गेंहू की कीमत एमएसपी केवल 28 गुना बढ़ी। ताजा फैसले से किसानों को खुले बाजा में मिलने वाला दाम तत्काल कम हो जायेगा। खाद्य मंहगाई अप्रेल में 8.38 प्रतिष््रात व मई में 7.79 प्रतिशत रही। खाद्य वस्तुओं की कीमतें अधिक बढ़ी है, खाद्य मंहगाई दर 8.20 प्रतिशत है। आरबीआई की मंहगाई लिमिट 6 प्रतिशत से ज्यादा बनी हुई है। आरबीआई ने 2022-23 के मंहगाई अनुमानों को बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत से अधिक कर दिया है। आरबीआई ने माना है ब्याज दर बढ़ाने से मंहगाई दर कम होगी, आवश्यक नहीं है। 

अच्छी नौकरियो के अवसर केवल चुनिंदा उद्योग व सेवाओं तक सीमित है। कारपोरेट सेक्टर को टैक्स रियायतें, सस्ता कर्ज के बावजूद रोजगार नहीं बढ़ा। स्टार्टअप में छंटनी शुरू हो गई, फरवरी से मई के बीच स्टार्टअप ने आधे कर्मचारियों को निकाल दिया। मैन्यूफैक्चरिंग, भवन निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, होटल-रेस्तरां, सूचना जकनीक आथ्र वित्तीय सेवाएं, केवल कुल नौ उद्योगों में सेवाओं में अधिकांश स्थायी नौकरियां मिलती है। इन नौकरियों के बाजार की हकीकत डारावनी है। कोविड के कारण सबसे ज्यादा रोजगार शिक्षा, होटल, रिटेल, मैन्यूफैक्चरिंग में खत्म हुए। वेतन कम हुए, कर्मचारी वेतन औसत 5.7 प्रतिशत बढ़ा जो मंहगाई दर से कम है। सरकार व सरकारी उपक्रमों में नौकरियां घट रही है, सरकार खाली पदों को पर्याप्त गति से नहीं भर रही। जहां रिक्तियां भरी जा रही है वे ज्यादातर संविदा के आधार पर ही है। 

2019 में हर घंटे औसतन एक भारतीय नागरिक ने बेरोजगारी, गरीबी या दिवालियापन के कारण खुदकशी की। तकरीबन 25 हजार भारतीय 2018 से 2020 के बीच बेरोजगारी या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या के लिए मजबूर हुए। मंहगाई से मांग व खपत में कमी ने अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया है। रोजगार नहीं होने से खर्च के लिए पर्याप्त रकम में कमी व निर्यात की स्थिति कमजोर है, आयात बढ़ रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)