गोपाल किरन समाजसेवी संस्था द्वारा संत रविदास जयंती संपन्न
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ग्वालियर। गोपाल किरन समाजसेवी संस्था द्वारा श्रीप्रकाश सिंह निमराजे के नेतृव में श्रीमती संगीता शाक्य मुख्य संरक्षक के संरक्षकरत्व में शिवचरण मंडराई, एस.एल.अटेरिया के मार्गदर्शन में थाटीपुर ग्वालियर में तथा सभी सामाजिकजनों ने भीम नगर में संत शिरोमणी गुरु रविदास जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। जहां सभी सहभागिता करने वालो ने उमके जन्म दिवस की हार्दिक मंगल कामनाऐं दी। कार्यकम की भूमिका व संस्था का परिचय अध्यक्ष गोपाल किरन समाजसेवी संस्था श्रीप्रकाश सिंह निमराजे ने दिया। इस अवसर पर क्षेत्रीय विधायक सतीश सिकरवार अथिति के रूप मे उपस्थित जनों ने कई जनों अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि र दास ने जन्म के आधार पर श्रेष्ठता की अवधारणा को पूरी तरह खारिज कर दिया-रैदास बाभन मत पूजिए जो होवे गुन हीन,
पूजिए चरन चंडाल के जो हो गुन परवीन
रैदास स्वयं भी श्रम करके जीवन-यापन करते थे. वे चर्मकार का काम करते थे और श्रम करके जीने को सबसे बड़ा मूल्य मानते हैं. घर-बार छोड़कर वन जाने या सन्यास लेने को ढोंग-पाखण्ड मानते हैं- नेक कमाई जउ करइ गृह तजि बन नहिं जाय.रैदास अभिमानी परजीवी ब्राह्मण की तुलना में श्रमिक को ज्यादा महत्व देते हैं-धरम करम जाने नहीं, मन मह जाति अभिमान, ऐ सोउ ब्राह्मण सो भलो रविदास श्रमिकहु जान
बुद्ध की तरह रैदास ने भी ऊंच-नीच अवधारणा और पैमाने को पूरी तरह उलट दिया. वे कहते हैं कि जन्म के आधार पर कोई नीच नहीं होता है, बल्कि वह व्यक्ति नीच होता है, जिसके हृदय में संवेदना और करुणा नहीं है-दया धर्म जिन्ह में नहीं, हद्य पाप को कीच,
रविदास जिन्हहि जानि हो महा पातकी नीच. उनका मानना है कि व्यक्ति का आदर और सम्मान उसके कर्म के आधार पर करना चाहिए, जन्म के आधार पर कोई पूज्यनीय नहीं होता है. बुद्ध, कबीर, फुले, आंबेडकर और पेरियार की तरह रैदास भी साफ कहते हैं कि कोई ऊंच या नीच अपने मानवीय कर्मों से होता है, जन्म के आधार पर नहीं. वे लिखते हैं—
रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच,
नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच.
आंबेडकर की तरह रैदास का भी कहना है कि जाति एक ऐसा रोग है, जिसने भारतीयों की मनुष्यता का नाश कर दिया है. जाति इंसान को इंसान नहीं रहने देती. उसे ऊंच-नीच में बांट देती है. एक जाति का आदमी दूसरे जाति के आदमी को अपने ही तरह का इंसान मानने की जगह ऊंच या नीच मानता है. रैदास का कहना है कि जब तक जाति का खात्मा नहीं होता, तब तक लोगों में इंसानियत जन्म नहीं ले सकती-
जात-पात के फेर मह उरझि रहे सब लोग,
मानुषता को खात है, रैदास जात का रोग.
वे यह भी कहते हैं कि जाति एक ऐसी बाधा है, जो आदमी को आदमी से जुड़ने नहीं देती है. वे कहते हैं एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से तब तक नहीं जुड़ सकता, जब तक जाति का खात्मा नहीं हो जाता—
रैदास ना मानुष जुड़े सके जब लौं जाय न जात
उनका मानना था कि हर व्यक्ति को श्रम करके ही खाना खाने का अधिकार है—
इस अवसर पर श्याम सिंह राठौर, हरिओम चोपड़ा, (एडवोकेट), रामबाबू यादव, चौधरी चेतराम, सुधीर मंडेलिया पुरषोत्तम टामोटिया, विजय चौधरी,शफीक खान आदि जनों ने भाग लिया।