सांभर को जिला बनाने के लिये दृढ इच्छाशक्ति का अभाव : शैलेश माथुर

प्रदेश में नये जिले बनाने की सीएम की घोषणा के बाद भी राजनेताओं ने नहीं दिखायी रूचि

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील। प्रदेश का सबसे प्राचीन उपखण्ड व उप जिला होने का दर्जा प्राप्त सांभर को जिला घोषित किये जाने की मांग यूं तो वर्ष 1952 से लगातार तत्कालीन सरकारों के समक्ष उठायी जाती रही है, लेकिन वर्ष 2012 में सांभर बार एसोसिएशन की तरफ से पुरजोर तरीके से उठायी गयी आवाज व उस वक्त मुख्यमंत्री रहे अशोग गहलोत व निवर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को विस्तृत विवरण के साथ सौंपे गये प्रतिवेदन के बाद सरकार पर राजनीतिक प्रेशर बनाने में यहां के तमाम राजनेताओं की ओर से कोई रूचि नहीं दिखायी गयी है और न ही ऐसी कोई कवायद प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से की गयी है, जिससे ऐसा प्रतीत होता हो कि सांभर को जिला बनाने के लिये उनकी कोई रूचि है। 

यह बात अलग है कि महज अखबार की सुर्खियों में छाये रहने के यहां के लॉकल कथित नेताओं की ओर से जो मुद्दे उठाये भी जाते हैं उनमें भी उनकी कामयाबी की कोई कहानी लिखने योग्य नजर नहीं आती है। प्रदेश के मुखिया की ओर से नये जिले बनाये जाने के लिये कमेटी का गठन किये लम्बा समय हो चुका है, लेकिन फुलेरा विधानसभा क्षेत्र के नेताओं की सुस्ती अभी तक उड़ने का नाम नहीं ले रही है, इससे साफ पता चलता है कि सांभर को जिला घोषित करवाने में उनकी वास्तव में कितनी रूचि है या वोटों की राजनीति के चलते ऐसा कौनसा दबाव बना हुआ है कि वे छह दशक से पुरानी सांभर को जिला बनाने की मांग को पुरजोर तरीके से नहीं उठा पा रहे है। 

यह बता दें कि सांभर उपखण्ड में किसी जमाने में शामिल रहा दूदू उपखण्ड जो कि अब अपनी पृथक से पहचान बनाता जा रहा है को जिला घोषित करवाने के लिये वहां के निर्दलीय जीतकर आये विधायक व वर्तमान मुख्यमंत्री के सलाहकार बाबूलाल नागर ने विगत दिनों दूदू को जिला घोषित करवाये जाने के लिये जिस प्रकार से जनाधार जुटाया और अपनी राजनीतिक ताकत का अहसास प्रदेश के मुखिया तक को कराने में सफल रहे उससे फुलेरा विधानसभा क्षेत्र के राजनेताओं को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है, यह बताना भी जरूरी है कि सांभर उपखण्ड से टूटकर अलग से बना दूदू उपखण्ड में निर्दलीय विधायक अपने क्षेत्र में अपर जिला कलक्टर का कार्यालय खुलवाने में पूरी तरह से सफल रहे, जबकि सांभर बार एसोसिएशन की चालिस वर्ष पुरानी इस मांग को पूरा करवाने में यहां के राजनेता सरकार से यह काम नहीं करवा सके। 

जानकारी में आया है कि महज दिखावे के लिये निवर्तमान नगरपालिका की बोर्ड की बैठक में कई दफा सांभर को जिला घोषित करवाने के सर्वसम्मति से प्रस्ताव लिये गये लेकिन ये समस्त प्रस्ताव महज कागजी पुलिंदा ही बनकर रह गये, इसके पीछे प्रमुख कारण बताया जा रहा है कि सांभर को जिला बनाये जाने के लिये महज कागजी प्रक्रिया नहीं बल्कि धरातल पर उतरकर ऐसा काम करने की जरूरत है जिससे वर्ष 2012 में सरकार के समक्ष उठायी गयी आवाज फिर से पुनर्जीवित हो सके। यह लिखने योग्य है कि उस वक्त बार एसोसिएशन के अनुरोध पर क्षेत्रीय विधायक निर्मल कुमावत व जयपुर ग्रामीण सांसद रहे लालचन्द कटारिया ने भी अपनी लिखित अभिशंषा देकर सांभर को जिला घोषित किये जाने के लिये अपनी मंशा साफ की थी, लेकिन तमाम प्रक्रियाओं के बावजूद अब सांभर को नये सिरे से जिला घोषित करवाने की आवाज नहीं उठाने से क्षेत्रवासियों में भी जबरदस्त हताशा बनी हुयी है, लेकिन कोई बोलने वाला तैयार नहीं है।