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प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.
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हम अपनी पालतू 'कूरो' को सोने से पहले एक बार सड़क पर टहला रहे थे। टहला क्या, दिन की अंतिम लघु शंका के लिए लाये थे। तभी देखा सामने से तोताराम चला आ रहा है।
तोताराम इस समय !
हम कुछ बोलें, उससे पहले ही तोताराम ने गुड़ की एक बड़ी सी डली हमारे मुंह में ठूंस दी।
हमने कहा- यह क्या तमाशा है?
बोला- तमाशा नहीं, ख़ुशी है, ख़ुशी. देखने को तो तूने भी समाचार देख लिया होगा। दुःख तो एक बार आदमी झेल भी ले लेकिन ख़ुशी को बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल है। तुझे पता है, आर्केमिडीज़ को जब अपने बाथ टब में नहाते- नहाते गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत समझ में आया तो निर्वस्त्र ही यूरेका यूरेका चिल्लाता हुआ राजमहल की तरफ भाग पड़ा था।
हमने पूछा- तुझे ऐसा क्या मिल गया? और अगर ऐसा कुछ मिल गया है तो फिर तू निर्वस्त्र क्यों नहीं है?
बोला- मैं सेवकों की तरह इतना साहसी भी नहीं हूँ। और फिर जब समाचार सुना था तब मैं यही पायजामा, कमीज और चप्पलें पहने हुए था। वैसे का वैसा चला आया।
हमने कहा- जब इतना ही ख़ुशी का समाचार था तो क्या इस गुड़ की डली में ही निबटाएगा?
बोला- कल तू जो मिठाई, जितनी खायेगा ले आऊंगा। लेकिन समाचार तो पूछ।
हमने कहा- बता।
बोला- अब तक की गणना से योगी जी की सरकार बनना तय हो चुका है।
हमने कहा- तो जनता पांच किलो राशन में बिक गई? भूल गई गंगा में तिरती लाशें, ऑक्सीजन के अभाव में तड़पते लोग, हाथरस और कन्नौज की घटनाएँ।
बोला- सभी शासनों में ये सब तो कमोबेश चलते ही रहते हैं।
हमने कहा- तो अब तैयार हो जा और अधिक नफरती भाषणों के लिए, भयंकर महंगाई के लिए। बेरोजगारी के लिए। गाँव गाँव में बड़ी-बड़ी मूर्तियों और मंदिरों के लिए। जब-तब जगह-जगह लाखों दीयों की दीवाली के लिए. अब तो कभी भी हर वनस्पति, आकाश और इमारतों का रंग भगवा होने वाला है और हर गाँव-शहर का नाम शुद्ध संस्कृत में।
बोला- महंगाई बेरोजगारी कब नहीं थी। तुझे याद होना चाहिए जब हमारी मास्टरी लगी थी तब घी, बादाम, किशमिश, काजू सब चार रुपए किलो थे और आज चार सौ। तो इसके लिए क्या अकेले मोदी जी ही जिम्मेदार हैं? उत्सवों से मन बहल रहता है अन्यथा तो इस नश्वर दुनिया में रखा ही क्या है। थोड़ी बहुत महंगाई बढ़ भी जाएगी भी तो कौन सा आसमान टूट पड़ेगा? धर्म तो बचा रहेगा।
हमने कहा- धर्म पर क्या संकट है? कौन तुझे मंदिर जाने, व्रत-उपवास करने से, तिलक-छापा करने से रोक रहा है।
बोला- अगर योगी जी की सरकार नहीं बनती तो यह भी हो जाता।
हमने कहा- अरे, जब पांच-सात सौ साल मुसलमानों का और दो सौ बरस ईसाइयों का शासन रहा तब भी हमारा धर्म संकट में नहीं पड़ा। अब तो लोकतंत्र है। सब अपना-अपना धर्म पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं।
बोला- ये तो योगी जी समय पर चेत गए अन्यथा तो तैयारी पूरी थी. पहले महाराष्ट्र को चुपके से निबटाया, फिर बिहार में कोशिश की।
हमने कहा- तोताराम, तू क्या कह रहा है, हमारी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा है। महाराष्ट्र और बिहार में क्या अनर्थ हो गया?
