निशांत की रिपोर्ट
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फिलहाल जब आप और हम भारत में भीषण गर्मी से त्रस्त हैं, जर्मनी के बॉन शहर में दुनिया भर के तमाम देश देश एक बेहतर कल के लिए अपनी जलवायु प्रतिक्रिया पर चर्चा और सुधार करने के लिए एक साथ आए हैं। दरअसल, ग्लासगो में COP26 के सात महीने बाद, दुनिया भर के देशों ने जलवायु परिवर्तन वार्ता के एक और सेट के लिए जर्मनी के बॉन में अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि 6-16 जून तक होने वाला बॉन जलवायु सम्मेलन इस साल के अंत में मिस्र के शर्म अल-शेख में COP27 के लिए जमीन तैयार करेगा। यह सम्मेलन ग्लासगो में हुई COP से अगल है क्योंकि इसका नेतृत्व COP के दो सहायक निकाय कर रहे हैं।
इस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का उद्देश्य नवंबर में COP27 से पहले जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रमुख घटनाक्रमों को चर्चा के केंद्र में लाना है। जहां एक ओर जलवायु परिवर्तन के वैश्विक मुद्दे के समाधान के लिए अंतर-सरकारी स्तर पर तत्काल कार्रवाई करना समय की मांग है, वहीं फिलहाल इस बैठक में विकासशील देशों ने जलवायु परिवर्तन के कारण हुए विनाश पर चर्चा करने के लिए अधिक समय की मांग की है।
बॉन सम्मेलन में चर्चा का केंद्र है कैसे विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से हो रही हानि और क्षति के संदर्भ में शमन और अनुकूलन के मध्यम से मदद पहुंचाई जाए।
क्या है एजेंडे में?
दूरगामी अनुकूलन की आवश्यकता है यह सुनिश्चित करने के लिए कि 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमा से अधिक न हो। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए बॉन में 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के कार्य कार्यक्रम पर बातचीत हो रही है। एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा जलवायु से संबंधित नुकसान और क्षति पर बातचीत है। साथ ही, पेरिस समझौते के लक्ष्यों के साथ वैश्विक वित्तीय प्रवाह को संरेखित करने पर बातचीत भी एजेंडे में है। इतना ही नहीं, इस सम्मेनल में शामिल प्रतिनिधिमंडल एक ग्लोबल स्टॉकटेक की तैयारी भी कर रहे हैं, जिसके अंतर्गत 2023 के बाद से, हर पांच साल में एक समीक्षा होगी इस बात का आंकलन करने के लिए कि जलवायु परिवर्तन शमन के संबंध में दुनिया कहां खड़ी है।
भारत की है विशेष रुचि
भारत जैसे देश विशेष रूप से इस सम्मेलन के उन एजेंडा मदों में रुचि रखते हैं जो अनुकूलन, हानि और क्षति, और जलवायु वित्त पर चर्चा करते हैं। विकसित देशों को 2020 तक जलवायु वित्त में 100 बिलियन डॉलर जुटाना था - एक ऐसा लक्ष्य जिसे हासिल नहीं किया गया है, और 2023 से पहले पूरा होने की संभावना नहीं है। जलवायु वित्त में से केवल 20 प्रतिशत जलवायु अनुकूलन की ओर गया है जबकि 50 प्रतिशत जलवायु न्यूनीकरण की ओर है। संयुक्त राष्ट्र के एक समूह के अनुमान के अनुसार, जलवायु वित्त की आवश्यकता तब से बढ़कर 5.8-5.9 ट्रिलियन डॉलर हो गई है। जलवायु परिवर्तन शमन के लिए एक निर्धारित लक्ष्य है - ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित करना। लेकिन जलवायु अनुकूलन के लिए कोई निर्धारित लक्ष्य नहीं है, और इस पर चर्चा करने की आवश्यकता है। हमें एक नए वित्त लक्ष्य की भी आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान प्रतिज्ञाएं पूरी तरह से अपर्याप्त हैं।
प्रयास ज़रूरी हैं
पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस नीचे बनाए रखना है। इस सदी में तापमान वृद्धि को 1.5 सेल्सियस तक नियंत्रित करने वाले उपायों का समर्थन करने के उद्देश्य से इस पर हस्ताक्षर किए गए हैं। साथ ही, पेरिस जलवायु समझौते के मुख्य उद्देश्य को जीवित रखने के लिए, कार्बन उत्सर्जन को 2030 तक 50% तक कम करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने के लिए सरकारों द्वारा तत्काल कार्रवाई की उम्मीद करते हुए, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कार्यकारी सचिव पेट्रीसिया एस्पिनोसा ने बॉन सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में अपने भावनात्मक संबोधन में कहा: "हम सब को देखना चाहिए कि पिछले छह वर्षों में हमने क्या हासिल किया है। देखिये कि हमने पिछले 30 में क्या हासिल किया है। भले ही हम कार्यवाही के नाम पर बहुत पीछे हों मगर यूएनएफसीसीसी के कारण, क्योटो प्रोटोकॉल के कारण, पेरिस समझौते के कारण दुनिया एक बेहतर स्थिति में है। साथ ही, सहयोग के कारण, बहुपक्षवाद के कारण, और आपके कारण हम बेहतर स्थिति में हैं। लेकिन हम बेहतर कर सकते हैं और हमें करना चाहिए। प्रयास ज़रूरी है।"
बॉन में जलवायु परिवर्तन वार्ता
नवंबर 2021 में ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP26 के बाद पहली बार बॉन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन ने विभिन्न सरकारों को एक मंच पर लाने का काम किया है। इस कार्यक्रम को दरअसल संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP27, जो इस साल के अंत में मिस्र के शर्म अल-शेख में नवंबर में होने वाला है, की तैयारी के क्रम मे आयोजित किया गया है।
जहां सम्मेलन में विकासशील देशों ने जलवायु वित्त से संबंधित विकसित देशों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और क्षति से संबंधित चिंताओं को उठाया वहीं विकसित देशों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बैठक का एजेंडा बातचीत के लिए दायरा सीमित करता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)