पर्यावरण विकास का आधार बनेगा तभी बचेगी धरती : ज्ञानेन्द्र रावत

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आज पर्यावरण विनाश का सबसे बडा़ कारण वह तथाकथित विकास है जिसके पीछे इंसान अंधाधुंध भागे चला जा रहा है जिसके दुष्परिणाम के चलते पृथ्वी पर दिनों दिन बोझ बढ़ता चला जा रहा है। दुख इस बात का है कि यह सब जानते-समझते हुए भी इस बोझ को कम करने की बाबत हम सोच ही नहीं रहे हैं। यह कहना है पर्यावरणविद और राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति के अध्यक्ष ज्ञानेन्द्र रावत का। उनके अनुसार हम दावे भले कितने भी करें असलियत यह है कि पर्यावरण की दृष्टि में दुनिया के 180 देशों में  हमारे देश की स्थिति सबसे खराब है। 

पर्यावरण को लेकर वर्ल्ड इकोनामिक फोरम की रिपोर्ट ने इसका खुलासा करते हुए कहा है कि देश में पर्यावरण सुधार के काफी प्रयास किये जा रहे हैं और इस बाबत दावे भी किये जा रहे हैं लेकिन हालात इसकी गवाही नहीं देते। अभी भी भारत को ब्रिटेन और डेन्मार्क से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। विडम्बना यह कि हमारा वन एवं पर्यावरण मंत्रालय इस रिपोर्ट को ही खारिज करता है जबकि यह रिपोर्ट पर्यावरण जोखिम का खतरा, वायु प्रदूषण, हवा की शुद्धता, पानी और साफ-सफाई के मानक, पीने के पानी की गुणवत्ता,जैव विविधता,जल स्रोतों और कचरे के प्रबंधन,ग्रीन एनर्जी में इनवेस्टमेंट और जलवायु परिवर्तन आदि के मानकों को आधार बनाकर तैयार की गयी है।

यह देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि देश का नेतृत्व तथाकथित विकास के नशे में मदहोश होकर किसी से कुछ सीखने को तैयार ही नहीं है। जबकि यह कटु सत्य है कि पृथ्वी तभी बचेगी जब पर्यावरण विकास का आधार बनेगा। 

यदि हम अकेले हरित संपदा को ही लें जिसके बारे में सरकार लगातार बढो़तरी का दावा करते नहीं थकती, असलियत में इंसान और पेडो़ं के अनुपात की वैश्विक सूची में भारत सबसे निचले पायदान पर है। हमारे देश में प्रति व्यक्ति पेडो़ं की तादाद बहुत कम है यानी केवल 28 है। देश में 2014 से 2019 के बीच कुल एक करोड़ नौ लाख पचहत्तर हजार आठ सौ चवालीस पेड़ काट दिए गये। 2020 में 20 फीसदी से ज्यादा पेड़-पौधों का दायरा सिमट गया। आई एस एफ आर की मानें तो हर साल देश में 22 लाख पेड़ काट दिए जाते हैं। 

उस स्थिति में जबकि कोरोना काल ने आक्सीजन और पेडो़ं के महत्व का अहसास हम सबको बखूबी करा दिया है। फिर भी हमारी सरकार विकास के नाम पर पेडो़ं के निर्बाध कटान पर आमादा है। यही नहीं आल वैदर रोड के नामपर देवभूमि उत्तराखंड में देवदार के सवा लाख पेड़ तो काट दिये गये हैं और एक लाख पन्द्रह हजार पेड़ काटने की तैयारी चल रही है। दुख इस बात का है कि जब धरती पर हानिकारक गैसों और किरणों को रोकने के लिए कोई पेड़ ही नहीं होगा तो धरती पर प्राणियों का अस्तित्व कैसे बचेगा? इसलिए पेड़ लगाना बेहद जरूरी है। कारण पेडो़ं के बिना पर्यावरण की रक्षा की कल्पना ही बेमानी है।