बोला- भाजपा के अलावा सभी दल राजनीतिक स्वार्थ के लिए हिन्दू धर्म के विनाश में भी संकोच नहीं कर रहे हैं।
हमने कहा- हमें तो ऐसा नहीं लगता।
बोला- लगता क्यों नहीं। इसी चक्कर में तो महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया। बिहार में भी यही तैयारी थी। वह तो सुशासन बाबू बचा ले गए किसी तरह लेकिन अब तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश से मिलकर साफ़-साफ़ घोषणा कर दी। एक तरह से ही नहीं तरह तरह से। पहले भाग 1, फिर भाग 2,3,4. ऐसे में किसी भी तरह से उत्तर प्रदेश को तो बचाना ही था। खैर, मोदी जी तो सब कुछ भूलकर इतना बड़ा डमरू ही बजाते रहे लेकिन सुन ली भोले बाबा ने और बच गया हिन्दू धर्म।
हमने कहा- तोताराम, अब यह सस्पेंस बर्दाश्त नहीं हो रहा है। पहले तू ख़ुशी से पागल हो रहा था और अब हमारा ब्लड प्रेशर बढ़ा रहा है।
बोला- वह गाना नहीं सुना? पहले मनोज वाजपेयी ने महाराष्ट्र में 'काबा', फिर वह लड़की नेहा सिंह बिहार में 'काबा' और अब तो बनारस में आकर ही डिक्लेयर कर रही है यू पी में 'काबा''।
अरे जब राम-कृष्ण और शिव की भूमि ही 'काबा' हो जायेगी तो बचेगा क्या?
हमने कहा- तोताराम, वह लड़की तो एक प्रतिभासंपन्न लोक गायिका है जो भोजपुरी बोली में प्रचलित लम्पटतापूर्ण गीतों से इस प्यारी भाषा की रक्षा कर रही है। उसे सही अर्थों में लोकचेतना की अभिव्यक्ति का माध्यम बना रही है। लोक कलाकार जनता की वाणी होता है। उसे सरकार से क्या मतलब? और किसी धर्म को उससे क्या खतरा?
कोरोना से लाखन मर गईले
लासन से गंगा भर गईले
टिकठी या कफन नोचे
कुक्कुर बिलार बा
ऐ चौकीदार बोलो
के जिम्मेदार बा
यू पी में का बा
क्या इन पंक्तियों में सत्ता का विरोध है? नहीं, यह मनुष्य की हृदयहीनता से दु:खी एक संवेदनशील आत्मा की गुहार है। इससे किसी हिन्दू-इस्लाम-क्रिश्चियन धर्म को खतरा नहीं है बल्कि यह मानव धर्म को बचाने की गुहार है।
बोला- मास्टर, तूने तो ख़ुशी का मज़ा ही किरकिरा कर दिया।
हमने कहा- तो फिर तुझे इस समय योगी के विजय जुलूस में जाकर उन्हें गुलाल मलना चाहिए था. यहाँ क्या कर रहा है ?
बोला- मास्टर, वहां तक पहुँचना क्या कोई मज़ाक है ? मुझे वहाँ कौन पूछेगा ?
हमने कहा- यही तो हम कह रहे हैं। जब कोई पूछता ही नहीं तो फिर क्यों बिना बात लाडो की भुआ बना फिर रहा है। नार्मल रह. हम मतलबी चमचे नहीं हैं। हम तो राम लगती कहेंगे, ठकुर सुहाती नहीं। चल, मन हो तो अन्दर चलें।
बोला- नहीं, अब अन्दर चल के क्या करना है ? और हाँ, कल का तेरी मनपसंद भरपेट मिठाई वाला वादा केंसिल। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने व्यंग्यत्मक विचार है)