आन्ध्र प्रदेश में अब तीन नहीं, एक ही राजधानी

लेखक : लोकपाल सेठी

(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं) 

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लगभग तीन वर्ष पूर्व आंध्र प्रदेश  में जब वाई एस आर कांग्रेस सत्ता में आई तो उसने पिछली तेलगु देशम पार्टी की सरकार के एक एक करके कई निर्णय बदल दिए। समीक्षा के नाम पर कई परियोजनाएं पर रोक दी। जगन मोहन के नेतृत्व वाली सरकार पिछली द्वारा अमरावती शहर को राज्य की राजधानी  के रूप में विकसित की परियोजना को न केवल रोका बल्कि एक के स्थान पर राज्य की तीन राजधानियां बनाने की घोषणा की। 

आंध्र प्रदेश का विभाजन कर जब अलग से तेलंगाना बनाया गया तो अविभाजित आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद तेलंगाना के हिस्से में आई। आंध्र प्रदेश को आने वाले समय में अपनी अलग से राजधानी बनाने के लिए कहा गया, जिसके लिए केंद्र से विशेष वित्तीय सहायता मिलनी थी। आंध्र प्रदेश में चन्द्रबाबू नायडू  सरकार ने इस दिशा में काम भी शुरु कर दिया था। राज्य की तेलगु देशम सरकार को उम्मीद थी की केंद्र में एनडीए सरकार के जरिये नई राजधानी के निर्माण के लिए विश्व बैंक से क़र्ज़ भी मिल जायेगा। लम्बे विचार विमर्श के बाद कृष्णा जिले के गुंटूर इलाके के 29 गांवों की जमीनों को राजधानी, जिसका नाम अमरावती रखा गया, बनाने के लिए चुना गया। 

एक अलग से कैपिटल रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी का गठन किया गया। सरकार का यह लक्ष्य था कि राज्य में मई 2019 में होने वाले विधानसभा चुनावों तक  राज्य की राजधानी बन जाएगी। भूमि का तेजी से अधिग्रहण किया गया। किसानों को उनकी जमीनों का बाज़ार भाव पर मुआवज़ा दिया गया इसके अलवा उन्हें नई राजधानी में एक आवासीय भूखंड दिया जाना था। लेकिन वित्तीय साधनों की कमी से काम तेजी से नहीं हो सका। लेकिन चार सालों विधान सभा भवन तथा उच्च न्यायालय का भवन बन गया। सचिवालय भवन का निर्माण भी काफी हद तक पूरा हो गया। नई राजधानी के विकास के साथ ही मॉल  बनने शुरू हो गए। निजी क्षेत्र के बिल्डरों ने किसानो से ऊँची कीमत पर जमीन लेकर बहुमंजिला भवनों का निर्माण शुरू कर दिया। इसके चलते इस इलाके में   जमीनों के दाम असमान को छूने लगे। उस दौर में जिन किसानों के जमीन यहाँ थी वे रातों रात लखपति या करोडपति  बन गये। बड़ी कंपनियों ने जमीने ले कर अपने भवन बनाने भी शुरु कर दिये। तब मुख्यमंत्री नायडू ने दावा किया था कि राज्य की राजधानी विश्व स्तरीय होगी। कुछ ऐसा हो भी रहा था।

लेकिन मई 2019 के चुनावों में तेलगु देशम पार्टी सत्ता में आने में असफल रही और राज्य में वाईएसआर कांग्रेस की सरकार बनी। मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने पद संभालते ही कहा कि सत्ता और प्रशासन के विकेंद्रीकरण में विश्वास करते है इसलिए राज्य में एक नहीं तीन-प्रशासनिक, विधायिका और न्यायिक-तीन राजधानियां होगी। विधान सभा से पिछली सरकार दवारा राजधानी के निर्माण के लिए बनाये गए कानून कोई निरस्त कर तीन राजधानियां  बनाने के कानून पारित करवाया गया। इसके अनुसार विशाखापत्तनम राज्य को प्रशासिक राजधानी बनाया जाना था। अमरावती विधायिका यानि जहाँ   विधानसभा होगी, राजधानी  होगी। न्यायिक राजधानी, यानि जहाँ राज्य का हाई कोर्ट होगा, किन्नूर होगी। इस निर्णय के साथ ही अमरावती में जमीनो के दाम अर्श से फर्श पर आ गए। 

रेड्डी सरकार के इस निर्णय कई याचिकाओं कोई हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट की तीन सदस्यों वाली पीठ ने सरकार के निर्णय पर स्थगन आदेश दे दिया। इसको लेकर सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने हाई कोर्ट के निर्णय पर सीधा हमला किया। उन दिनों सत्ता के गलियारों में यह चर्चा थी कि न्यायपालिका के उच्च अधिकारियों के राज्य की नई बन रही राजधानी में आवासीय प्लाट है। इसी चर्चा में सर्वोच्च नयायालय के मुख्य न्यायधीश जस्टिस राम्मना का नाम  भी आया, जो आंध्रप्रदेश से आते है। आरोप लगाया कि उनकी शह पर ही मामले की सुनवाई कर रही खंडपीठ ने केवल स्थगन आदेश दिया बल्कि मामले की सुनवाई तेजी से शुरू कर दी। 

जैसे की उम्मीद की जा रही थी इस पीठ ने न केवल तीन राजधानियां बनाने के कानून निरस्त कर दिया बल्कि यह आदेश भी पारित किया कि राज्य की राजधानी अमरावती ही बनेगी जहाँ काफी काम हो चुका है। अभी यह देखना कि राज्य सरकार इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देती है या  नहीं। पिछली सरकार ने अपने कार्यकाल में इस राजधानी परियोजन पर  दस हज़ार करोड़ रूपये खर्च कर चुकी थी और नई राजधानी का काफी ढांचा बन चुका था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)